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AIMIM नेता का विवादित बयान: “हम नमाज पढ़ लें तो…” कांवड़ यात्रा पर उठे सवाल !

Written By : Amisha Gupta

असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के एक नेता ने हाल ही में कांवड़ यात्रा पर एक विवादित बयान दिया है, जो अब राजनीतिक और सामाजिक बहस का कारण बन गया है।

इस नेता ने कांवड़ यात्रा में भाग लेने वाले हिंदू श्रद्धालुओं से संबंधित नियमों पर सवाल उठाते हुए कहा, “हम नमाज पढ़ लें तो क्या होगा?” यह टिप्पणी उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित रेस्तरां और दुकानों से उनके मालिकों के नाम प्रदर्शित करने के आदेश के संदर्भ में दी गई थी।यूपी सरकार का यह आदेश खासकर मुस्लिम व्यापारियों को निशाना बनाने के रूप में देखा गया, क्योंकि आदेश में कहा गया था कि कांवड़ यात्रा के मार्ग पर स्थित सभी व्यापारिक प्रतिष्ठानों को अपने मालिकों का नाम सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करना होगा। इस आदेश को असंवैधानिक और धार्मिक भेदभावपूर्ण मानते हुए AIMIM के नेता ने कड़ी आपत्ति जताई थी। उनका कहना था कि यह कदम मुस्लिम व्यापारियों और कामकाजी समुदाय को अलग-थलग करने और उन्हें निशाना बनाने के उद्देश्य से उठाया गया है। इसके बाद ओवैसी के पार्टी नेता ने यह विवादित टिप्पणी की, जिससे पूरे देश में बहस छिड़ गई।


कांवड़ यात्रा हिंदू धर्म का एक प्रमुख धार्मिक आयोजन है, जिसमें लाखों लोग गंगा नदी से जल लेकर अपने-अपने देवस्थलों तक जाते हैं।

इस आयोजन के दौरान उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में सुरक्षा और व्यवस्थाओं के संदर्भ में कई कदम उठाए जाते हैं। इस बार उत्तर प्रदेश सरकार ने यात्रा मार्ग पर दुकानदारों और रेस्तरां मालिकों से अपने नाम और अन्य विवरण प्रदर्शित करने का आदेश दिया था, ताकि सुरक्षा व्यवस्था बेहतर बनाई जा सके। हालांकि, यह आदेश मुस्लिम व्यापारियों के खिलाफ भेदभावपूर्ण हो सकता है, क्योंकि इससे यह आशंका उत्पन्न हुई कि मुस्लिम समुदाय को अलग-थलग किया जा सकता है। AIMIM और ओवैसी ने इसे संविधान के खिलाफ और अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों का उल्लंघन करार दिया है। ओवैसी ने इस मामले को लेकर भाजपा सरकार पर निशाना साधा, और आरोप लगाया कि यह कदम हिंदुत्व के एजेंडे का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य मुस्लिमों को धार्मिक और सामाजिक रूप से अलग-थलग करना है। ओवैसी के इस बयान ने राजनीतिक हलकों में विवाद खड़ा कर दिया है। उन्होंने इसे समानता और संविधान की भावना के खिलाफ बताया।

उनका कहना था कि भारतीय संविधान में किसी भी नागरिक को धर्म, जाति या समुदाय के आधार पर भेदभाव करने की अनुमति नहीं है।

उन्होंने इस आदेश को नाजी जर्मनी की नीतियों से जोड़ते हुए कहा कि यह वह नीति है जो हिटलर ने यहूदियों के खिलाफ अपनाई थी, जब उन्हें उनके व्यवसायों से बाहर करने और पहचानने के लिए विशेष चिन्ह पहनने की मजबूरी थी। ओवैसी ने इसे असंवैधानिक और अपारदर्शी कदम बताया है। ओवैसी के बयान के बाद, भारतीय जनता पार्टी (BJP) और अन्य हिंदू संगठनों ने उनकी आलोचना की है। बीजेपी के नेताओं का कहना है कि ओवैसी का बयान केवल मुसलमानों को बरगलाने और धार्मिक उन्माद फैलाने की कोशिश है। दूसरी ओर, ओवैसी के समर्थकों का कहना है कि वह अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए लगातार खड़े हैं और यह बयान उनकी पार्टी की नीति का हिस्सा है। यह मामला केवल एक धार्मिक आयोजन पर विवाद से कहीं बढ़कर है। यह भारतीय समाज में धार्मिक पहचान, भेदभाव, और समानता के मुद्दों पर गहरे सवाल उठाता है। भारत के संविधान में हर नागरिक को समान अधिकार प्राप्त हैं, लेकिन हाल के घटनाक्रमों से यह प्रतीत होता है कि देश में धार्मिक और सामाजिक विभाजन बढ़ता जा रहा है। ओवैसी और उनकी पार्टी की यह टिप्पणी निश्चित रूप से आने वाले दिनों में इस बहस को और गर्म कर सकती है।

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