सेन्ट्रल डेस्क , फलक इकबाल: राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के सिलसिले में केन्द्रीय की मोदी सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी है। उनका कहना है कि अयोध्या में जो विवादित स्थल पर हिन्दुओं को जो जमीन दी गई है, उसे रामजन्मभूमि न्यास को सौंप दिया जाना चाहिए। और गैर विवादित जमीन को भारत सरकार को सौंप देना चाहिए। आपको ये भी बता दें कि आज ही सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को लेकर सुनवाई होनी थी, लेकिन जस्टिस बोबडे के छुट्टी पर जाने के कारण सुनवाई टालनी पड़ी।
NEWS 10 INDIA की लेटेस्ट खबरें और अपडेट्स जानने के लिए आप हमारे FACEBOOK पेज को लाइक करना ना भूलें। नीचे दिए गए लिंक पर किल्क करें ।
मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से यह भी कहा है कि अयोध्या में हिंदू पक्षकारों को जो हिस्सा दिया गया है, वह राम जन्मभूमि न्यास के सुपुर्द कर दिया जाए। जबकि 2.77 एकड़ भूमि का कुछ हिस्सा भारत सरकार को लौटा देना चाहिए।
गौरतलब है कि अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद के आसपास की करीब 70 एकड़ जमीन इस वक़्त केंद्र सरकार के पास है। इसमें से 2.77 एकड़ की जमीन पर इलाहाबाद हाईकोर्ट फैसला सुना चुकी थी। जिस भूमि पर विवाद है वह जमीन 0.313 एकड़ ही है। सरकार का कहना है कि इस जमीन को छोड़कर बाकी जमीन भारत सरकार को सौंप दी जानी चाहिए। मोदी सरकार का कहना है कि जिस जमीन पर विवाद नहीं है उसे वापस सौंपा जाए।
29 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर मामले की सुनवाई होनी थी, लेकिन वह टल गई। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई पांच जजो के साथ करनी थी, जिसमें चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस अब्दुल नजीर, जस्टिस एस. ए. बोबडे और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ शामिल हैं।
जानिए कैसे हुआ था जमीन का बंटवारा?
आपको बता दें कि 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के लखनऊ खंडपीठ ने अयोध्या विवाद को लेकर फैसला सुनाया था। जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस एस यू खान और जस्टिस डी वी शर्मा ने अयोध्या में 2.77 एकड़ की विवादित जमीन को 3 हिस्सों में बांट दिया था। जिस हिस्से पर राम लला विराजमान हैं उसे हिंदू महासभा, दूसरे हिस्से को निर्मोही अखाड़े और तीसरे हिस्से को सुन्नी वक्फ बोर्ड को सौंपने का फैसला किया था।
गौर करने वाली बात ये है कि लोकसभा चुनाव से पहले राम मंदिर निर्माण का मुद्दा और भी ज्यादा गर्माता जा रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवस संघ, विश्व हिंदू परिषद समेत उनके अन्य संगठनों के द्वारा लगातार मोदी सरकार पर मंदिर निर्माण के लिए दबाव बनाया जा रहा है।