अफगानिस्तान में अमेरिका के 20 साल लंबे ‘आतंक के खिलाफ युद्ध’ में शामिल होने के पाकिस्तान के फैसले पर प्रधानमंत्री इमरान खान ने मंगलवार को खेद व्यक्त करते हुए इसे “खुद का घाव” और पैसे के लिए लिया गया निर्णय करार दिया है। साथ ही उन्होंने कहा कि यह पाकिस्तान की जनता के हित में लिया हुआ फैसला नहीं था।
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दो दशक तक चलने वाले इस युद्ध में इमरान खान पाकिस्तान की भागीदारी के आलोचक रहे हैं। पाकिस्तानी पीएम ने दावा करते कहा की 2001 में निर्णय लेने वालों के करीब थे जब तत्कालीन सैन्य शासक जनरल परवेज मुशर्रफ ने ‘आतंक के खिलाफ युद्ध’ का हिस्सा बनने का फैसला किया था।
वही इमरान खान ने इस्लामाबाद में विदेश मंत्रालय के अधिकारियों को संबोधित कर कहा की “मैं इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हूं कि फैसले के पीछे क्या विचार थे। दुर्भाग्य से, पाकिस्तान के लोगों पर ध्यान नहीं दिया गया।” आगे उन्होंने कहा, “इसके लिए हम खुद जिम्मेदार हैं। और हमने दूसरों को अपना इस्तेमाल करने दिया। सहायता के लिए अपने देश की प्रतिष्ठा को त्याग किया। पैसे के लिए एक विदेश नीति बनाई जो सार्वजनिक हित के खिलाफ थी।”
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बता दे की उन्होंने पाकिस्तान के लिए ‘आतंक के खिलाफ युद्ध’ को एक “खुद का घाव” करार देते हुए कहा कि “हम इस परिणाम के लिए किसी और को दोष नहीं दे सकते।” इसके अलावा खान ने इससे पहले कई मौकों पर कहा है कि 20 वर्षों के युद्ध के परिणामस्वरूप पाकिस्तान को 80,000 से अधिक मौतें और 100 अरब डॉलर से अधिक का आर्थिक नुकसान हुआ।
इमरान खान ने अफगानिस्तान की ताजा स्थिति के बारे में बात करते हुए, कहा कि यह एक “बड़ा अत्याचार” था कि एक मानव निर्मित संकट बनाया जा रहा था। और अफगानिस्तान में स्थिति को संबोधित करना पाकिस्तान के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि उसका पड़ोसी देश है, जो संकट के कारण बुरी तरह प्रभावित हो सकता है।
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आगे इमरान ने कहा कि पाकिस्तान इस कठिन समय में अफगानिस्तान को सहायता देना जारी रखेगा। अफगानिस्तान में तालिबान के उदय को पसंद या नापसंद किए बिना, दुनिया को अपने 40 मिलियन लोगों के सामने आने वाली कठिनाइयों पर ध्यान देना चाहिए।
बता दे की इमरान खान ने संक्षिप्त सूचना पर इस्लामिक सहयोग संगठन के सत्र की मेजबानी के लिए विदेश कार्यालय को बधाई दी और सराहना की। उन्होंने कहा कि शिखर सम्मेलन की प्रतिक्रिया से पता चलता है कि पाकिस्तान की छवि विश्व स्तर पर सुधरी है।