रवीश कुमार का प्राइम टाइम : पिथौरागढ़ का किताब आंदोलन-क्या पुरे भारत के लिए नज़ीर बनेगा।
रवीश कुमार ने पिथौरागढ़ का किताब आंदोलन, देश और समाज के लिए अबतक का सबसे शानदार जन आंदोलन बताया।उन्होंने इसका समर्थन करते हुए कहा कुछ दिनों पहले दिल्ली के नज़फगढ़ से एक छात्र ने उन्हें पत्र लिखा था, कि उसके गांव में लाइब्रेरी नहीं है लाइब्रेरी जाने के लिए उसे दिल्ली में ही 40 किलोमीटर का सफर करना पढता है, शायद वह पहला मौका था या पहला दर्शक था, जिसने लाइब्रेरी के लिए हमे पत्र लिखा था। पिछले कुछ दिनों से उत्तराखंड के पिथौरागढ़ से छात्रों के मैसेज आ रहे थे कि वे लाइब्रेरी और किताबो को लेकर आंदोलन कर रहे है। ऐसा कब सुना है आपने ‘छात्र अपने कॉलेज की कबाड़ हो चुकी लाइब्रेरी को बेहतर करने के लिए आंदोलन कर रहे हो जाहिर है इस बार इस बात पर घ्यान जाना चाहिए।अच्छी बात है यह की छात्रों ने संघर्ष किया कई दिनों तक संघर्ष किया ताकि वे स्थानीय स्तर पर अपनी लड़ाई जीत सके।’
यह सच है कि किताबे ही सभ्य समाज की नीव है। सरकार और समाज दोनों को इस आंदोलन पर ध्यान देना चाहिए यह सिर्फ पिथौरागढ़ के छात्र के लिए ही नहीं बल्कि पुरे भारत उन सभी छात्रों के बारे में सोचना चाहिए। शिक्षा में किताबो की कमी के आभाव के कारण उच्च शिक्षा हासिल करने में ज्यादातर बिद्यार्थी पीछे रह रह जाते है, अगर देश और समाज को शिक्षित करना है तो शिक्षा प्रणाली को मजबूत करना ही होगा। लाइब्रेरी की मांग करना जन आंदोलन की अबतक की सबसे अच्छी पहल है।
किताबे ही समाज का मस्तिष्क होती है, फिर इन्ही किताबो से ज्यादातर विधार्थी क्यूँ बंचित रह जाते है।
रवीश कुमार का कहना है कि हमे हर दिन संघर्ष करते रहना चाहिए ताकि मानवता के प्रति प्रेम और एक सच्चाई बनी रहे। उंहोने कहा कि मै इस पोस्टर को कई बार देख चुका हुं। अगर इस आंदोलन का इतना नेक मकसद है तो फिर सरकार के लिए उन छात्रों को किताबे और लाइब्रेरी उपलब्ध कराना बड़ी बात नहीं है। इस आंदोलन में एक कविता भी है। जिस किसी बिद्यार्थी ने लाइब्रेरी और किताबो की मांग के साथ इस कविता को गढ़ा है, उसका मकसद बहुत सुन्दर है। पोस्टर पर एक कविता लिखी है, कि शिक्षक पुस्तक लेकर ही रहेंगे इसी नारे के साथ यंहा की स्थानीय भाषा में लिखा है। “हमुन की चाऊ किताब और मासाब” शिक्षक पुस्तक आंदोलन। यह समस्या सिर्फ छात्रों तक सिमित नहीं रह जाती यह समस्या हम और आप सभी के प्रति सवाल खड़े करती है। शिक्षक नहीं पुस्तक नहीं , क्या आपको कोई फर्क नहीं पड़ता। पत्रकार रवीश कुमार ने आगे कहा इस कमरे में एक पोस्टर है जिस पर लिखा है’ धैर्य की परीक्षा जारी है।’ 20 दिन से पिथौरागढ़ में लाइब्रेरी और कॉलेज में किताबो के लिए आंदोलन चल रहा है। बीस दिन से दिल्ली बेखबर है।
भारत में एक ऐसा आंदोलन भी चल रहा था,जिसमे 15-20 छात्र हर दिन धरने पर बैठे थे। सरकार के प्रति अब सवाल यह खड़े होते है, कि आखिर शिक्षा व्यवस्था के प्रति सरकार का दायित्व क्या है। सवाल है? कि ऐसी स्थति पर सरकार को क्या कहना चाहिए, कि छात्रों को शिक्षक ,ओर लाइब्रेरी के लिए आंदोलन करना पड़ रहा है। किताबे मिलेंगे तभी तो जिंदगी बनेगी सरकार को ध्यान देना ही होगा। यह एक ऐसा मामला जिससे समझौता नहीं किया जा सकता क्या यही है क्या इसी व्यवस्था की खामियों के साथ डिजिटल इंडिया और इसका भविष्य निर्धारित होता है।
देश और समाज हमेशा एक समय में अपनी बदलाब की चेतना पर समर्पित रहा है इसी बदलाब के बीच तरह तरह की वैज्ञानिक खोज, सत्ता शासन, समाज से जुड़े रूढ़ि विचारो ने बदलाब किया है। पिथौरागढ़ के छात्र आंदोलन ने सरकार को विकास के नाम की जाने वाली जुमलेबाजी को चुनौती दी है। सरकार को विकास के लिए शिक्षा को सर्व प्रथम प्राथिमकता देनी चाहिए। किसी देश के विकास की बुनियाद उस देश की शिक्षा पर ही निर्भर करती है। हमे उम्मीद है सरकार इस समस्या पर जरूर ध्यान देंगी और आने वाले दिनों में देश में सभी जगह लाइब्रेरी और किताबे उपलब्ध हो सकेंगी।
किताबों की दुनिया में खोए रहने के लिए वे एक बेहतर लाइब्रेरी मांग रहे हैं तब फिर इस हफ्ते का यह सबसे शानदार जन आंदोलन है और हम सभी को मिलकर इसका समर्थन करना चाहिए।