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अमित शाह ने बताई वजह, मुस्लिमों को नागरिकता संशोधन बिल में क्यों नहीं किया गया शामिल?

सेंटरल डेस्क आयुषी गर्ग:-   केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आज लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 (Citizen Amendment Bill 2019) पेश किया. इस पर विपक्ष ने जबरदस्‍त हंगामा करना शुरू कर दिया. पहले तो इसी बात पर बहस होती रही कि इस विधेयक को निचले सदन में पेश किया जा सकता है या नहीं. इसके बाद जब विपक्ष ने बिल के अल्पसंख्यक विरोधी होने का आरोप लगाया तो शाह ने कांग्रेस पर सीधा हमला करते हुए बंटवारे का जिक्र कर डाला. उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने धर्म के आधार पर देश का बंटवारा किया. अगर तब ऐसा नहीं किया गया होता तो आज हमें यह नहीं करना पड़ता.


 

कांग्रेस-टीएमसी ने बिल को बताया संविधान के खिलाफ
कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने विधेयक को संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताया. उन्होंने कहा कि सरकार आर्टिकल-14 को नजरअंदाज कर रही है. यह हमारे लोकतंत्र का ढांचा है. तृणमूल कांग्रेस सांसद सौगत राय ने कहा, ‘संविधान का अनुच्छेद-14 कहता है कि राज्य भारत में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा. ये बिल नेहरू-अंबेडकर की सोच के भारत के खिलाफ है. एमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता इस देश के मूलभूत ढांचे का हिस्सा है. यह विधेयक मौलिक अधिकारों का उल्‍लंघन करता है.

शाह ने पलटवार करते हुए इंदिरा गांधी का किया जिक्र
अमित शाह ने पलटवार करते हुए कहा कि सदन के नियम 72(1) के हिसाब से यह बिल किसी भी आर्टिकल का उल्लंघन नहीं करता है. अनुच्छेद-11 को पूरा पढ़िए. कुछ सदस्यों को लगता है कि इस बिल से समानता के अधिकार का उल्लंघन होता है. पूर्व पीएम इंदिरा गांधी ने 1971 में निर्णय किया था कि बांग्लादेश से आए लोगों को भारत की नागरिकता दी जाए तो पाकिस्तान (Pakistan) से आए लोगों के साथ ऐसा क्‍यों नहीं किया गया. उसके बाद युगांडा से आए सारे लोगों को कांग्रेस के शासन में नागरिकता दी गई. तब इंग्लैंड से आए लोगों को क्यों नहीं दी गई? फिर दंडकारण्य कानून लाकर नागरिकता दी गई. उसके बाद राजीव गांधी ने असम समझौता किया. उसमें भी 1971 की ही कट ऑफ डेट रखी तो क्या समानता हो पाई? हर बार तार्किक वर्गीकरण के आधार पर ही नागरिकता दी जाती रही है.


 

‘बिल तैयार करते समय पड़ोसी देशों के संविधान को भी देखा’
अमित शाह ने कहा कि इस विधेयक का आधार सिर्फ भौगोलिक नहीं है. हमें इन तीनों देशों के संविधान को भी देखना होगा. इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान के संविधान के मुताबिक इस्लाम राज्य का धर्म है. पाकिस्तान का संविधान कहता है कि इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान का धर्म इस्लाम है. वहीं, बांग्लादेश का संविधान भी इस्लाम को राज्य का धर्म बताता है. 1950 में नेहरू-लियाकत समझौता हुआ. दोनों देशों ने अपने अल्पसंख्यकों के संरक्षण का संकल्प लिया. भारत में इसका गंभीरता से पालन हुआ, लेकिन पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर हुए जुल्म को पूरी दुनिया ने देखा.

https://www.youtube.com/watch?v=oPaI-rn9ga8&t=1s

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