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भारत में गंभीर तीव्र कुपोषण!

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अनुसार, नवंबर 2020 तक भारत में 9.2 लाख से अधिक बच्चे (छह महीने से छह साल तक के) ‘गंभीर रूप से कुपोषित’ थे।

यह इस चिंता को रेखांकित करता है कि कोविड-19 महामारी गरीबों में भी सबसे गरीब लोगों के बीच स्वास्थ्य और पोषण संकट को बढ़ा सकती है।


विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ऊँचाई की तुलना में बहुत कम वज़न या 115 मिमी. से कम मध्य-ऊपरी बांह की परिधि या पोषण संबंधी एडिमा की उपस्थिति को ‘गंभीर तीव्र कुपोषण’ (SAM) के रूप में परिभाषित करता है।
SAM से पीड़ित बच्चों की कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण उनकी मृत्यु की संभावना बीमारियों की तुलना में नौ गुना अधिक होती है।
पोषण संबंधी एडिमा: भुखमरी या कुपोषण की स्थिति में प्रोटीन की कमी के परिणामस्वरूप ऊतकों में असामान्य द्रव की वृद्धि (स्फाय- Oedema ) हो जाती है। नवंबर 2020 तक देश भर में छह महीने से छह साल तक के अनुमानित 9,27,606 ‘गंभीर रूप से कुपोषित’ बच्चों की पहचान की गई।


देश में सबसे ज़्यादा बच्चे उत्तर प्रदेश और बिहार में ही हैं।
महाराष्ट्र (70,665) > गुजरात (45,749) > छत्तीसगढ़ (37,249) > ओडिशा (15,595) > तमिलनाडु (12,489) > झारखंड (12,059) > आंध्र प्रदेश (11,201) > तेलंगाना (9,045) > असम (7,218) > कर्नाटक (6,899) > केरल (6,188) > राजस्थान (5,732)।
वे राज्य जहाँ गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की संख्या नगण्य है: लद्दाख, लक्षद्वीप, नगालैंड, मणिपुर और मध्य प्रदेश में गंभीर रूप से कुपोषित बच्चे नहीं हैं।


राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण निष्कर्ष:
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (एनएफएचएस-4) 2015-16 से पता चलता है कि बच्चों में गंभीर तीव्र कुपोषण की प्रसार दर 7.4% थी।
एनएफएचएस-5 से पता चलता है कि वर्ष 2015-16 की तुलना में वर्ष 2019-20 में 22 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में बच्चों में कुपोषण बढ़ा है।
सर्वेक्षण में शामिल 22 में से लगभग 13 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने वर्ष 2015-16 की तुलना में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के स्टंटिंग प्रतिशत में वृद्धि दर्ज की है।

पोषण अभियान: भारत सरकार ने वर्ष 2022 तक ‘कुपोषण मुक्त भारत’ सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय पोषण मिशन (NNM) या पोषण अभियान शुरू किया है।


एनीमिया मुक्त भारत अभियान: वर्ष 2018 में शुरू किये गए इस मिशन का उद्देश्य एनीमिया की वार्षिक दर को एक से तीन प्रतिशत तक कम करना है।


‘मिड-डे मील’ योजना: इसका उद्देश्य स्कूली बच्चों के पोषण स्तर में सुधार करना है, जिससे स्कूलों में नामांकन, प्रतिधारण और उपस्थिति पर प्रत्यक्ष एवं सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013: इसका उद्देश्य संबद्ध योजनाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से समाज के सबसे संवेदनशील लोगों के लिये खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना है, ताकि भोजन तक पहुँच को कानूनी अधिकार बनाया जा सके।
प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY): गर्भवती महिलाओं को बेहतर सुविधाएँ प्रदान करने हेतु 6,000 रुपए प्रत्यक्ष रूप से उनके बैंक खातों में स्थानांतरित किये जाते हैं।
एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) योजना: इसे वर्ष 1975 में शुरू किया गया था और इस योजना का उद्देश्य 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों तथा उनकी माताओं को भोजन, पूर्व-स्कूली शिक्षा, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल, टीकाकरण, स्वास्थ्य जाँच एवं रेफरल सेवाएँ प्रदान करना है।
नोट: सतत् विकास लक्ष्य (SDG-2: ज़ीरो हंगर) के तहत वर्ष 2030 तक सभी प्रकार की भूख और कुपोषण को समाप्त करना है तथा यह सुनिश्चित करना है कि सभी लोगों, विशेषकर बच्चों को पूरे वर्ष पर्याप्त और पौष्टिक भोजन मिले।

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