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25 साल पहले 1993 में मुलायम और काशीराम अयोध्या आंदोलन के दौरान बीजेपी को रोकने के लिए हाथ मिलाया था। इसके ठीक 25 साल बाद, एकबार फिर एसपी संरक्षक के बेटे अखिलेश यादव और बीएसपी चीफ मायावती एक साथ आए हैं। और इस बार कारण बना प्रधान मंत्री मोदी का हराना।
अगर 2014 लोकसभा चुनाव की तरह पैर्टन बना रहा तो एसपी-बीएसपी गठबंधन बीजेपी के सीटों को आधा कर सकती है। हालांकि, इस गठबंधन में कांग्रेस के शामिल होने पर विपक्ष के लिए नतीजे और अच्छे हो सकते।
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 71 और उसके सहयोगी अपना दल ने 2 सीटें जीतीं थीं। वहीं, एसपी के खाते में पांच और कांग्रेस के खाते में दो सीटें ही आई थीं, जबकि इन चुनावों में बीएसपी के हाथ खाली रहे थे। वोट प्रतिशत को देखने से पता चलता है कि 2014 में बीजेपी और अपना दल का वोट शेयर (43.63%) एसपी-बीएसपी के संयुक्त वोट शेयर (42.12%) से अधिक था।
हालांकि हर सीट के सूक्ष्म विश्लेषण करने पर पता चलता है कि एसपी और बीएसपी ने मिलकर 41 सीटों पर बीजेपी से ज्यादा वोट प्राप्त किए थे। अगर आरएलडी, जो दोनों पार्टियों का एक संभावित सहयोगी है, गठबंधन में शामिल होता है तो यह आंकड़ा 42 सीटों तक पहुंच जाता है।
इस गठबंधन में शामिल दोनों दलों के पास जाति-आधारित वोट-बैंक हैं। आगामी लोकसभा चुनाव में गठबंधन की कामयाबी दोनों पार्टियों के द्वारा अपने वोट बैंक को अपने साझेदारों को ट्रांसफर करने की क्षमता पर निर्भर करेगी।
एक राजनीतिक पर्यवेक्षक, दीपक कबीर ने कहा, ‘एसपी यादवों और मुसलमानों के वोटों पर काफी हद तक निर्भर है, जबकि दलित वोटर बीएसपी का आधार हैं। दोनों दलों के एक साथ आने के बाद गठबंधन मुसलमानों की पहली पसंद बन जाएगा। लेकिन कई यादव जो एसपी के वफादार हैं, वे बीएसपी को वोट देने की बजाए बीजेपी की तरफ जाना पसंद करेंगे।’