हाल ही में किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 राज्यसभा में पारित किया गया है।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने वर्ष 2020 में ‘चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूशंस’ (CCIs) का ऑडिट किया था, जिनमें से 90% ‘गैर-सरकारी सगठनों’ द्वारा चलाए जा रहे थे, इसमें पाया गया कि वर्ष 2015 में संशोधन लाए जाने के बाद भी 39% CCIs पंजीकृत नहीं थे।
इसमें यह भी पाया गया कि 20% से कम CCIs, विशेष रूप से लड़कियों के लिये, असम में स्थापित ही नहीं किये गए थे और 26% में बाल कल्याण अधिकारियों की ही नियुक्ति नहीं की गई थी।
इसके अलावा प्रत्येक पाँच में से तीन ‘चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूशन’ में शौचालय नहीं है, दस में से एक CCI में पीने का पानी ही उपलब्ध नहीं है और 15% में अलग बिस्तर या आहार योजना के प्रावधान नहीं हैं।
‘चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूशंस’ के लिये बच्चों का पुनर्वास प्राथमिकता नहीं है, बल्कि बच्चों को कथित तौर पर फंड प्राप्त करने के लिये ऐसे संस्थानों में रखा जाता है।
विधेयक द्वारा प्रस्तावित प्रमुख संशोधन:
गंभीर अपराध: गंभीर अपराधों की श्रेणी में ऐसे अपराध शामिल होंगे, जिनके लिये अधिकतम सज़ा सात वर्ष से अधिक है, जबकि न्यूनतम सज़ा या तो निर्धारित नहीं की गई है या फिर सात वर्ष से कम है।
वर्तमान में गंभीर अपराध वे हैं, जिनके लिये भारतीय दंड संहिता या किसी अन्य कानून के तहत तीन से सात वर्ष तक की सज़ा का प्रावधान है।
असंज्ञेय अपराध:
वर्तमान अधिनियम के मुताबिक, तीन से सात वर्ष तक की सज़ा वाले अपराध संज्ञेय (जहाँ बिना वारंट के गिरफ्तारी की अनुमति है) और गैर-जमानती हैं।
यह विधेयक इस प्रावधान में संशोधन करते हुए इस प्रकार के अपराधों को गैर-संज्ञेय घोषित करता है।
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दत्तक ग्रहण: वर्तमान में न्यायालय यह प्रावधान करता है कि अदालत के बजाय ज़िला मजिस्ट्रेट (अतिरिक्त ज़िला मजिस्ट्रेट सहित) ऐसे गोद लेने के आदेश जारी करेगा।
अपील: बिल में प्रावधान है कि ज़िला मजिस्ट्रेट द्वारा पारित गोद लेने के आदेश से व्यथित कोई भी व्यक्ति इस तरह के आदेश के पारित होने की तारीख से 30 दिनों के भीतर संभागीय आयुक्त के समक्ष अपील दायर कर सकता है।
ज़िला मजिस्ट्रेट के अन्य कार्य: इनमें शामिल हैं: जिला बाल संरक्षण इकाई का पर्यवेक्षण और बाल कल्याण समिति के कामकाज की त्रैमासिक समीक्षा करना।
नामित न्यायालय: विधेयक का प्रस्ताव है कि पहले के अधिनियम के तहत सभी अपराधों की सुनवाई बाल न्यायालय में की जाए।
बाल कल्याण समितियाँ (सीडब्ल्यूसी): यह प्रावधान करती है कि कोई ऐसा व्यक्ति सीडब्ल्यूसी का सदस्य बनने के योग्य नहीं होगा यदि वह-
मानव अधिकारों या बाल अधिकारों के उल्लंघन का दोषी है,
नैतिक अधमता से जुड़े अपराध के लिये दोषी ठहराया गया है,
केंद्र सरकार या किसी राज्य सरकार या किसी सरकारी उपक्रम की सेवा से हटा दिया गया है या बर्खास्त कर दिया गया है,
एक ज़िले में एक बाल देखभाल संस्थान के प्रबंधन का हिस्सा है।
सदस्यों को हटाना: समिति के किसी भी सदस्य की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा जाँच के बाद समाप्त कर दी जाएगी यदि वह बिना किसी वैध कारण के लगातार तीन महीने तक सीडब्ल्यूसी की कार्यवाही में भाग लेने में विफल रहता है या यदि एक वर्ष में तीन-चौथाई से कम बैठकों में उपस्थित होने में विफल रहता है।
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किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015
संसद ने किशोर अपराध कानून और किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 को बदलने के लिये किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 को पारित किया था।
यह अधिनियम जघन्य अपराधों में संलिप्त 16-18 वर्ष की आयु के बीच के किशोरों (जुवेनाइल) के ऊपर बालिगों के समान मुकदमा चलाने की अनुमति देता है।
इस अधिनियम में गोद लेने के लिये माता-पिता की योग्यता और गोद लेने की पद्धति को शामिल किया गया है। अधिनियम ने हिंदू दत्तक ग्रहण व रखरखाव अधिनियम (1956) और वार्ड के संरक्षक अधिनियम (1890) को अधिक सार्वभौमिक रूप से सुलभ दत्तक कानून के साथ बदल दिया।
अधिनियम गोद लेने से संबंधित मामलों के लिये केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (Central Adoption Resource Authority-CARA) को वैधानि क निकाय बनाता है यह भारतीय अनाथ बच्चों के पालन-पोषण, देखभाल एवं उन्हें गोद देने के लिये एक नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करता है।
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