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चालबाज़ चीन की चाल को भारतीय सेना ने किया नाकाम

क्या है मामला 

भारत-चीन सीमा पर तनाव के बीच एक बार फिर चीन ने भारत में घुसपैठ करने की कोशिश की है। पेंगौंग त्यो झील के पास चीनी सैनिक पूरी तैयारी की साथ एलएसी की तरफ बढ़ रहे थे, लेकिन पहले से तैयार भारतीय सेना ने उसे एक बार फिर पीछे धकेल दिया। सोमवार शाम चीनी सेना ने इस मामले पर कहा कि वह दृढ़ता से भारत को तनाव से बचने के लिए चीन-भारत सीमा से अपने सैनिकों को वापस लेने की मांग करती है। चीन की इस मांग से साफ है कि चीनी सेना को अब भारतीय सेना की ओर से कार्रवाई का डर सताने लगा है।

चीन की चाल 

हालांकि चीन का यह भी कहना है कि उसके सैनिकों ने भारत के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) का सख्ती से पालन किया है। चीन ने भारतीय सेना के उस बयान का खंडन किया, जिसमें कहा गया था कि चीनी सशस्त्र बलों ने पैंगोंग त्सो के दक्षिणी तट पर उत्तेजक सैन्य कार्रवाई की थी। भारतीय सेना के बयान पर एक सवाल के जवाब में चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के सैनिक कभी भी लाइन पार नहीं करते हैं। मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने कहा कि सीमा पर सेना के जवान जमीन पर मुद्दों को लेकर निकट संपर्क में हैं।

इससे पहले भारतीय सेना ने चीनी सैनिकों पर यथास्थिति को बदलने की कोशिश करने का आरोप लगाया। बयान में कहा गया है कि भारतीय सैनिकों ने पीएलए को जमीन पर तथ्यों को बदलने की कोशिश करने से रोका। मुद्दों को हल करने के लिए चुशुल में ब्रिगेड कमांडर स्तर की फ्लैग मीटिंग की गई है।

पटकथा 

यह मुद्दा 1914 से ही चला आ रहा जब चीन ने तत्कालीन ब्रिटिश भारत, तिब्बत और चीन के बीच मैकमोहन लाइन समझौते को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और तिब्बत को एक स्वायत्त क्षेत्र के रूप में मान्यता दी गयी। चीन ने न तो तिब्बत की स्वायत्तता और न ही मैकमोहन रेखा समझौते को स्वीकार किया।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, दोनों पक्षों के बीच तनाव के दौर में तत्कालीन भारतीय प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू की ” हिंदी-चीनी भाई भाई ” या एशियाई एकजुटता, और भारत के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन के शामिल होने के समर्थन के बावजूद, चीन ने भारत के प्रति शत्रुतापूर्ण नीति अपनाई।

1962 में दोनों एशियाई शक्तियों के संबंध बिगड़ने लगे और 1962 में युद्ध छिड़ गया। चीन ने अक्साई चिन में 43,000 वर्ग किलोमीटर भारतीय भूमि पर कब्जा कर लिया। 1000 से अधिक भारतीय सैनिक मारे गए और 3000 पकड़े गए। लगभग 800 चीनी सैनिक भी मारे गए।

हाल की इस घटना की पटकथा, 15 जून को गलवान घाटी चीनी सैनिकों के अवैध और आक्रामक घुसपैठ के बाद शुरू हुई; जिसमें अंत में सीमा सैनिकों के झड़प के बाद दोनों पक्षों के बीच सेना को हटाने के लिए कई बैठकें की जा चुकी हैं, लेकिन चालबाज चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। हालांकि भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि चीन को पूरी तरह से पीछे हटना चाहिए। केन्द्र सरकार की ओर से यह संदेश दिया गया है कि भारतीय सेना यथास्थिति को बदलने के चीनी प्रयासों पर अडिग रहेगी और इस बात पर जोर दिया है कि पीएलए को अपनी 20 अप्रैल की स्थिति में लौटना होगा।

पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के सैनिकों ने 29 और 30 अगस्त की रात को सैन्य और राजनयिक बातचीत को उल्लंघन किया। भारतीय सेना के पीआरओ कर्नल अमन आनंद ने एक बयान में कहा कि चीनी पक्ष ने यथास्थिति को बदलने के लिए भड़काऊ सैन्य कदम उठाए हैं। गलवान घाटी की घटना के बाद सरकार ने सशस्त्र बलों को एलएसी के साथ किसी भी चीनी दुस्साहसियों को जवाब देने के लिए पूर्ण स्वतंत्रता दी है।

भारत ने चीन को दिए स्पष्ट संकेत   

चीन को भारत की ओर से की जा रही इस जवाबी कार्रवाई की चिंता सताने लग गई है। वायुसेना ने वायु रक्षा प्रणालियों के साथ-साथ अपने सीमावर्ती लड़ाकू जेटों की बड़ी संख्या और हेलीकॉप्टरों को कई प्रमुख एयरबेसों में स्थानांतरित कर दिया है। सेना ने घातक झड़पों के बाद सीमा पर आगे के स्थानों के लिए हजारों अतिरिक्त सैनिकों को भेज दिया है।

 

 

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