सेन्ट्रल डेस्क- हिन्दी जगत के मशहूर साहित्यकार और आलोचना के शिखर पुरुष नामवर सिंह का मंगलवार को रात 11 बजकर 52 मिनट पर दिल्ली के एम्स अस्पताल में निधन हो गया। बता दें कि नामवर सिंह पिछले एक महीने से एम्स के ट्रामा सेंटर में भर्ती थे। ब्रेन हैमरेज होने की वजह से उन्हें लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा गया था। आज उनका अंतिम संस्कार दिल्ली के लोधी घाट पर किया जाएगा।
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साहित्य और पत्रकारिता जगत के दिग्गजों ने उनके निधन पर शोक जताया है। वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी ने उनके निधन पर शोक जताते हुए कहा कि वे एक नायाब आलोचक और साहित्य में दूसरी परंपरा के अन्वेषी थे। बता दें कि आजाद भारत में साहित्य की दुनिया में नामवर सिंह का नाम सर्वाधिक चर्चा में रहा। ऐसा कहा जाता है कि उनकी ऐसी कोई भी किताब नहीं है जिस पर वाद-विवाद या संवाद नहीं हुआ हो।
नामवर सिंह का जीवन परिचय
28 जुलाई, 1926 को तत्कालीन बनारस जिले के जीयनपुर गांव में नामवर सिंह का जन्म हुआ था। उन्होंने साल 1941 में अपनी पहली कविता लिखी थी, जो ‘क्षत्रियमित्र’ पत्रिका में छपी थी। उन्होंने आलोचना और साक्षात्कार विधा को नई ऊंचाई दी है।
सन् 1951 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से एमए करने के दो साल बाद नामवर सिंह काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दी के व्याख्याता नियुक्त किए गए। इसके बाद सन् 1959 में उन्हें चकिया चंदौली से कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर लोकसभा चुनाव हारने के बाद बीएचयू से अप्रिय परिस्थितियों में नौकरी छोड़नी पड़ी थी।
सन् 1960 में वे बनारस वापस आ गए थे और सन् 1965 में जनयुग साप्ताहिक के संपादक का पद संभाला। सन् 1971 में उन्हें कविता के नए प्रतिमान के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से नावाजा गया। सन् 1974 में वो दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर नियुक्त किए गए और सन् 1987 में रिटायर हो गए।
नामवर सिंह की प्रमुख कृतियां
नामवर सिंह एक प्रखर वक्ता भी थे। बकलम खुद, हिंदी के विकास में अपभ्रंश का योगदान, आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियांष छायावाद, पृथ्वीराज रासो की भाषा, इतिहास और आलोचना, नई कहानी, कविता के नए प्रतिमान, दूसरी परंपरा की खोज उनकी प्रमुख कृतियां हैं।
रचनाएं
बकलम खुद – व्यक्तिव्यंजक निबन्धों का संग्रह, कविताओं तथा विविध विधाओं की गद्य रचनाओं के साथ संकलित
शोध
हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग – 1952
पृथ्वीराज रासो की भाषा – 1956 (अब संशोधित संस्करण ‘पृथ्वीराज रासो: भाषा और साहित्य’ नाम से उपलब्ध)
आलोचना
आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियां – 1954
छायावाद – 1955
इतिहास और आलोचना – 1957
कहानी : नयी कहानी – 1964
कविता के नये प्रतिमान – 1968
दूसरी परंपरा की खोज – 1982
वाद विवाद और संवाद – 1989