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Death Duty के नाम पर ट्रस्टियों ने दरभंगा राज के महल-गहने बेच दिए ! जानिए पूरी कहानी

क्या आप जानते हैं कि साल 1985 से पहले जब किसी धनी व्यक्ति, राजा या बड़े जमींदार की मृत्यु होती थी तो उसके बाद उनके वारिसों को सरकार को अलग से टैक्स देना पड़ता था जिसे Death Duty के नाम से भी जाना जाता था। अगर आप ये सोच रहे हैं कि यह कर मामूली शुल्क होता होगा तो आप गलत हैं। Death Duty यानि मृत्यु कर या मृत्यु शुल्क काफी बड़ी रकम हुआ करती थी और इस तरह की वास्तविक कहानियां भी मौजूद हैं जिसमें ये वर्णन किया गया है कि इस कर को चुकाने में कई राजा-महाराजाओं या बड़े जमींदारों की घर मकान बंगला या महंगे जेवरात भी बेचने पड़ गए थे। आज इस आर्टिकल में हम आपको मृत्यु कर या मृत्यु शुल्क के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं। इस पूरी आर्टिकल को आप इंडिया टूडे ग्रुप पर भी पढ़ सकते हैं और जहां से हमने इस संदर्भ में जानकारी हासिल की है।

Death Duty (मृत्यु शुल्क) क्या है?

Death Duty, जिसे Estate Duty या Inheritance Tax भी कहा जाता है, मृत व्यक्ति की संपत्ति पर लगाया जाने वाला एक कर है। यह कर संपत्ति के वारिसों को देना पड़ता है। Death Duty कई देशों में लागू होता है, लेकिन इसकी दरें और नियम अलग-अलग देशों में भिन्न होते हैं।

भारत में Death Duty:

भारत में Death Duty को 1985 में समाप्त कर दिया गया था। इससे पहले, यह कर 1881 से लागू था। दरभंगा के आखिरी महाराज कामेश्वर सिंह के निधन के बाद ट्रस्ट पर आरोप है कि Death Duty को चुकाने के नाम पर बहुत बड़ा हेरफेर किया गया था।बड़ी रानी राजलक्ष्मी की डायरी में इस बात का जिक्र है कि 14 दिसंबर, 1963 को सौराठ की जमीन बिक गई. 15 फरवरी, 1964 को कलकत्ता का दरभंगा हाउस डेथ ड्यूटी चुकाने के लिए बेच दिया गया. यह ड्यूटी चुकाने के लिए एंटीक ज्वेलरी बेचे जाने का भी जिक्र मिलता है. पर डेथ ड्यूटी इसके बाद भी चुकाई नहीं जा सकी। आपको जानकर हैरानी होगी की महंगा महल और एंटीक ज्वेलरी बेचे जाने के बावजूद डेथ ड्यूटी की रकम चुकाई नहीं जा सकी है। कामेश्वर धार्मिक ट्रस्ट के ट्रस्टियों पर आरोप है कि उन्होंने करोड़ो-अरबों की संपत्ति को औने पौने दाम पर बेचकर काफी मुनाफा कमाया।  

आजादी के बाद Death Duty:

आजादी के बाद, राजाओं और जमींदारों को Death Duty देना पड़ता था। इसके पीछे कुछ कारण थे:

  • संपत्ति का पुनर्वितरण: सरकार राजाओं और जमींदारों की विशाल संपत्ति को समाज के विभिन्न वर्गों में वितरित करना चाहती थी। Death Duty इस लक्ष्य को प्राप्त करने का एक साधन था।
  • राजस्व का स्रोत: सरकार को देश के पुनर्निर्माण और विकास के लिए राजस्व की आवश्यकता थी। Death Duty सरकार के लिए राजस्व का एक महत्वपूर्ण स्रोत था।
  • सामाजिक न्याय: सरकार का मानना था कि राजाओं और जमींदारों को उनकी संपत्ति पर कर देना चाहिए, क्योंकि उन्होंने समाज के अन्य वर्गों की तुलना में अधिक लाभ उठाया था।

Death Duty के खिलाफ विरोध:

राजाओं और जमींदारों ने Death Duty का विरोध किया। उनका तर्क था कि यह कर अन्यायपूर्ण और भेदभावपूर्ण था। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यह कर उनकी संपत्ति के अधिकार का उल्लंघन था।

Death Duty का समापन:

1985 में, सरकार ने Death Duty को समाप्त करने का फैसला किया। सरकार का तर्क था कि यह कर जटिल और महंगा था, और यह राजस्व का एक महत्वपूर्ण स्रोत नहीं था।

Death Duty के समापन के प्रभाव:

Death Duty के समापन का राजस्व पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। इसके अलावा, इसने संपत्ति के पुनर्वितरण के लक्ष्य को प्राप्त करने में बाधा उत्पन्न की।

आज Death Duty:

आज, भारत में Death Duty नहीं है। हालांकि, सरकार संपत्ति के हस्तांतरण पर अन्य करों को लागू करती है, जैसे कि Stamp Duty और Capital Gains Tax.

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