किसी भी देश की तरक़्क़ी शीर्ष नेतृत्व की सार्थक सोच औत दूर दृष्टि पर निर्भर करती है। शीर्ष नेतृत्व की सोच भले ही कठोर हों लेकिन अगर वह नेता देश के जनता को अपना लक्ष्य समझने में सफल हो जाए तो जनता साथ देती ही है। दुनिया भर के कर राजनेताओं की ऐसी मिसाल मिलती हैं।
लेकिन जैसे ही बात हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान या फिर वहन के PM इमरान ख़ान नियाज़ी की हो तो क्या कहने। अपने उल्टे सीधे बयानों के लिए मशहूर मियाँ इमरान ख़ान नियाज़ी कई कोमेडीयंस को बात की बात में पीछे छोड़ देते हैं।
पाकिस्तान चाहे जैसा भी हो, है तो अपना पड़ोसी ही। अब पड़ोसी के घर में दुःख हो तो खुद को भी बुरा ही लगता है। लेकिन शेखचिल्ली के सपनों के नवाब मियाँ नियाज़ी गाहे-ब-गाहे अपनी तो फ़ज़ीहत करवाते ही हैं साथ ही अपने मुल्क़, ब्यूरोक्रेसी, जनता और अपनी समझ के लिए भी कुछ सही नहीं कर पाते।
अभी हाल ही में भारत सरकार की तरफ़ से POK लिए कुछ कदम उठाए गए जिनमें भारत को अमेरिका का भी साथ मिल सकता है।
भारत की इस कूटनीतिक चाल से घबराए, तालिबान से कट्टर समर्थक पाकिस्तान को कुछ ख़ास तो करना आया नहीं। उल्टे कश्मीर पर UN resolution को कुछ इस जनता को बताने में लगे रहे कि UN Officials भी हैरान हो जाएँ।
इमरान खान के इस भाषण से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फ़ज़ीहत तो होती ही है लेकिन इससे बड़ा नुक़सान उस जनता को होता है जो इस प्रपंच कीं वजह से अपनी बुनियादी ज़रूरतों की भी बलि देती है।