सेंट्रल डेस्क, फलक इक़बाल:- पुराने दौर से ही भगवन विष्णु पूरी दुनिया की सर्वोच्च शक्ति तथा नियन्ता के रूप में माने जाते हैं। हिन्दू धर्म की गीता के अनुसार विष्णु परमेश्वर के तीन अहम रूपों में से एक रूप हैं। पुराणों में त्रिमूर्ति विष्णु को विश्व का पालनहार कहा गया है। न्याय परस्त, अन्याय के विनाश तथा जीव अर्थात मानव को परिस्थिति के अनुसार उचित मार्ग ग्रहण के निर्देश हेतु विभिन्न रूपों में अवतार ग्रहण करने वाले के रूप में विष्णु मान्य रहे हैं। पुराणों के अनुसार विष्णु की पत्नी लक्ष्मी हैं, उनका निवास क्षीर सागर, शयन शेषनाग के ऊपर है और उनकी नाभि से कमल निकलता है जिसमें ब्रह्मा जी स्थित हैं। वे अपने नीचे वाले बाये हाथ में पद्म, अपने नीचे वाले दाहिने हाथ में कौमोदकी नाम की गदा, ऊपर वाले बाये हाथ में पांचजन्य शंख और अपने ऊपर वाले दाहिने हाथ में सुदर्शन चक्र धारण करते हैं।
माना जाता है कि विष्णु शब्द की उत्पत्ति मुख्यतः विष धातु से हुई है। निरुक्त 12.18 में देवता यास्काचार्य ने मुख्य रूप से विष् धातु को ही व्याप्ति के अर्थ में लेते हुए उसे विष्णु शब्द बताया है। वैकल्पिक रूप से विष् धातु को भी प्रवेश के अर्थ में लिया गया है, क्योंकि वह विभु होने से सर्वत्र प्रवेश किया हुआ होता है। शंकराचार्य ने भी अपने विष्णुसहस्रनाम-भाष्य में विष्णु शब्द का अर्थ मुख्यतः व्यापक ही माना है, और उसकी स्पष्ट लिखा है कि व्याप्ति अर्थ के वाचक नुक् प्रत्ययान्त विष् धातु का रूप विष्णु बनता है। विष्णु पुराण में कहा गया है उस महात्मा की शक्ति इस सम्पूर्ण विश्व में प्रवेश किये हुए हैं, इसलिए वह विष्णु कहलाता है। बता दें कि विष् धातु का अर्थ प्रवेश करना है। ऐसा ही ऋग्वेद के प्रमुख भाष्यकारों, आचार्य सायण, श्रीपाद दामोदर सातवलेकर और महर्षि दयानन्द सरस्वती जैसे विद्वानों ने भी माना है। इससे स्पष्ट है कि विष्णु शब्द विष् धातु से निष्पन्न है और उसका अर्थ व्यापनयुक्त यानि सर्वव्यापक है।