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ट्रैन हुई लेट तो छूटी फ्लाइट, रेलवे को देना पड़ा जुर्माना ₹35000 का भुगतान

सोमवार 6 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में एक अहम फैसला लिया गया जिसके तहत कोर्ट ने एक यात्री की परेशानी को समझते हुए रेलवे पर जुर्माना लगाया। कोर्ट में एक यात्री द्वारा याचिका दर्ज की गई थी कि ट्रेन के 4 घंटा लेट होने की वजह से उसे भारी वित्तीय नुकसान हुआ साथ ही टैक्सी से यात्रा करनी पड़ी क्योंकि जम्मू से श्रीनगर के लिए ली गई फ्लाइट छूट गई।

यात्री के इस याचिका पर फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि यदि रेलवे अपनी ट्रेन के देरी से आने के कारणों का सबूत नहीं देती और यह साबित नहीं करती कि देरी उनके नियंत्रण से बाहर के कारणों की वजह से हुई है, तो उसे ट्रेन के देरी से पहुंचने के लिए मुआवजे का भुगतान करना होगा।

इतना ही नहीं शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के उस आदेश को भी बरकरार रखा जिसमें ट्रेन के देरी से आने के चलते उत्तर पश्चिम रेलवे को शिकायतकर्ता यात्री को 35 हजार रुपए मुआवजे का भुगतान करने के लिए कहा गया था। राष्ट्रीय आयोग ने अलवर के जिला उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम द्वारा पारित मूल मुआवजा आदेश की पुष्टि की थी, जिसे रेलवे ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट में रेलवे की ओर से पेश किए गए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने अपनी दलील में कहा कि ट्रेन के देर से चलने को रेलवे की ओर से सेवा में कमी नहीं माना जा सकता है। भाटी ने उस नियम का हवाला देते हुए कहा कि ट्रेन के देरी से चलने पर रेलवे की किसी तरह के मुआवजे का भुगतान करने की जिम्मेदारी नहीं होगी। इस नियम में बताया गया है कि ट्रेन के देरी से चलने और देर से गंतव्य पर पहुंचने के कई कारण हो सकते हैं।

बता दें कि जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने एएसजी के तर्क को खारिज कर दिया। पीठ ने अपने आदेश में कहा कि अगर ट्रेन देरी से पहुंची है और इसके लिए रेलवे के पास कोई वाजिब आधार नहीं है तो वह मुआवजा देने के लिए जिम्मेदार है।

‘यात्री रेलवे की दया पर नहीं रह सकता’ आगे
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘इसमें संदेह नहीं है कि सभी यात्रियों का वक्त कीमती है और जब वह चलते हैं तो आगे की बुकिंग भी होती है, जैसा मौजूदा केस में था। यह दौर प्रतिस्पर्धा और जवाबदेही का है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट को अगर होड़ में बने रहना है तो उन्हें प्राइवेट प्लेयर्स के साथ प्रतिस्पर्धा करनी होगी। उन्हें सिस्टम में सुधार करना होगा और अपने कामकाज को ठीक करना होगा। यात्री उनकी दया पर नहीं रह सकता। पब्लिक ट्रांसपोर्ट को अपनी जिम्मेदारी उठानी ही होगी।’

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