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गुनाहों से तौबा कर अल्लाह की इबादत में खुद को किया मशगूल

इस्लाम के सबसे पाक महीनों में शुमार रमजान का महीना जारी है। गुनाहों से तौबा करने व अल्लाह की इबादत में खुद को मशगुल कर देने के क्रम में मुस्लिम समाज के लोगों ने लगातार कई दिनों से अपना रोजा पूरा कर रहे है। हर दिन की तरह सुबह सादिक से पूर्व सभी रोज़ेदा सेहरी खाते है और पूरे दिन बिना अन्न-जल के अकीदत के साथ रोजा रखते है। चांद ग्रब होते-होते रोजेदारों ने इफ्तार कर रोजा खोलते है।

इस पाक महिने में छोटे बच्चें भी रोजा रखने में उत्साहित दिख रहे हैं। रात में जिले के तमाम मस्जिदों में नमाजियों द्वारा तरावीह पढ़ी जा रही है। मस्जिदों के आस-पास  विशेष रूप से साफ-सफाई का ध्यान रखा जाता है। रमजान के मुबारक महीने में इबादत का खास महत्त्व है। इस महीने पवित्र कुरान की तिलावत बहूत कसरत के की जाती है पूरे दुनिया मे चारों तरफ से कुरान की तिलावक की आवाज़ें घरों में गूँजती हैं।रमजान की रात में एक विशेष नमाज होती है जिसे तरावीह कहते हैं। रमजान की 21, 23, 25, 27, 29वीं रात शब-ए-कद्र की रात होती है। यह रात एक हजार रातों से बेहतर होती है। इन रातों को इबादत करने से गुनाह माफ हो जाते हैं।

 

सदका फितरा निकालने का महीना

रमजान में दान पुण्य का भी खास महत्त्व है। इस महीने में जो गरीबों और बेसहारों को जितना दान करेगा उसे अल्लाह उतना ही नवाजेगा। इस्लाम धर्म में ये कहा गया है कि जिसने एक रोजेदार को इफ्तार करवाया उसे सत्तर लोगों के बराबर खाना खिलाने का सवाब मिलता है। इस महीने में कमजोर और बेसहारा लोगों की मदद की जाती है। ताकि लोग ईद की खुशी में शामिल हो सके। रमजान में लोगों को खासकर बुराई से बचना चाहिए। रमजान के पाक महीने में बच्चे भी खुदा की नेमतों को हासिल करना चाहता है।

रमजान के पाक महीने में हर इंसान खुदा की नेमतों को पाना चाहता है। इसमें बड़ों के साथ बच्चे भी पीछे नहीं है। इस भीषण गर्मी व चिलचिलाती धूप में भी बच्चे प्रतिदिन रोजा रख रहे हैं। खुदा को नन्हे रोजेदार बहुत पसंद है। खुदा रोजा रखने वाले छोटे बच्चों के लिए रहमत व बरकत का दरवाजा खोल देता है। इसीलिये नन्हे बच्चे भी रोजा रखते है।

खुद को खुदा की राह में समर्पित कर देने का प्रतीक पाक है ‘माह-ए-रमजान’

माह-ए-रमजान न सिर्फ रहमतों और बरकतों की बारिश का वकफा है बल्कि समूची मानव जाति को प्रेम, भाईचारे और इंसानियत का संदेश भी देता है कई उलेमा की रॉय इस प्रकार है। बताया कि मौजूदा हालात में रमजान का संदेश और भी प्रासंगिक हो गया है। इस पाक महीने में अल्लाह अपने बंदों पर रहमतों का खजाना लुटाता है और भूखे-प्यासे रहकर खुदा की इबादत करने वालों के गुनाह माफ हो जाते हैं। इस माह में दोजख के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं और जन्नत की राह खुल जाती है। उन्होंने कहा कि बुराई से घिरी इस दुनिया में रमजान का संदेश और भी प्रासंगिक हो गया है। हर तरफ झूठ, मक्कारी, अश्लीलता और यौनाचार का बोलबाला हो चुका है। ऐसे में मानव जाति को संयम और आत्मनियंत्रण का संदेश देने वाले रोजे का महत्व और भी बढ़ गया है।

सेहरी और इफ्तार रोजे का अहम हिस्सा है

सहरी, रोजे का अहम हिस्सा है। सहरी का मतलब होता है सूरज निकलने से पहले ही उठकर रोज़दार खाना-पीना करे। सुबह सादिक होने के बाद रोजदार सेहरी नहीं ले सकते। सेहरी की ही तरह रोजे का दूसरा अहम हिस्सा है इफ्तार।  सेहरी के बाद सूरज के ग्रब होने तक कुछ भी खाने-पीने की मनाही होती है। सूरज ग्रब हो जाने के बाद रोजा खोला जाता है, जिसे इफ्तार कहते हैं। रमजान के महीने का आज आखरी जुमा मुसलमानों ने अलविदा जुमा के रूप में अदा किया ,एवं अल्ल्लाह के बारगाह में सर झुकाकर मगफिरत की दुआ रोरो कर मांगी, आज अलविदा जुमा को लेकर जिले के सभी जामा मस्जिदों में सुबह से ही नमाजियों की तादाद जमा होने शुरू होगया था

शिवहर से मोहम्मद हसनैन

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