बात बीते मंगलबार 12:20 की है जंहा हाल ही में मेरा इन्दिरा गांधी यूनिवर्सिटी जाना हुआ, एक तो काम नही हुआ वंहा दूसरा अकेली थी वक्त बोरियत भरा और भी उबाऊ हो गया में अब मोहन स्टेट के स्टैंड पर अपनी घर की तरफ जाने वाली डीटीसी 34 नम्बर की बस का पिछले 10 मिनिट से इंतज़ार कर रही थी। लेकिन इस नम्बर की बस नही आई मेरे साथ इस स्टैंड पर 3 या 4 लोग और भी मौजूद थे वंहा लेकिन उनकी बस आ गई थी। सब जा चुके थे में ही वंहा स्टैंड पर अकेली बैठी थी अचानक से थोड़ी दूर स्टैंड के बायीं ओर देखा वहां दो मजदूर बड़े इत्मीनान से मेहनत कर रहे थे मजदूर की पत्नी पूरे साहस से ईटे ढोहने में अपने पति का साथ दे रही थी में बड़े असमंज में उन दोनो को देखे जा रही थी ये इतनी कड़ी मेहनत में इतने संवेदनसील होकर एकदूसरे का साथ दे रहे है, मैंने महसूस किया कुछ रिश्ते वाकई आत्मा से बनते इच्छाओ से नही जो रिश्ते मुक्कमल नही होते वो सिर्फ इच्छाओ से बनाये जाते होंगे क्युकी आत्मा तो कभी फरेब नही करती इच्छाएं कभी स्थिर नही रहती। इसलिए लोग रिश्तो में टिक नही पाते ज्यादा वक्त तक शायद, इच्छा और आत्मा में यही फर्क रहता होगा मेरे टूटे हुए शब्द उनके व्यक्तित्व ओर रिश्ते को शायद जाहिर ना कर सके, लेकिन उनके प्रति अपनी सहानुभूति को रोक ना सकी कह देना जरूरी लगा।
खैर इनसब बातो से सबसे दिलचस्प बात कुछ और है जिस वजह से ये सारी बाते याद रह गयी। उन्ही मजदूर का एक छोटा बच्चा भी था 6 महीने का होगा फुटपाथ पे बिस्तर पर लेटा हुआ आसमान की ओर नीम के पत्तो को एक टक देख रहा था, कमाल है ये परिस्थतियां भी अपने माहौल में ढालना सिखा देती है, एक ये भी बच्चा है जो बिना रोये खेले जा रहा है इतनी देर से, और एक और बच्चा है मेरे रूम के सामने रहता है रोता ही रहता है दिन में भी जब कभी रात को जगी होती तो उसके रोने की आवाज़ जरूर सुनाई देती है पुरे घर में तो उसे लोग संभालने वाले है उसे फिर भी रोता जरूर है। वो बात अलग है मुझे वो रोता हुआ भी अच्छा लगता मुझे मेरा लगाव उस बच्चे बहुत ज्यादा है में अक्सर उसे खिलाया करती हूं। यही स्टैंड पर बैठे हुए इस बच्चे को देख कर मुझे उसकी याद आ गई। लो अब 34 बस भी आ गई में बड़ी जल्दबाजी से उसकी ओर दौड़ी ओर हैरानी से वापस आ गई क्योकि ये सिर्फ बदरपुर बॉर्डर तक जाएगी आगे नही जाएगी जब में स्टैंड पे वापस आकर बैठी उसी स्टैंड के बगल में पीछे एक ओर बच्चा खड़ा था। अभी जिस नन्हे बच्चे की बात कर रही थी ये उसका बड़ा भाई है लगभग 5 या 6 साल का होगा। मैंने ऐसे ही उसका नाम पूछा अच्छा तुम्हरा नाम क्या है यह सुनते उसने हैरानी से मुझे देखा ओर भाग गया, मैंने फिर सड़क की ओर देखा पता नही ये बस कितनी देर में आएगी मोबाइल में टाइम देखा 1:20 हो गया फिर फोन में सिंचन कार्टून देखने लगी। वो बच्चा जो भाग के गया था कुछ मिनट में मेरे पीछे खड़ा मुझे ना देख कर उसका पूरा ध्यान मेरे मोबाइल स्क्रीन पर था वो बड़े इत्मिनान से उस कार्टून को देख रहा था, मैंने हाथ बड़ा के फ़ोन उसी ओर किया वो स्टैंड पर बगल में मेरे पास आहिस्ते से बैठ गया थोड़ी देर कार्टून देखा पर उसे सिंचन कार्टून बिल्कुल समझ नही आ रहा था या देखना नही चाह रहा उसने एक वीडियो बताया में समझ गयी ये ‘मेक जोक ऑफ कार्टून’ की बात कर रहा है, क्योंकि उसके सभी एपीसोड मेरे छोटे भाई ने पहले ही दिखा रखे थे। कुछ मिनट से वो अब वही कार्टून फोन में देख रहा था। मैंने फिर अपनी बात दोहराते हुए उससे पूछा तुम्हरा नाम क्या है? ओखिलेश ये जवाब उसने बड़ी उत्सुकता से दिया, मैंने उसकी उत्सुकता बनाये रखने के लिए फिर से पूछा आज खाना खाया ? उसने मेरी तरफ देखे बिना कहा। हाँ मैंने फिर पूछा क्या खाया उसने बिना मेरी तरफ देखे अनमने ढंग से धीरे से कहा लोटी। ये जानती थी उसे मेरी बात में दिलचस्पी नही मेरी बात का मेरे लिये बस जवाब दे रहा था बाकी ध्यान उसका फ़ोन पर ही था। मैंने फिर पूछा अच्छा तुम्हे कोई गाना आता है। उसने अब कोई जवाब नही दिया।
फिर से पूछा अच्छा बताओ ना तुम्हे कोई गाना आता है वरना में अब मोबाइल ले लूगी तुमसे मुझे मालुम था एक बच्चे से किस तरह बात की जाती है इसलिए मैंने अपने लहजे में सयंम बनाए रखा। उसने बड़ी तेज़ आवाज़ में गाया “तू जिन्द बे तू ही जहान बे तू है दुनिया मेरी, इसबार में चौक गयी थी उसकी इतनी तेज आवाज से मैंने कहा! ऐसे नही गाया जाता मैंने उसे समझाते हुए किसी संगीत के सुर में गाया।
तू ही मेरी दुनिया जहान बे तेरे बाजू कोन है मेरा उसने मेरी आवाज को अनसुना कर दिया अब भी फ़ोन में ही लगा था । वैसे ये पहली बार हुआ बिना किसी के कहने पर गाया ओर कोई प्रतिक्रिया नही मिली, थोड़ी सी हंसी भी आई मगर चुपचाप बैठ गयी देखा ट्रैफिक के शोर से सड़क की तरफ देखा सामने 34 महरौली रोड की बस खड़ी थी मैंने अपना मोबाइल छीनते हुए भागी बस में आकर सीट पर बैठ गई। बच्चा बड़ी हैरानी से मुझे देख रहा था ट्रैफिक सिंग्नल रेड से ग्रीन हो गया वो बच्चा हंसने लगा हाथ हिलाते हुए बाय- बाय बस आगे बढ़ गई वो दृश्य हमेशा के लिए ओझल हो गया आंखों से लेकिन मेरी स्मृति से कभी न हो सके, इस भगति दौड़ती जिंदगी में कुछ पल ऐसे भी आते है जो हमेशा के लिए जिंदगी के किसी कोने में ठहर जाते है। जिंदगी में अनुभव होने से ज्यादा जिंदगी की खूबसूरती को महसूस किया जाए। शायद दुनिया मे मासूमियत से बढ़कर कुछ भी नही है पहली बार मैंने इतनी सच्ची सी मुस्कान को गौर से देखा था वो मासूम सा चेहरा हंसता हुआ अब नज़र आ रहा मुस्कान इतनी खूबसूरत चीज होती है इतनी गौर से पहले कभी नही देखा उस नन्ही सी मुस्कान को कभी नही भुलाया जा सकता पता नही उस रोज घर आने में ना जाने क्यों जल्दबाजी थी अब कल ही डॉक पोस्ट के द्वारा मेरी बाकी बची हुई किताबें आ गयी मोहन स्टेट शायद जाना नही होगा और उस बच्चे से मिलना भी कभी नहीं होगा ,लेकिन वो बच्चा मुझे हमेशा याद रहेगा जैसे अब भी उसके हंसते हुए चेहरे को याद कर रही हु .. याद रह जाने बाली बात। रोजाना की तरह ये बीते महीने के साथ वक्त और हफ्ता भी चला गया मार्च का महीना भी कोई खास बात नही हुई लेकिन कभी इतनी खूबसूरत सी मासूम मुस्कान को इससे पहले कभी नही देखा। ये मेरे लिए नया अनुभव था तुम भी देखना गौर से कभी हंसते हुए बच्चे को देखना कुदरत की सबसे खूबसूरत चीज में से एक है मुस्कान।
WRITTEN BY- RISHU TOMAR