भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इस समय एक साथ कई बड़े प्रोजेक्ट्स प्र कार्य करने में लगा हुआ है। एक तरफ जहां वैज्ञानिकों ने अब तक चंद्रयान-2 के विक्रम लैंड से संपर्क की कोशिश में हार नहीं मानी है। वहीं दूसरी ओर भारत के पहले मानव मिशन गगनयान की भी तैयारी जारी है। इस बीच अब इसरो प्रमुख के. सिवन ने एक और बड़े प्रोजेक्ट के बारे में जानकारी दी है। यह ऐसा है जो इसरो ने पहले कभी नहीं किया।
डॉ. के. सिवन ने अंतरिक्ष में भारत के अपने स्टेश के बारे में बात की है। कुछ महीने पहले के. सिवन ने बताया था कि भारत अपना स्पेस स्टेशन बनाने वाला है। अब इसके लिए इसरो अगले साल स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट करने जा रहा है।
इस प्रयोग के लिए इसरो दो सैटेलाइट्स को एक पीएसएलवी रॉकेट की मदद से अंतरिक्ष में भेजेगा। ये दो सैटेलाइट मॉड्यूल इस तरह तैयार किए जाएंगे, कि ये अंतरिक्ष में रॉकेट से बाहर आने के बाद एक दूसरे से जुड़ सकें। यही सबसे जटिल प्रक्रिया भी होगी।
इसरो प्रमुख के अनुसार जुड़ने की ये प्रक्रिया ठीक वैसी ही होगी जैसे इमारत बनाने के लिए एक ईंट से दूसरी ईंट को जोड़ना। छोटी-छोटी चीजें जुड़कर बड़ा आकार बनाती हैं। स्पेस स्टेशन बनाने के लिए भी ये प्रक्रिया सबसे अहम है।
इस वक्त इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन काम कर रहा है जिसे पांच देशों की अंतरिक्ष एजेंसियों ने मिलकर बनाया है – अमेरिका , रूस , जापान , यूरोप और कनाडा । इन सभी को मिलकर आईएसएस बनाने में करीब 13 साल लगे थे। इसके लिए भी डॉकिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया था। ISS के लिए कुल 40 बार डॉकिंग की गई थी।
इस प्रयोग की सबसे मुश्किल प्रक्रिया होगी अंतरिक्ष में दो सैटेलाइट्स की गति कम कर उन्हें एक-दूसरे से जोड़ना। क्योंकि अगर गति कम नहीं हुई, तो वे आपस में टकरा जाएंगे। इस प्रयोग के लिए इसरो को सरकार ने फिलहाल 10 करोड़ रुपये दिए हैं।
Written by: prachi jain
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