पाकिस्तान में एक मुस्लिम महिला को व्हॉट्सऐप के जरिए ईशनिंदा करने वाले संदेश और पैगंबर मोहम्मद के कार्टून भेजने का दोषी पाए जाने के बाद मौत की सजा सुनाई है बता दे की बुधवार को पाकिस्तान की अदालत ने महिला को व्हॉट्सऐप पर ईशनिंदा करने वाले संदेश और पैगंबर मोहम्मद के कार्टून भेजने का दोषी पाए जाने के बाद मौत की सजा सुनाई है.ईशनिंदा मुस्लिम बहुल पाकिस्तान में एक बेहद संवेदनशील मुद्दा है और इसे प्रतिबंधित करने वाले कानूनों में संभावित मौत की सजा सुनाई जा सकती है. हालांकि इसे कभी भी अपराध के लिए लागू नहीं किया गया है. अदालत की तरफ से जारी संक्षिप्त विवरण के अनुसार 26 वर्षीय अनीका अतीक को मई 2020 में गिरफ्तार किया गया था और उसके व्हॉट्सऐप स्टेटस के रूप में “ईशनिंदा सामग्री” पोस्ट करने का आरोप लगाया गया था वही जब उसके दोस्त ने स्टेटस हटाने का ज़िक्र किया था तब अतीक ने उस संदेश को अपने दोस्त को ही भेज दिया.
इस्लाम में पैगंबर मोहम्मद के चित्र बनाना प्रतिबंधित है. ईशनिंदा के मैसेज भेजने का आरोप इसी शिकायत पर अदालत ने अतीक को दोषी ठहराया था और उसे मौत की सजा सुनाई है.बता दे की रावलपिंडी के गैरीसन शहर में सजा की घोषणा की गई,और अदालत ने अतीक को “उसकी गर्दन से तब तक लटकाए रखने” का आदेश दिया जब तक कि वह मर नहीं जाए इतना ही नहीं उन्हें 20 साल की जेल की सजा भी दी गई है.
खबरों के मुताबिक पाकिस्तान में आज भी लगभग 80 लोग ईशनिंदा के आरोपों में जेलों में बंद हैं. उनमें से कम से कम आधे मौत की सजा या उम्रकैद पा सकते हैं जबकि कई मामलों में एक मुस्लिम पर दूसरा मुस्लिम व्यक्ति ईशनिंदा का आरोप लगाता है, वही अधिकार कार्यकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि धार्मिक अल्पसंख्यक विशेष रूप से ईसाई इस झगड़े में फंस जाते हैं और व्यक्तिगत विवाद को निपटाने के लिए उनके खिलाफ ईशनिंदा के आरोपों का इस्तेमाल किया जाता है. आरोपी पीट-पीटकर मारे जाते हैं
बता दे की पिछले साल दिसंबर में पाकिस्तान में काम करने वाले एक श्रीलंकाई मैनेजर को ईशनिंदा का आरोप लगाने के बाद भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला था और उसे जला डाला था.वही पाकिस्तान के मानवाधिकर समूहों के मुताबिक देश में ईशनिंदा कानून का इस्तेमाल निजी दुश्मनी या फिर अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित करने के लिए होता आया है. इस्लामी कट्टरपंथ पाकिस्तान में चरम पर है और इस तरह के आरोपों पर लोगो की पीट-पीटकर हत्या या सड़क पर कानून को अपने हाथ में लेने वालों की कोई कमी नहीं है. इसके अलावा 1980 से अब तक ईशनिंदा के करीब 75 आरोपियों की कोर्ट में सुनवाई खत्म होने से पहले ही भीड़ द्वारा हत्या की जा चुकी है.