मनुष्य ने जो उन्नति की है, वह समाज में रहकर की है। यदि कोई व्यक्ति समाज के हितकारी नियमों का पालन नहीं करते और उसकी तरक्की में सहयोग देना अपना कर्तव्य नहीं समझते तो वह समाज में रहने योग्य कदापि नहीं हैं। उक्त बातें ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं लब्ध प्रतिष्ठ प्रबंधन विशेषज्ञ डॉ सुरेंद्र मोहन झा ने मंगलवार को एम.आर.एम कॉलेज में आयोजित प्रथम दीक्षांत समारोह में दीक्षांत अभिभाषण देते हुए कही।
उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में नागरिकता की भावना में काफी कमी आई है। अधिकतर लोग सामाजिक हित की बजाय व्यक्तिगत लाभ को अधिक महत्व देने में लगे हैं। लोग अपने स्वार्थ में इस कदर अंधे होते होते जा रहे हैं कि उन्हें समाज के दूसरे लोगों के हित-अहित का तनिक भी ख्याल नहीं होता। और तो और वह समाज विरोधी व्यवहार करने तक से बाज नहीं आते। उन्होंने उपस्थित जनों से अपना निजी हित छोड़कर समाज के हित को साधने वाले कदम उठाने का आह्वान किया ।
अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि विश्व के समस्त गुण सदाचार से निहित है। सदाचार से शरीर स्वस्थ, बुद्धि निर्मल और मन प्रसन्न रहता है । सदाचार हमें सफलता का मार्ग दिखाता है। सदाचार आशा और विश्वास का विशाल कोष है। सदाचारी मनुष्य संसार में किसी भी कल्याणकारी वस्तु को बड़ी ही सहजता से प्राप्त कर सकता है। उन्होंने कहा कि सदाचार से उत्तम आयु तथा असीमित धन की प्राप्ति होती है। सदाचार का पालन स्वयं की, समाज की और राष्ट्र की उन्नति के लिए परम आवश्यक है।
पूर्व कुलपति ने कहा कि वर्तमान समय में हर कोई नौकरी की गारंटी के साथ-साथ अथाह संपत्ति पाने का ख्वाहिश रखता है। लेकिन यह तब तक संभव नहीं है जब तक कि हम ‘जॉब सीकर’ की बजाय ‘जॉब क्रिएटर’ की पंक्ति में खुद को खड़ा न करें। उन्होंने कहा कि छात्रों के बीच रहना उन्हें काफी अच्छा लगता है। जीवन का हर पल उन्होंने छात्रों के साथ जिया है और हर पल समाज को वह अपने छात्रों को कुछ नया प्रदान करने की कोशिश की है। डॉ झा ने कहा कि ‘पीड़ा से रहना’ और ‘पीड़ा में रहना’ हमारी क्षमता को प्रभावित करती है। इसलिए हमारी कोशिश होनी चाहिए कि उत्तम एवं जनकल्याणकारी विचारों के साथ साथ हम अपनी ऊर्जा को संचित एवं संबंर्द्धि करते हुए स्वयं को क्षमतावान बनावें।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो सुरेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि उच्च शिक्षा हमारे राष्ट्र को कुशल जनशक्ति का विशाल भंडार उपलब्ध कराने की कुंजी है। यह न केवल एक विद्यार्थी की जीविकोपार्जन की संभावनाओं को तय करती है। बल्कि उसके व्यक्तित्व को भी नई दिशा देती है। हमारे देश की शिक्षा प्रणाली पर मात्रा और गुणवत्ता दोनों की मांग का दबाव है। आज विश्वविद्यालयों में प्रवेश के लिए इच्छुक विद्यार्थियों की संख्या सरकारी शैक्षिक संस्थानों की क्षमता से कहीं अधिक है। लिहाजा, हमें मात्रा के साथ-साथ गुणवत्ता पर भी ध्यान देना होगा। अपने संबोधन में उन्होंने डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की बातों का जिक्र करते हुए कहा कि नारी शिक्षा के बिना समाज का सर्वांगीण विकास नहीं हो सकता। उन्होंनेकहा कि आज देश को आजाद हुए 70 वर्ष से अधिक हो चुके हैं। आजादी के समय देश में महाविद्यालयों की संख्या 500 से भी कम थी जो कि अब बढ़कर 40 हजार से ज्यादा हो गई है। लेकिन विडंबना है कि शिक्षा के इतने प्रचार-प्रसार के बावजूद गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हम सबों के लिए आज भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
अपने संबोधन में उन्होंने विद्वत जनों से ज्ञान आधारित शिक्षा प्रदान करने के लिए आगे आने का आह्वान किया । उन्होंने कहा कि रटंत विद्या के बल पर हासिल की हुई डिग्री से ना छात्र-छात्राओं का भला होता है और ना ही समाज इससे लाभान्वित होता है। लिहाजा, ज्ञान आधारित शिक्षा ही भारत को पुनः विश्व गुरु बनाएगी।
उन्होंने कहा कि समाज में आज जो विकृतियां दिखाई पड़ रही है इसका मुख्य कारण शिक्षा में नैतिक मूल्यों और संस्कारों का घोर अभाव है और हमें इससे चुनौती लेने के लिए तैयार रहना होगा। प्रो सिंह ने आज की युवा पीढ़ी के बौद्धिक दिवालियापन का मुख्य कारण शिक्षा का भारत की ज्ञान परंपरा से दूर होना बताया। उन्होंने कहा कि हम अध्ययन, मनन, चिंतन और उपयोग के चार महत्वपूर्ण सोपान को लगभग भूल से गए हैं । हम प्रश्न, प्रति प्रश्न, परि प्रश्न की तिर्यक को कभी समझने का प्रयास ही नहीं करते। हम केवल मस्तिष्क की प्रगति तक सीमित हो गए हैं। हाथ और हृदय को मानो भूल से गए हैं। अतः नए सिरे से विचार कर शिक्षा को नया कलेवर देना समय की मांग है। इसका कोई अन्य विकल्प नहीं हो सकता।
अपने संबोधन में उन्होंने विगत कुछ वर्षों में महाविद्यालय के आधारभूत संरचनाओं में क्रमशः विकास के लिए प्रधानाचार्य को बधाई दी। उन्होंने इस बात पर खुशी जाहिर की कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय एवं राज भवन पटना के डिजिटल इनीशिएटिव के क्षेत्र की स्वप्निल योजना के क्रियान्वयन में उत्कृष्ट पहल करते हुए महाविद्यालय ने नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी और वर्चुअल लैब आदि नवीनतम तकनीकों का लाभ अपने छात्रों को देना शुरू कर दिया है। उन्होंने डिग्री ले रही छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि जीवन में कुछ भी असंभव नहीं है, बस दृढ़ निश्चय होना चाहिए। अपने ऊपर भरोसा है तो कामयाबी आपसे ज्यादा दिन दूर नहीं रह सकती और फिर कठिन परिश्रम का तो कोई विकल्प हो ही नहीं सकता।
इससे पूर्व महाविद्यालय के प्रधानाचार्य डॉ अरविंद कुमार झा ने महाविद्यालय का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। अपने प्रतिवेदन में उन्होंने बताया कि वर्ष 2018 में 20 विषयों में कुल मिलाकर 996 छात्राएं विश्वविद्यालय की परीक्षा में शामिल हुई थी, जिनमें से 357 छात्राएं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुई। 557 छात्राएं द्वितीय श्रेणी से उत्तीर्ण हुई। इन छात्राओं में से 110 छात्राओं ने आज डिग्री लेने के लिए दीक्षांत समारोह में सक्रिय उपस्थिति दर्ज की है। उन्होंने कहा कि उन्हें इस महाविद्यालय में योगदान दिए 1 वर्ष से भी कम समय हुए हैं। लेकिन महाविद्यालय की शैक्षणिक स्थिति में सुधार के लिए लगातार संगठित प्रयास किए जा रहे हैं। इसमें उन्हें महाविद्यालय के शिक्षक, कर्मियों एवं विश्वविद्यालय का पूरा सहयोग मिल रहा है। उन्होंने कहा कि कुलपति महोदय की प्रेरणा से महाविद्यालय में जहां अनेक डिजिटल इनिशिएटिव आरंभ किए गए हैं वहीं नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी के माध्यम से अधिकांश टेक्सबुक ऑनलाइन छात्रों को मिलने आरंभ हो गये हैं। उन्होंने महाविद्यालय में वर्ग कक्ष की भारी कमी का जिक्र करते हुए कहा कि इससे ककाएं काफी प्रभावित हो रही है।
कहा कि इस दिशा में भी उन्हें आंशिक सफलता मिली है। कुलपति की कृपा से महाविद्यालय परिसर अवस्थित चार महाविद्यालय को हस्तांतरित हो चुके हैं। इनमें से एक आवास में अंग्रेजी, उर्दू तथा हिंदी विभागों को शुरू किया गया है। जबकि शेष 3 क्वार्टर का वास्तविक हस्तांतरण होना अभी बांकी है। उन्होंने अपने प्रतिवेदन में छात्राओं की मूलभूत सुविधाओं का जिक्र करते हुए बताया कि महाविद्यालय के परिसर स्थित विभिन्न पार्क को आदर्श रूप में विकसित किया जा रहा है। जबकि स्टील रेलिंग के साथ इसे आकर्षक रूप दिया गया है। उन्होंने बताया कि इस वर्ष पार्क में 14 सीमेंट बेंच भी बाहर से मंगा कर लगवाए गए हैं। जिसे महाविद्यालय के विभिन्न शिक्षकों ने डोनेट किया है। प्रधानाचार्य ने अपने प्रतिवेदन में शिक्षकों की कमी के बारे में जिक्र करते हुए बताया कि हालांकि इस वर्ष बहुत हद तक इस समस्या को दूर किया गया है। बावजूद इसके वाणिज्य एवं मैथिली विभाग अभी तक शिक्षक विहीन हैं। जो कि महाविद्यालय के लिए एक बड़ी चुनौती है।
उन्होंने बताया कि वाणिज्य विषय में अभी कुल 837 छात्राएं नामांकित हैं जबकि मैथिली विषय में भी छात्राओं की संख्या पर्याप्त हैं। अपने प्रतिवेदन में उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया कि कैंपस में कोई सुरक्षा व्यवस्था नहीं होने से महाविद्यालय प्रशासन के लिए सुरक्षा एक चुनौती बनी हुई थी। इस दिशा में भी इस वर्ष सफलता मिली है। पिछले महीने ही सिक्योरिटी गार्ड रखने की कुलपति से मिली अनुमति प्रदान की गई है तथा अब कैंपस में तीन सिक्योरिटी गार्ड round-the-clock कार्यरत हैं। इतना ही नहीं, इस वर्ष बिहार सरकार के सहयोग से भी कैंपस में 16 सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए हैं। मूलभूत संरचना के विकास के क्षेत्र में महाविद्यालय में महाविद्यालय के शिक्षकों द्वारा दिए जा रहे आर्थिक सहयोग की भी उन्होंने विस्तार से चर्चा की। अपने प्रतिवेदन में उन्होंने बताया कि विगत नैक मूल्यांकन में महाविद्यालय का प्रदर्शन संतोषप्रद नहीं था। इसे महाविद्यालय परिवार ने चुनौती के रूप में लिया है तथा इस दिशा में भी सतर्क एवं क्रमबद्ध पहल की जा रही है जिसका सुखद परिणाम निश्चित ही अगले मूल्यांकन चक्र में दिखाई पड़ेगा। उन्होंने बताया कि वर्ष 2016-17 तथा 2017-18 का एक्यूएआर नैक की वेबसाइट पर अपलोड कर दिया गया है। प्रतिवेदन के माध्यम से उन्होंने जानकारी दी कि महाविद्यालय ने अपना स्वतंत्र लोगो विकसित कर लिया है जिसकी शुरुआत आज के दीक्षांत समारोह से की जा रही है।
दरभंगा से वरुण ठाकुर