हर महिला को मेनोपॉज की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. आमतौर पर मेनोपॉज का समय 45 साल के बाद माना जाता है. लेकिन आजकल खराब लाइफस्टाइल के कारण महिलाओं को प्री-मेनोपॉज यानी समय से पहले ही रजोनिवृत्ति होने लगी है बता दें कि तमाम महिलाएं 40 की उम्र के आसपास ही रजोनिवृत्ति की इस प्रक्रिया से गुजरने लगती हैं और इसका सीधा असर उनकी सेहत पर पड़ता है
प्री-मेनोपॉज को समझने से पहले महिलाओं को माहवारी के बारे में पूरी जानकारी होना आवश्यक है आपको बता दें कि एक लड़की की ओवरी में जन्म के साथ अंडे बन जाते हैं. 12 से 14 साल के बीच लड़कियों का अंडाशय पूरी तरह विकसित हो जाता है और ये हर माह एक अंडा गर्भाशय नाल में रिलीज करता है. और इसके साथ दो हार्मोन एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन बनते हैं जिसके चलते इन हार्मोन्स की वजह से गर्भाशय की रक्त और म्यूकस से बनी परत मोटी हो जाती है. इस दौरान यदि अंडा शुक्राणु के संपर्क में आता है तो ये फर्टिलाइज हो जाता है और महिला गर्भवती हो जाती है. यदि इस बीच ये फर्टिलाइज नहीं हुआ तो गर्भाशय की मोटी परत उस अंडे के साथ मिलकर रक्त के रूप में योनि से बाहर आती है, जिसे मासिक धर्म या पीरियड कहा जाता है.
जब मेनोपॉज और प्री-मेनोपॉज महिला की ओवरी में अंडे खत्म हो जाते हैं तो पीरियड बंद हो जाता है और यह स्थिति ही मेनोपॉज कहलाती है बता दे की पहले मेनोपॉज की स्थिति 45 से 55 साल के बीच आती थी, लेकिन अब तमाम मामले ऐसे आ रहे हैं जिसमें 40 की उम्र के आसपास महिलाओं का मासिक धर्म स्थायी रूप से बंद हो जाता है. इसे प्री-मेनोपॉज कहा जाता है.
प्री-मेनोपॉज के कारण
ओवरी में सर्जरी, रेडिएशन, अल्कोहल-स्मोकिंग, कीमोथैरेपी और आनुवांशिकता को इसके प्रमुख कारण माना जाता है करीब चार से पांच साल पहले ही मेनोपॉज के लक्षण आने लगते हैं और महिलाओं को चिड़चिड़ाहट, मूड स्विंग, अनियमित माहवारी, वैजाइनल ड्राईनेस जैसे लक्षण सामने आते हैं.
प्री-मेनोपॉज के चलते महिलाओं की सेहत पर बुरा असर पड़ता है और समय से पहले ही उनकी हड्डियां कमजोर होने लगती है इसके साथ ही ऑस्टियोपोरोसिस, हाई बीपी और हार्ट संबन्धी समस्याओं का खतरा भी बढ़ जाता है. इसका कारण ये है कि एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रॉन दोनों हार्मोन महिलाओं की बेहतर सेहत के लिए आवश्यक माने जाते हैं. ये हड्डियों को मजबूत बनाने के साथ-साथ हार्ट के लिए अच्छे होते हैं मेनोपॉज के बाद ये बनने बंद हो जाते हैं.
मेनोपॉज की स्थिति में डाइट में विटामिन और कैल्शियम भरपूर मात्रा में लें ताकि हड्डियां की सेहत पर बुरा असर न पड़े. रोज व्यायाम करें और किसी तरह की समस्या होने पर लापरवाही किए बगैर विशेषज्ञ से मिलें ताकि समस्या को बढ़ने से पहले संभाला जा सके