बीते दिनों चिट्ठी लिखने के सिलसिले से कोंग्रेस में मचे घमासान के बाद दबाव में दिखते CWC ने नए अध्यक्ष की खोज तय कर दी है।
कांग्रेस कार्यसमिति से लेकर सोशल मीडिया तक हंगामे के बाद भी बड़ा सवाल यही है कि क्या अगले कुछ महीने में गांधी परिवार से इतर संगठन की कमान देने के लिए किसी नेता की तलाश हो पाएगी? सोमवार को हुई कार्यसमिति की हंगामेदार बैठक के बाद सियासी गलियारे में इसी सवाल का जवाब ढूंढा जा रहा है।
हालांकि पार्टी का इतिहास बताता है कि गांधी परिवार की छाया से मुक्त किसी नेता के लिए संगठन की जिम्मेदारी संभालना आसान नहीं होगा।
परिवार से बाहर जब भी किसी व्यक्ति को अध्यक्ष पद मिला है तो वह कांटों का ताज ही साबित हुआ है। आजादी के बाद 72 सालों में 37 साल पार्टी की कमान नेहरू-गांधी परिवार के पास ही रही। परिवार के इतर जितने भी अध्यक्ष बने उनमें परिवार के विश्वासपात्र ही काम कर पाए। बाकी को या तो समय से पहले पद छोड़ना पड़ा या कुछ ने बगावत का रास्ता अख्तियार किया।
आजादी के बाद नेहरू का दौर
साल 1947 में जीवटराम भगवानदास कृपलानी कांग्रेस अध्यक्ष बने। पहले पीएम जवाहरलाल नेहरू से मतभेद के कारण कृपलानी सालभर के अंदर ही उन्हें पद हटना पड़ा और वह नेहरू के मुखर आलोचक बने। उनकी जगह नेहरू के करीबी पट्टाभि सीतारमैय्या को संगठन की कमान मिली। साल 1950 में नेहरू के विरोध के बावजूद वल्लभभाई पटेल के समर्थन से पुरुषोत्तम दास टंडन अध्यक्ष बने।
पटेल के निधन के बाद नेहरू से मतभेदों के कारण टंडन को कुर्सी छोड़नी पड़ी। इसके बाद तीन सालों तक नेहरू खुद संगठन के साथ सरकार की कमान संभालते रहे। फिर नेहरू के करीबी यूएन ढेबर चार साल के लिए अध्यक्ष बने और उनके बाद इंदिरा गांधी ने संगठन की कमान संभाली।
इंदिरा के दौर में कांग्रेेस
इंदिरा के बाद नीलम संजीव रेड्डी और के कामराज अध्यक्ष बने। कामराज के अध्यक्ष रहते नेहरू के निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री बनाया गया। इस दौरान इंदिरा का कामराज और एस निजलिंगप्पा से तीखा विवाद हुआ और पार्टी दो हिस्सों में बंट गई। नतीजा यह हुआ कि जगजीवन राम, शंकर दयाल शर्मा और देवकांत बरुआ इंदिरा के करीबी होने के चलते अध्यक्ष बने। कुछ वर्षों तक पार्टी की कमान खुद इंदिरा ने भी संभाली।
राजीव के दौर में कांग्रेस
साल 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने और अध्यक्ष पद की भी जिम्मेदारी संभाली। साल 1984 के अंत से 1991 में आतंकी हमले में निधन तक राजीव ही संगठन के मुखिया थे।
राव-केसरी का उदय
राजीव की हत्या लोकसभा चुनाव के दौरान हुई थी। चुनाव के बाद पीवी नरसिंह राव पीएम बने और संगठन के भी मुखिया रहे। कुछ अरसे बाद में संगठन की कमान सीताराम केसरी को दी गई। इंदिरा के बाद पहली बार सरकार और संगठन दोनों का शीर्ष पद ऐसे व्यक्तियों के पास था जो गांधी परिवार की छाया से बाहर था। हालांकि इसी दौरान राव विरोधियों ने सोनिया गांधी की राजनीति में एंट्री कराई और केसरी की अध्यक्ष पद से नाटकीय विदाई हुई।
सोनिया काल में कांग्रेस
केसरी की अध्यक्ष पद से नाटकीय विदाई के बाद पार्टी की कमान फिर से गांधी परिवार में आई और सोनिया अध्यक्ष बनीं।
सोनिया 2017 में अध्यक्ष पद से हटीं तो संगठन की कमान राहुल गांधी को दी गई। वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में शर्मनाक हार के बाद राहुल ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। तब से सोनिया मजबूरन अंतरिम अध्यक्ष हैं, लेकिन अब इस चिट्ठी कांड के बाद कोंग्रेस की तरह सोनिया की राह भी मुश्किल ही जान पड़ती है।
अनसुलझे सवाल
कांग्रेस के सामने यक्ष प्रश्न यही है कि सोनिया के बाद कौन? पार्टी का एक धड़ा चाहता है कि संगठन गांधी परिवार की छाया से मुक्त हो। कार्यसमिति की बैठक के बाद जनवरी महीने तक नया अध्यक्ष चुनने की घोषणा की गई है। ऐसे में सवाल यह है कि अगला अध्यक्ष परिवार से होगा या हमेशा की तरह परिवार का करीबी होगा।
मौजूदा समय में गांधी परिवार नेहरू-इंदिरा-राजीव की तरह ताकतवर नहीं है। सरकार से बाहर से छह साल से ज्यादा हो चुके हैं। संगठन में भी परिवार की पकड़ कमजोर हो गई है। ऐसे में परिवार से इतर अध्यक्ष बनने की संभावना है। हालांकि सवाल यही है कि क्या गांधी परिवार इसके लिए दिल बड़ा करेगा? और अगर अध्यक्ष गांधी परिवार का यस मैन ही हुआ तो क्या पार्टी का दूसरा धड़ा स्वीकार करेगा?