बिहार में शुरूआती राजनीति उठापटक के बाद नीतीश कुमार की पार्टी (जदयू) और रामविलास पासवान की पार्टी (लोजपा) जब बीजेपी से गठबंधन किया, तब राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के पास बहुत बड़ी चुनौती थी आखिर गठबंधन को कैसे रोका जाये। लेकिन मोदी में लहर में राजद बिखर जायेगा इसका अनुमान किसी को नहीं था। बिहार के 40 लोकसभा सीट पर एनडीए को 39 तो वहीं एक सीट कांग्रेस के पास गयी।
आपको बता दें कि चारा घोटाले के दोषी लालू यादव रांची के रिम्स हॉस्पिटल में सजा काट रहे है और उनके अनुपस्थिति में राजद की कार्यभार लालू यादव के छोटे बेटे तेजस्वी के ऊपर था। जिस तरह से तेजस्वी यादव की अगुआई में राजद को करारी हार का सामना करना पड़ा इसका प्रभाव कहीं न कहीं पार्टी के ऊपर जरूर होगा। 1997 पार्टी गठन के बाद से पहली बार ऐसा होगा जब राजद का कोई सांसद लोकसभा में नहीं हो।
जहां एक तरफ भाजपा के साथ नीतीश कुमार और रामविलास ने मिलकर चुनाव लड़ा तो वहीं दूसरी ओर राजद के साथ उपेंद्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी और मुकेश साहनी के अलावा कांग्रेस साथ खड़ी रही वाबजूद एनडीए ने बिहार में रिकॉर्ड दर्ज करते हुए महागठबंधन को पूरी तरह से साफ़ कर दिया।
यह जीत बीजेपी से अधिक नीतीश कुमार के लिए अहम मानी जा रही है। ऐसे समय में जब उनकी पार्टी और सरकार कई मोर्चे पर सवालों के बीच घिरे रहे और नीतीश कुमार की अपनी छवि पर लगातार सवाल उठाये गए।