‘प्रो. बजरंग बिहारी तिवारी’ केवल एक नाम नहीं बल्कि हजारों विद्यार्थियों के आदर्श है। एक ऐसी पहचान है जो हर कोई पाना चाहता है। ‘देशबंधु कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय’ के हिंदी विभाग के ‘प्रोफेसर बजरंग बिहारी तिवारी’ जी उन हजारों बच्चों के आदर्श हैं जिन्होंने इनके अंदर रहकर शिक्षा ग्रहण की और अपने उज्जवल भविष्य का स्वप्न देखा।
अपने काम के प्रति पूर्ण निष्ठा, सच्चाई और इमानदारी साथ ही सादा व्यक्तित्व अगर यह किसी में है तो वह है बजरंग बिहारी तिवारी जी। इन्होंने अपने अंदर शिक्षा ग्रहण करने वाले विद्यार्थियों को ना सिर्फ किताबी ज्ञान दिया है बल्कि जीवन में होने वाले उतार चढ़ाव, सही गलत, सुख दुख से भी अवगत कराया है। साथ ही उन्होंने जीवन में आने वाले हर तरह की परेशानियों से लड़ना और उन से बाहर निकलना सिखाया है।
जो ज्ञान बिहारी जी द्वारा विद्यार्थियों को दिया गया वह अमूल्य है जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता जिसे कभी परे नहीं किया जा सकता। पिछले 20 वर्षों से बजरंग बिहारी तिवारी जी देशबंधु कॉलेज के हिंदी विभाग में कार्यरत हैं। इन्होंने अपने कार्य को कार्य समझकर नहीं बल्कि जिम्मेदारी समझकर किया है। इनके अंदर पढ़ने वाले बच्चों का कहना है कि शिक्षक के रूप में उन्हें बिहारी जी से पिता सा सानिध्य मिला है।
बिहारी जी कालेज में रहकर केवल शिक्षण ही नहीं किया बल्कि अपने आपको एक बेहतरीन लेखक के रूप में संपूर्ण देश के सामने प्रस्तुत किया है। बिहारी जी का हमेशा से ही दलित साहित्य की तरफ अधिक रुझान रहा है। देशबंधु कॉलेज में भी वह दलित साहित्य, स्त्री विमर्श, आदिवासी विमर्श आदि को पढ़ाने में अधिक रुचि रखते हैं।
बिहारी जी ने अब तक दलित साहित्य से जुड़ी कई कृतियां साहित्य जगत को समर्पित की है उन्हीं में से एक है ‘केरल में सामाजिक आंदोलन और दलित साहित्य’। बिहारी जी की यह कृति सबसे ज्यादा चर्चित हैं। बता दें कि वर्ष 2021 से पहले भी बिहारी जी को कई सम्मान प्राप्त हुए हैं। लेकिन इस वर्ष उनके सबसे ज्यादा चर्चित कृति ‘केरल में सामाजिक आंदोलन और दलित साहित्य’ के लिए उन्हें ‘स्वतंत्रता सेनानी नंदवाना स्मृति सम्मान’ के लिए चुना गया है।
स्वतंत्रता सेनानी नंदवाना स्मृति सम्मान पाना ना सिर्फ बजरंग बिहारी तिवारी जी के लिए गर्व की बात है बल्कि उनके अंदर शिक्षा ग्रहण कर चुके और कर रहे सभी विद्यार्थियों के साथ साथ ही उनके सभी सहकर्मियों के लिए भी गौरव अनुभव करने का अवसर है।
संभावना के अध्यक्ष डॉ के सी शर्मा ने कहा कि मूलत: उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के एक छोटे से गाँव नियावां के किसान परिवार में जन्में तिवारी जी की यह कृति भारतीय समाज के परिप्रेक्ष्य में दलित साहित्य के महत्त्व की मीमांसा करती है।
बजरंग बिहारी जी के इस कृति को वरिष्ठ हिंदी साहित्यकार प्रो काशीनाथ सिंह, भोपाल निवासी वरिष्ठ हिंदी कवि राजेश जोशी और जयपुर निवासी वरिष्ठ लेखक डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल की चयन समिति ने सर्व सम्मति से सम्मान के योग्य पाया है।
काशीनाथ सिंह का कहना है कि अपने अध्यवसाय और विद्वत्ता से बजरंग बिहारी तिवारी ने दलित साहित्य की प्रासंगिकता और महत्त्व का प्रतिपादन किया है। भारतीय ज्ञान परम्परा से प्राप्त मूल्य दृष्टि को आधुनिक रौशनी में पुनर्नवा कर उन्होंने साहित्य मूल्यांकन में बड़ा योगदान किया है जिसकी पुष्टि इस किताब से होती है।
वहीं राजेश जोशी का कहना है कि विद्यार्थी जीवन से ही अपने को साहित्य मीमांसा के लिए समर्पित कर देने वाले तिवारी ने इस विषय पर पांच पुस्तकें लिखी हैं और अनेक पुस्तकें सम्पादित भी की हैं। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि ‘केरल में सामाजिक आंदोलन और दलित साहित्य’ बजरंग जी के आलोचना लेखन का शिखर है।
सम्मान समारोह के आयोजन को लेकर डॉ शर्मा ने बताया कि बहुत जल्द ही चित्तौड़गढ़ में यह सम्मान समारोह आयोजित किया जाएगा। जिसमें की कृति के लेखक को ग्यारह हजार रुपये, शाल और प्रशस्ति पत्र भेंट किया जाएगा।