दुनिया भर के बच्चों में लोकप्रिय ऑनलाइन गेम जानलेवा बन गया है. पहले ब्लू ह्वेल उसके बाद मोमो गेम और अब पबजी (प्लेयरअननोन्स बैटलग्राउंड्स) इसके भी कई खतरनाक परिणाम सामने आ रहे हैं । यह खेल नशे या लत का रूप ले लिया है । जो भी एक बार इसके गिरफ्त में आ जाता है उसका निकलना मुश्किल हो रहा है । और नेशे का रूप ले लेता है । इसे खेलने वाला घर- परिवार और दोस्तों से कटकर एक वर्चुअल दुनिया में जीने लगता हैं।
पिछले दिनों गाजियाबाद में रहने वाला दसवीं का एक छात्र इस खेल के चक्कर में अपना घर छोड़ कर चला गया । कुछ दिन पहले दिल्ली के वसंतपुर क्षेत्र में पबजी खेलने से मना करने पर एक लड़के ने अपने मां-बाप को जान से मार डाला । मुबंई के कुर्ला इलाके में रहने वाला एक युवक ने अपनी जान ले ली । जम्मूकश्मीर में इसकी लत में फंसकर एक फिजिकल ट्रेनर ने अपना मानसिक संतुलन खो दिया । यही नहीं जालंधर में तो इसके लिए 15 साल के एक लड़के ने अपने पिता के अकाउंट से पचास हजार रूपये निकाल लिए । मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में एक युवक पबजी खेलने में इस कदर मशगूल था कि उसने पानी की जगह एसिड पी लिया । गनीमत यह रही की उसकी जान बच गई । ऐसी घटनाएं आए दिन सुनने को मिल रही है और उनमें एंग्जाइटी की समस्या बढ़ रही है । यह खेल धीरे -धीरे खेलनें वालो को मनोरोगी बना रहा है।
हर हफ्ते 8 से 22 साल के आयु वाले 4-5 नए मरीज एम्म पहुंच रहे हैं । आज दुनिया भर में 40 करोड़ बच्चे और युवा इस गेम को हर दिन खेल रहे हैं जबकि भारत में इसकी संख्या करीब 5 करोड़ है । चीन ने इसका नकारात्मक प्रभाव को देखते हुए 13 साल तक के बच्चों के लिए इसे खेलने पर पाबंदी लगा दी है ।
भारत में गुजरात मात्र ऐसा राज्य है, जिसनें इस पर पाबंदी लगाई है । टेक्नोलॉजी के बढ़ते विस्तार के साथ ही गेम इंडस्ट्री में भी तेजी से प्रसार बढ़ रहा है आये दिन नए- नए गेम मॉर्केट में आ रहे हैं । बच्चों के पास आज-कल इंटरनेट होने की वजह से सारी तकनीक तुरंत उनके पास पहुंच जाती है इसलिए वह नए से नए गेम के बारे में जान लाते हैं । और उस गेम को खेलते -खेलते बच्चों को उसका एडिक्शन हो जाता है कोई भी गेम उनके लिए एडिक्शन बन जाए या उनकी जान की लिए खतरा बन जाए , तो उसे रोकना ही होगा। कुछ साल पहले ‘ ब्लू व्हेल ‘ नामक गेम ऐसे ही तबाही मचाई थी और इस पर सुप्रीम कोर्ट से सख्ती से रोक लगाई । ऐसे ही कदम अब हमें पबजी को लेकर भी उठाने होंगे । लेकिन यह भी बहुत जरूरी है कि गैजेट्स को सीमित और सकारात्मक इस्तेमाल किया जाए और इसके लिए समाज में जागरूकता भी फैलानी होगी ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने मोबाइल गेम की लत को भी मनोरोग की श्रेणी में रखा हैं। ऐसे खतरनाक गेम को खेलने से रोकना होगा और टेक्नोलॉजी स्तर पर भी इसे रोकने के लिए काफी तैयारी करनी पड़गी । अभी तक इस तरह के जानलेवा गेम को रोकने के लिए को भारत में कोई बड़ी नहीं उठाई गई है ।