आज हम आपको डिस्लेक्सिया बीमारी के बारे में बताएंगे,बता दें कि ये बीमारी बच्चों में ज्यादा होती है। बच्चे में मानसिक विकार से संबधित बीमारी Dyslexia के सबसे अधिक मामले देखने को मिलते हैं।इस बीमारी से प्रभावित बच्चे को पढ़ने, लिखने और समझने में कठिनाई होती है।कई बार तो ये भी देखने में आता है कि बच्चों की लिखावट काफी धुंधली हो जाती है और उन्हें बोलने में भी दिक्कत होती है।हेल्थ विशेषज्ञों के मुताबिक यह एक आनुवांशिकी रोग भी है जो पीढ़ी दर पीढ़ी ट्रांसफर होती रहती है।डॉक्टरों कहते कि मस्तिष्क में किसी प्रकार की चोट के कारण भी Dyslexia की बीमारी हो सकती है।ऐसी स्थिति में हम सभी को बच्चे की खास देखभाल करना चाहिए।अगर बच्चे में Dyslexia के लक्षण दिखते हैं ,तो तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए।चलिए इस बीमारी के बारे में विस्तार से जानते हैं…..
डिस्लेक्सिया बीमारी क्या है
जैसा कि हम लोग जानते हैं की डिस्लेक्सिया एक मानसिक बीमारी है और इस बीमारी का सीधा संबंध मस्तिष्क से होता है।वहीं कई मौके पर यह जन्मजात बीमारी भी है।डिस्लेक्सिया के तीन चरण हैं।पहले चरण में मरीज पढ़ने, लिखने में असमर्थ रहता है और दूसरे चरण में गर्भ में बच्चे के मस्तिष्क का सही से विकास नहीं हो पाता है तथा तीसरे चरण में गंभीर बीमारी और मस्तिष्क में चोट लगने से व्यक्ति डिस्लेक्सिया से पीड़ित हो जाता है।डिस्लेक्सिया के लक्षण
हैं -पढ़ने, लिखने और बोलने में दिक्कत होना ,समझने और याद रखने में दिक्कत होना ,दूसरी भाषा सीखने में परेशानी होना और कठिन शब्दों के उच्चारण में तकलीफ होना।
डिस्लेक्सिया से बचाव
आपको बता दें कि डिस्लेक्सिया एक आनुवांशिक रोग भी है और ऐसी स्थिति में इलाज में दिक्कत होती है।वहीं अन्य स्थितियों में डिस्लेक्सिया का उपचार संभव है।जिसके लिए प्राथमिक लक्षण दिखने पर डॉक्टर की सलाह अथवा परामर्श जरूर लें और अगर लापरवाही बरतते हैं,तो डिस्लेक्सिया खतरनाक साबित हो सकती है।इस बीमारी या संक्रमण के लक्षणों की स्थिति में डॉक्टर की सलाह जरूर लें।
बच्चों पर इसका असर
जानकारी के अभाव में टीचर और बच्चे के पैरंट्स को लगता है कि बच्चा आलस या शरारत की वजह से जानबूझकर गलतियां कर रहा है।ऐसे में बच्चे पर पड़ने वाला दबाव उसके आत्मविश्वास को कम कर देता है।ऐसे हालात में बच्चा वे काम भी नहीं कर पाता जो उसे ज्यादा बेहतर तरह से आते हैं।वैसे तो इसका इलाज नहीं किया जा सकता लेकिन सफलतापूर्वक मैनेजमेंट जरूर किया जा सकता है।अगर सही समय पर पता इसका पता चल जाए तो बच्चे को वे काम करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए जिनमें वह निपुण है,जैसे पेंटिंग, म्यूजिक, गेम्स वगैरह।ऐसे बच्चे सामान्य जीवन बिताते हैं ऐसे बहुत से बच्चे हैं जो डिस्लेक्सिया होने के बाद भी अच्छे जॉब कर रहे हैं।