बिहार विधानसभा चुनाव ना सिर्फ फेरबदल की तस्वीर बनाता दिखा बल्कि साफ कर दिया कि इस बार चुनावों में एक बार फिर मोदी मैजिक काम कर गया है। दरअसल बिहार में सत्ता विरोधी लहर और विपक्ष की कड़ी चुनौती के बावजूद नीतीश कुमार की अगुवाई वाला एनडीए 125 सीटों पर जीत हासिल करके बहुमत के आंकड़े तक पहुंचने में कामयाब हो गया है। हालांकि वोटर्स ने इस बार इस आंकड़े में बड़ा फेरबदल भी किया है। उधर महागठबंधन की बात करें तो आरजेडी ने 75 सीटों के साथ प्रदेश के सिंगल लार्जेस्ट पार्टी का खिताब अपने नाम किया है। वहीं 74 सीटों के साथ बीजेपी प्रदेश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरकर सामने आई है।
महागठबंधन ने इस मुकाबले में कुल 110 सीटें जीतीं हैं। हालांकि महागठबंधन बहुमत के आंकड़े को छूने में कामयाब नहीं हो सका है। इसके अलावा 2015 चुनावों के मुकाबले लालू प्रसाद यादव की पार्टी की सीटों में कमी ही आई है। उधर जेडीयू की बात करें तो सबसे ज्यादा नुकसान इसी पार्टी को झेलना पड़ा है। जदयू को 2015 में मिली 71 सीटों की तुलना में इस बार 43 सीटें ही मिल सकी हैं।
दरअसल एनडीए गठबंधन पहले ही साफ कर चुका है कि सीएम पद के उम्मीदवार होंगे। जिससे साफ है कि खराब प्रदर्शन के बावजूद नीतीश कुमार चौथी बार बिहार के मुख्यमंत्री पद पर आसीन होने जा रहे हैं। उधर जेडीयू को हुए नुकसान में सबसे बड़ा कारण चिराग पासवान का अलगाव रहा है। हालांकि एलजेपी को सिर्फ एक सीट पर जीत हासिल हो सकी है लेकिन कम से कम तीस सीटों पर एलजेपी उम्मीदवारों ने जेडीयू को नुकसान पहुंचाया है। इसे लेकर जेडीयू प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा कि एक साजिश के तहत नीतीश कुमार के खिलाफ अपमानजनक अभियान चलाया गया। उन्होंने बगैर किसी का नाम लिए कहा, इसमें अपने भी शामिल थे और बेगाने भी।