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पंजाब में जट सिख के सामने दलित सिख और हिंदू वोट बैंक का गठजोड़

इस बार पंजाब में विधानसभा चुनाव पिछले कई चुनाव से अलग होंगे। बता दे की पहले जो होता रहा है, वह इस चुनाव में नहीं होगा। अब सियासी गुणा गणित में भी इसका असर दिखने लगा है। बदलाव की शुरुआत जट सिख वोट बैंक से हो गई है। हमेशा से चुनाव की धुरी रहने वाले जट सिख वोट को सियासी दल साधते नजर आते थे, परंतु इस बार सियासी दल पुश्तैनी सियासत को छोड़ दलित और हिंदू वोट बैंक को साधने में लगे हुए हैं।

पंजाब में जट सिख के सामने दलित सिख और हिंदू वोट बैंक का गठजोड़

बता दे की कभी संयुक्त पंजाब का हिस्सा रहे हरियाणा में भाजपा ने गैर जाट राजनीति का गणित लगाकर सफलता हासिल की है। पंजाब के सियासी दल भी भाजपा की इस गैर जाट राजनीति को पूरी तरह से समझ गए हैं।

भाजपा के इस गणित को भांप कर सबसे पहले कांग्रेस और बाद में शिरोमणि अकाली दल और अब आम आदमी पार्टी ने भी पंजाब में अपनी रणनीति में परिवर्तन की घोषणाएं करनी शुरू कर दी हैं।

दलित सिख और हिंदू वोट बैंक के गठजोड़ ने सूबे के संपन्न जट सिख वोट बैंक के सामने पंजाब की पुश्तैनी सियासत का मिजाज और चेहरा पूरी तरह से बदल दिया है।

पंजाब में बदली हुई राजनीति की आहट कितनी मजबूत है, इसका अंदाजा समीकरणों को समझकर लगाया जा सकता है। बता दे की कांग्रेस ने अन्य दलों से पहले बाजी मारते हुए अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखने वाले चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बना सूबे की 32 प्रतिशत आबादी को साधने की कोशिश की है।

यही संकेत आने वाले चुनाव के लिए भाजपा ने भी लगभग दे दिए हैं, बस घोषणा ही बाकी है। शिअद ने एक उपमुख्यमंत्री बसपा कोटे को देकर सियासी निशाना साधा है। वही आप और अन्य दल भी इसी राह पर चल रहे हैं।

जट सिख ही बने अभी तक मुख्यमंत्री

पंजाब की सियासत 20 फीसदी वाले जट अब तक सिखों के इर्द-गिर्द ही सिमटी रही है। इतना ही नहीं सभी मुख्यमंत्री जट सिख समुदाय से ही बनते रहे है।

अब से दलित मुख्यमंत्री की चर्चा पहले आबादी में 32 फीसदी हिस्सेदारी के बाद भी पहले कभी नहीं हुई। ये भी दीगर बात है कि 117 सदस्यों वाली पंजाब विधानसभा में 34 सीटें आरक्षित हैं। हालांकि मतदाता के तौर पर दलित समुदाय का असर पंजाब विधानसभा की करीब 50 सीटों पर है।

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धार्मिक डेरे भी बनेंगे बदलाव वाहक

बता दे की पंजाब के धार्मिक डेरों के साथ ही ये सिख पंथक संस्थाएं भी इस चुनाव में बदलाव की वाहक होंगी। सर्वाधिक भूमिका इसमें सिखों के राष्ट्रवादी धड़े नामधारी सिखों की हो सकती है।

पंजाब की सिख आबादी में ये दूसरा सबसे बड़ा समुदाय है। अपने शिष्यों के साथ इनके गुरु राम सिंह कूका ने स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों से लोहा लिया था। वहीं कूका वीरों ने गोरक्षा के लिए आत्माहुति दी है। वर्तमान में इस परंपरा के वाहक नामधारियों के सर्वोच्च गुरु ठाकुर उदय सिंह हैं।

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