अमेरिका की प्रतिष्ठित ‘कैलिफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी’ के 80 से अधिक संकाय सदस्यों ने विश्वविद्यालय द्वारा हाल में भेदभाव रोधी नीति में ‘जाति’ को शामिल किए जाने का विरोध करते हुए कहा है कि इससे भारतीय और दक्षिण एशियाई मूल के हिंदू संकाय सदस्यों को असंवैधानिक तौर पर लक्षित करके उनके साथ भेदभाव किया जाएगा।
हाल ही में कैलिफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी द्वारा घोषित की गई भेदभाव रोधी नीति में कहा गया है कि जाति के कारण उत्पीड़न का शिकार विद्यार्थी अब दलित विरोधी पक्षपात की शिकायत कर पाएंगे। और कई छात्रों का दावा है कि उनके साथ नियमित रूप से पक्षपात किया जाता है।
दलित नागरिक अधिकार संगठन के मुताबिक, दलित वे लोग होते हैं जो भारत की सामाजिक वर्ण व्यवस्था में सबसे नीचे समझे जाते हैं और उन्हें भेदभाव एवं हिंसा का शिकार होना पड़ता है। इसके साथ ही उन्हें भारत में ‘अछूत’ कहा जाता था। इसके अलावा यह भी कहा की जाति के आधार पर किसी के साथ भेदभाव करना भारत में गैर कानूनी है लेकिन यह प्रथा जारी है,इतना ही नहीं अमेरिका में दक्षिण एशियाई प्रवासियों में भी यह चलन है। भेदभाव रोधी नीति में जाति को शामिल करने का विरोध करते हुए संकाय सदस्यों ने कहा है कि नई नीति अल्पसंख्यक समुदाय को अनुचित रूप से निशाना बनाएगी।
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि एक विशिष्ठ और पृथक संरक्षित श्रेणी के तौर पर जाति को शामिल किए जाने के बाद यह सिर्फ भारतीय और दक्षिण एशिया मूल के संकाय सदस्यों पर लागू होगा।
वही प्रोफेसर प्रवीण सिन्हा ने कहा कि व्यापक नीतियों के अस्तित्व को देखते हुए जाति को शामिल करना दिग्भ्रमित करता है, जो पहले से ही विभिन्न तरीके के भेदभाव के खिलाफ संरक्षित है।आगे उन्होंने कहा, “हम इस नए जोखिम का विरोध कर सकते हैं, जो सीएसयू ने हमारे सामने पेश किया है, क्योंकि उन्होंने एक श्रेणी को शामिल किया है जो सिर्फ भारतीय वंशावली से जुड़े लोगों से संबंधित है जैसे कि मैं और सीएसयू की व्यवस्था में शामिल हजारों अन्य संकाय सदस्य और विद्यार्थी।”
सैन डिएगो राज्य विश्वविद्यालय में इंजीनियरिंग के प्रोफेसर सुनील कुमार के मुताबिक , “भारतीय मूल का एक संकाय सदस्य होने के नाते, मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि विभिन्न पृष्ठभूमि के कई छात्रों के लिए भेदभाव एक दैनिक वास्तविकता है और मौजूदा कानूनों एवं सीएसयू नीति के तहत ऐसी सभी शिकायतों को दूर करने के लिए एक मजबूत तंत्र है।”
इसके अलावा उन्होंने कहा, “मगर नीति में यह बदलाव किसी विश्वसनीय वैज्ञानिक साक्ष्य या डेटा के बिना किया गया है। आगे उन्होंने कहा भेदभाव का निवारण करने के बजाय, यह भारतीय और दक्षिण एशियाई वंशावली के हिंदू संकाय सदस्यों को असंवैधानिक तौर पर लक्षित करके उनके साथ वास्तव में भेदभाव करेगा।”