अयोध्या के श्रीराम जन्म भूमि मंदिर और बाबरी मस्जिद के विवाद पर ऐतिहासिक फैसला सुनाने वाले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई ने कहा कि अयोध्या केस का फैसला सुनाना बेहद चुनौतीपूर्ण रहा। उन्होंने कहा कि 40 दिनों की लगातार सुनवाई के बाद मामले को अंजाम पर पहुंचाया गया, जिसमें हर पक्ष की तरफ से वरिष्ठ वकीलों का बेंच को दिया गया सहयोग अभूतपूर्व था।
पूर्व चीफ जस्टिस गोगोई ने ये बात सुप्रीम कोर्ट में राम जन्म भूमि केस पर लिखी किताब ‘अयोध्या से अदालत तक भगवान श्रीराम’ पर परिचर्चा के कहीं। अयोध्या मामले पर फैसला सुनाने वाली पांच जजों की बेंचके अध्यक्ष पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई थे। उन्होंने मामले की सुनवाई शुरू होते ही फैसला सुनाने के लिए सुनवाई की अवधि तय कर दी थी।
पूर्व चीफ जस्टिस ने कहा कि अयोध्या का मामला भारत के कानूनी इतिहास में सबसे प्रचंड रूप से लड़े गए मुकदमों में हमेशा विशेष स्थान रखेगा। इस मामले से जुड़े विभिन्न भारी भरकम मौखिक और दस्तावेजी सबूतों के साथ केस को अंतिम फैसले के लिए लाया गया था। ये रिकॉर्ड विभिन्न भाषाओं से अनुवाद करवाए गए थे। पक्षकारों की ओर से प्रख्यात वकीलों ने हर बिंदु पर विचारोत्तेजक बहस की।
गोगोई ने कहा कि किताब ‘अयोध्या से अदालत तक भगवान श्रीराम’ सभी घटनाओं का एक परिप्रेक्ष्य के साथ वर्णन करती है। इस परिचर्चा में सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जस्टिस ज्ञानसुधा मिश्रा, इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व जज एस.आर. सिंह, अयोध्या में जन्म भूमि परिसर की खुदाई में शामिल रहे भारतीय पुरातत्व सर्वे के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक बी. आर. मणि ने भी चर्चा में शामिल रहे।
जस्टिस ज्ञानसुधा मिश्रा ने कहा कि आमतौर पर लोगों को बहुत बड़ी वेदना रहती है कि अदालत में बहुत समय लगता है। इस मामले में भी वक्त लगा लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट ने तत्परता दिखाई और निर्णय दिया तो सभी ने इसे सराहा, निर्णय सबके सामने है।