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बिहार में शराबबंदी कानून को लेकर कांग्रेस का बड़ा वादा, सत्ता में आई तो उठाएगी ये कदम …।

बिहार विधानसभा चुनाव में हमेशा की तरह इस बार भी शराबबंदी एक बड़े मुद्दे की तरह उभर रही है। बिहार के विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने बुधवार को अपना मेनिफेस्टो जारी किया तो इसमें कई लुभावने वादे किए गए। महिलाओं को इंसाफ दिलाने से लेकर किसानों की कर्ज माफी, युवाओं को रोजगार और खिलाड़ियों को प्रोत्साहन तक कई लुभावनी चीजें शामिल की गई हैं। लेकिन इस सबके बीच सबसे अहम है शराबबंदी को लेकर किया गया दावा या फिर कहें वादा। कांग्रेस के मेनिफेस्टो में शराबबंदी को लेकर समीक्षा करने की बात कही गई है। दरअसल कांग्रेस ने अपना घोषणा पत्र बदलाव पत्र के नाम से जारी किया है। कांग्रेस का कहना है कि शराबबंदी से बिहार की गरीब जनता के लिए मुश्किलें बढ़ी हैं। कांग्रेस अगर सत्ता में आती है तो
शऱाबबंदी के फैसले की समीक्षा की जाएगी।

कांग्रेस का कहना है कि बिहार के मौजूदा वक्त में जारी शराबबंदी कानून में सुधार की जरूरत है और अगर कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब होती है तो इस कानून की समीक्षा करके सुधार किया जाएगा। ताकि बिहार के गरीब लोगों के साथ न्याय हो सके। पार्टी का दावा है कि शराबबंदी की वजह से बिहार सरकार को बड़ा राजस्व नुकसान हुआ है। हालांकि शराबबंदी का मकसद सकारात्मक था लेकिन सरकार मूल उद्देश्य से ही भटक गई। शराबबंदी की वजह से अवैध कारोबार और शराब तस्करी के मामले बढ़ गए हैं। पुलिस को अनुचित लाभ मिला है औऱ जनता अभी भी परेशान ही है। ऐसे में कांग्रेस सत्ता में आते ही इस कानून की समीक्षा करेगी।

कांग्रेस ने बदलाव पत्र में शराबबंदी के कानून को लेकर लंबा चौड़ा ब्योरा दिया गया है। दिए गए आंकड़ों के मुताबिक 1 अप्रैल 2016 से लेकर 31 अगस्त 2020 तक 3 लाख से ज्यादा लोग शराबबंदी कानून के तहत गिरफ्तार किए गए हैं। और इन लोगों के परिवार ना सिर्फ मुश्किलें झेल रहे हैं बल्कि खासे परेशान भी हैं। कांग्रेस का कहना है कि सही मायने में शराबबंदी सिर्फ कागजों तक ही सिमटकर रह गई है। कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि शऱाबबंदी की वजह से प्रदेश में अवैध शराब वितरण की  समानांतर अर्थव्यवस्था चल रही है। पुलिस और माफिया सांठ-गांठ करके सरकारी कोष को नुकसान पहुंचा रहे हैं। वहीं बदलाव पत्र में कहा गया है कि इस अवैध व्यवस्था के गरीब तबके के युवा इस तस्करी के व्यवसाय की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। इनमें से अधिकांश दलित औऱ महादलित परिवारों से हैं। पुलिस और माफिया इस व्यवस्था से लाभ कमा रहा है तो वहीं प्रदेश की जनता पीड़ित महसूस कर रही है।

दरअसल 2016 में नीतीश सरकार ने बिहार में शराबबंदी लागू की थी। और इस फैसले को सरकार की बड़ी उपलब्धियों में शुमार किया जाता है। हालांकि चुनावी दौर में कई जगहों पर शऱाब पकड़ी जाना साबित करता है कि इसमें कुछ तो गड़बड़ है। वहीं विपक्ष लगातार सरकार की फैसले के क्रियान्वयन को लेकर निशाना साधता रहा है तो वहीं सत्ता पक्ष की तरफ से इस फैसले को प्रदेश के लोगों के हित में बताया जाता रहा है। 

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