अपने देश को छोड़ने की मजबूरी और फिर दूसरे देश को अपना बनाने के बावजूद वहां खुद को नहीं स्वीकारने का दर्द जीवन को मुश्किल बना देता है। ऐसा ही कुछ पकिस्तान में रह रहे अफगानी लोगों के साथ भी देखने को मिला, संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान में लगभग 15 लाख अफगान परिवार बसे हुए हैं। ये लोग 80 के दशक से अफगानिस्तान छोड़ कर पाकिस्तान में शरणार्थी बनकर जीवन यापन कर रहे हैं। इसके अलावा पिछले 40 साल में इन परिवारों के बच्चे यहीं पर जन्मे और पले पढ़े।
बता दे की अब भी इन अफगान बच्चों को नागरिकता नहीं मिल पाई है। वैसे तो पाकिस्तान में पैदा होने वाले को नागरिकता का हक है लेकिन स्थानीय नागरिकों के दबाव में सरकार अफगान बच्चों को नागरिकता नहीं देती है। रिपोर्ट के मुताबिक कराची में रहने वाले 24 वर्ष के अफगान शरणार्थी सलीम का सपना डॉक्टर बनने का था। लेकिन उसे किसी मेडिकल कॉलेज में एडमिशन नहीं मिला। आज सलीम लैब टेक्नीशियन बनकर रोजी कमा रहा है। दस्तावेज के अभाव में उसे बाकी से कम वेतन मिलता है।
इतना ही नहीं अफगान शरणार्थियों को अफसरों को घूस भी देनी पड़ती है। क्योंकि बिना नागरिकता के नौकरी करने पर उन्हें कभी भी अफगानिस्तान भेजा जा सकता है। जिसके चलते 23 साल का मदाद अली चोरी छिपे वेब डव्लपर का काम करता है। क्योंकि उसके पास कारोबार करने के लिए वैध दस्तावेज नहीं हैं। इन शरणार्थियों का कहना है कि पाकिस्तान को अपना देश मानने के बावजूद उनके पास यहां की नागरिकता नहीं है। वही 22 साल की समीरा ने बताया कि मेरे पैरेंट्स अफगानिस्तान को ही अपना देश मानते हैं, लेकिन मेरा जन्म पाकिस्तान में हुआ, पढ़ाई यहीं की और काम भी यहीं करती हूं।उसने कहा मेरा देश तो पाकिस्तान है। समीरा ने यूएन कैंप में सिलाई-कढ़ाई का काम सीखा है और यही रोजी है।