नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के अनुसार, एमसीसी के तहत 50 करोड़ डॉलर के कार्यक्रम राष्ट्रीय हित के खिलाफ नहीं हैं। बता दे की उनका सीधा अर्थ यह है कि वे चीन के बजाय अमेरिका को देश में लाकर विकास योजनाओं पर काम कराने के इच्छुक हैं।
प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने अपने भारत दौरे से ठीक पहले चीन को एक बड़ा झटका देने की तैयारी कर ली है
जबकि देश के सियासी दल एमसीसी समझौते के तहत अमेरिकी अनुदान सहायता को स्वीकार करने पर बंटे हुए हैं।
भारत दौरे से ठीक पहले प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने चीन को एक बड़ा झटका देने की तैयारी कर ली है जिसके चलते उन्होंने सभी राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति बनाकर ‘मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन’ के तहत अमेरिका से प्रस्तावित अनुदान सहायता की पुष्टि करने की जरूरत पर बल दिया है।
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उनका यह बयान ऐसे वक्त में आया जब चीन यहां अपने प्रोजेक्ट लाने को आतुर है।
यह मामला निचले सदन में विचाराधीन है। वही नेपाल और अमेरिका ने 2017 में इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। एमसीसी कार्यक्रम के तहत, अमेरिका अनुदान सहायता देगा जिसका उपयोग मुख्य रूप से नेपाल की ट्रांसमिशन लाइन को मजबूत करने पर किया जाएगा। और भारत को यह निकट भविष्य में पनबिजली के निर्यात की सुविधा प्रदान करेगा इसके अलावा नेपाल के सड़क नेटवर्क में भी सुधार करेगा।
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आपको बता दे की अपने सियासी हितों और वैश्विक आधिपत्य को बरकरार रखने के लिए अमेरिका ने मानवाधिकारों के राजनीतिकरण का सहारा लिया है। चीन के अधिकार संगठन चायना सोसायटी फॉर ह्यूमन राइट्स स्टडीज के मुताबिक अमेरिका के बर्ताव ने उस नींव को नष्ट कर दिया है जो वैश्विक मानवाधिकार शासन का आधार है।
इससे मानवाधिकारों के वैश्विक विकास को खतरा है वही इसके नतीजे विनाशकारी होंगे। रिपोर्ट में कहा गया है की वाशिंगटन का रवैया इस बात पर निर्भर करता है कि मानवाधिकार किस हद तक अपनी राजनीतिक रणनीति को पूरा कर सकते हैं।