सेंट्रल डेस्क आयुषी गर्ग:- प्याज के बाद अब देश में खाने के तेल की महंगाई बढ़ने लगी है. सोयाबीन उत्पादक राज्यों में बेमौसम बारिश और बाढ़ से फसल को भारी नुकसान हुआ है. इसीलिए देश में सोयाबीन और सरसों समेत तमाम तेल और तिलहनों के दामों में तेजी का रुख बना हुआ है. अंग्रेजी के बिजनेस अखबार फाइनेंशियल एक्सप्रेस के मुताबिक, सोयाबीन तेल की कीमतें बढ़ने से भारत में कई खाने-पीने वाली डिशेज भी महंगी हो सकती है. देश में बढ़ती डिमांड के चलते भारत ने सोयाबीन तेल का इंपोर्ट 100 गुना तक बढ़ा दिया है. वित्त वर्ष 2014-15 से वित्त वर्ष 2016-17 तक देश में कुल 10-70 लाख रुपये का सोयाबीन तेल भारत में इंपोर्ट किया गया था. वहीं, वित्त वर्ष 2017-18 में यह बढ़कर 1.67 करोड़ रुपये हो गया था. साथ ही, मौजूदा वित्त वर्ष में अभी तक 167 करोड़ रुपये का सोयाबीन तेल इंपोर्ट किया जा चुका है.
आपको बता दें कि भारत खाद्य तेल का दुनिया में प्रमुख आयातक है. पिछले सीजन 2018-19 (नवंबर-अक्टूबर) में भारत ने 155 लाख टन से ज्यादा वनस्पति तेल का आयात किया, जिसमें खाद्य तेल का कुल आयात 2018-19 में 149.13 लाख टन था और देश में सबसे ज्यादा आयात पाम तेल का होता है, ऐसे में आने वाले दिनों में पाम तेल के दाम बढ़ने से देश मे उपभोक्ताओं को और महंगा खाद्य तेल मिलेगा.
क्यों महंगा हुआ खाने का तेल- बीते दो महीने में क्रूड पाम ऑयल के दाम में 26 फीसदी से ज्यादा का उछाल आया है. वहीं, सरसों की कीमतों में 300 रुपये कुंटल की वृद्धि दर्ज की गई है. जबकि सोयाबीन का दाम करीब 400 रुपये प्रति कुंटल बढ़ा है. कारोबारियों का कहना है कि देश में मानसून सीजन के दौरान भारी बारिश के कारण खरीफ तिलहन फसल, खासतौर पर सोयाबीन के खराब होने और चालू रबी सीजन में तिलहनों की बुवाई सुस्त होने की वजह से घरेलू बाजार में तेल और तिलहनों के दाम बढ़ गए है.
उत्पादन में आई गिरावट- सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (सोपा) के अनुसार मौजूदा फसल सीजन 2019-20 में सोयाबीन का उत्पादन घटकर 89.84 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 109.33 लाख टन का उत्पादन हुआ था. नई फसल की आवक के समय उत्पादक राज्यों में 1.70 लाख टन सोयाबीन का बकाया स्टॉक बचा हुआ था, अत: चालू सीजन में कुल उपलब्धता 91.54 लाख टन की बैठेगी.
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