कथक सम्राट बिरजू महाराज का निधन संगीत जगत के लिए बड़ी क्षति है। बता दे की कथक के पर्याय रहे बिरजू महाराज देश के प्रसिद्ध शास्त्रीय नर्तक थे। इतना ही नहीं वे भारतीय नृत्य की कथक शैली के आचार्य और लखनऊ के ‘कालका-बिंदादीन’ घराने के प्रमुख थे। उनके जन्म से लेकर मृत्यु तक की कहानी काफी रोचक है।
बिरजू महाराज का जन्म 4 फरवरी 1938 को लखनऊ के ‘कालका-बिन्दादीन घराने’ में हुआ था। बिरजू महाराज का नाम पहले दुखहरण रखा गया था। जिसके बाद यह बाद में बदल कर ‘बृजमोहन नाथ मिश्रा’ हुआ। इनके पिता का नाम जगन्नाथ महाराज था, जो ‘लखनऊ घराने’ से थे और वे अच्छन महाराज के नाम से जाने जाते थे। बता दे की बिरजू महाराज जिस अस्पताल में पैदा हुए, उस दिन वहां उनके अलावा बाकी सब लड़कियों का जन्म हुआ था,जिसके चलते उनका नाम बृजमोहन रख दिया गया। जो आगे चलकर ‘बिरजू’ और फिर ‘बिरजू महाराज’ हो गया।
बता दे की पिता अच्छन महाराज को अपनी गोद में महज तीन साल की उम्र में ही बिरजू की प्रतिभा दिखने लगी थी। जिसके चलते बचपन से ही पिता ने अपने यशस्वी पुत्र को कला दीक्षा देनी शुरू कर दी। लेकिन पिता की शीघ्र ही मृत्यु हो जाने के बाद उनके चाचाओं, सुप्रसिद्ध आचार्यों शंभू और लच्छू महाराज ने उन्हें प्रशिक्षित किया। और कला के सहारे ही बिरजू महाराज को लक्ष्मी मिलती रही। उनके सिर से पिता का साया उस समय उठा, जब वह महज नौ वर्ष के थे।
बिरजू महाराज ने बचपन से मिली संगीत व नृत्य की घुट्टी के दम पर विभिन्न प्रकार की नृत्यावलियों जैसे गोवर्धन लीला, माखन चोरी, मालती-माधव, कुमार संभव व फाग बहार इत्यादि की रचना की। इसके अलावा इन्होंने सत्यजीत राॅय की फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ के लिए भी उच्च कोटि की दो नृत्य नाटिकाएं रचीं। इन्हें तबला, पखावज, ढोलक, नाल और तार वाले वाद्य वायलिन, स्वर मंडल व सितार इत्यादि के सुरों की काफी समझ थी
पंडित बिरजू महाराज ने 1998 में अवकाश ग्रहण करने से पूर्व संगीत भारती, भारतीय कला केंद्र में अध्यापन किया व दिल्ली में कत्थक केंद्र के प्रभारी भी रहे। इन्होंने हजारों संगीत प्रस्तुतियां देश में देश के बाहर दीं। बता दे की बिरजू महाराज ने कई प्रतिष्ठित पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त किए। उन्हें प्रतिष्ठित ‘संगीत नाटक अकादमी’ , ‘पद्म विभूषण’ मिला।और मध्य प्रदेश सरकार सरकार द्वारा भी इन्हें ‘कालिदास सम्मान’ से नवाजा गया।
मात्र 13 साल की उम्र में ही बिरजू महाराज ने दिल्ली के संगीत भारती में नृत्य की शिक्षा देना आरम्भ कर दिया था। उसके बाद उन्होंने दिल्ली में ही भारतीय कला केन्द्र में सिखाना आरम्भ किया। कुछ समय बाद इन्होंने कत्थक केन्द्र में शिक्षण कार्य आरंभ किया और यहां ये संकाय के अध्यक्ष तथा निदेशक रहे। तत्पश्चात 1998 में इन्होंने वहीं से सेवानिवृत्ति पाई। इसके बाद कलाश्रम नाम से दिल्ली में ही एक नाट्य विद्यालय खोला।
बिरजू महाराज का भरापूरा परिवार है। उनके पांच बच्चो में तीन बेटियां और दो बेटे हैं वही उनके तीन बच्चे ममता महाराज, दीपक महाराज और जय किशन महाराज भी कथक की दुनिया में नाम रोशन कर रहे हैं।
बिरजू महाराज के पुरस्कारो की बात करे तो इनको कई सम्मान मिले। 1986 में उन्हें पद्म विभूषण से नवाजा गया। इनमे संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार तथा कालिदास सम्मान प्रमुख हैं। इसके साथ ही इन्हें काशी हिन्दू विश्वविद्यालय एवं खैरागढ़ विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि मिली वही 2016 में हिन्दी फ़िल्म बाजीराव मस्तानी में ‘मोहे रंग दो लाल’ गाने पर नृत्य-निर्देशन के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। 2002 में उन्हें लता मंगेश्कर पुरस्कार से नवाजा गया इसके अलावा 2012 में ‘विश्वरूपम’ के लिए सर्वश्रेष्ठ नृत्य निर्देशन का और 2016 में ‘बाजीराव मस्तानी’ के लिए सर्वश्रेष्ठ नृत्य निर्देशन का फिल्म फेयर पुरस्कार मिला।