सेंट्रल डेस्क, फलक इक़बाल:- भारतीय रसोई का सबसे खास मसाला…काली मिर्च, स्वाद में तीखा जरूर होता है लेकिन खाने को जायकेदार बनाने में इसका कोई मुकाबला नहीं कर सकत। तो आये जानते हैं काली मिर्च के रोचक सफर के बारे में…जिन मसालों का आज हम अपने रसोईघर में इस्तेमाल करते हैं, उनकी भी अपनी एक कहानी होती है। मसालों की यात्रा भी दुनिया की कहानी से कम पुरानी नहीं है। इन कहानियों से अर्थतंत्र, संस्कृति, राजनीति और साम्राज्यों की ताकत की कहानियां भी जुड़ी हैं..साथ ही यह कहना गलत नहीं होगा कि अगर भारत के मसालों की ख्याति यूरोप तक नहीं फैली होती तो शायद 16वीं सदी में पुर्तगाली व्यापारी और जहाजी वास्को डिगामा भारत नहीं आया होता। उनके पीछे पीछे फ्रेंच और अंग्रेज भी नहीं आए होते। ये मसाले थे, जिन्होंने यूरोपीय देशों के बीच एक अलग तरह की छवि बना दी थी , तो ये मसाले ही थे, जिनके व्यापार पर एकाधिकार के लिए विदेशी ताकतें अपने देश तक पहुंचीं, फिर उनकी मेहनत इस तरह रंफ लाइ कि उन्होंने इस देश के कुछ हिस्सों में अपनी कालोनी स्थापित कर ली। अपने वाइसराय यहां तैनात कर दिए। इसी में एक मसाला है- काली मिर्च। आपको लगता होगा कि यह छोटा-सा काला दाना क्या करता होगा, पर यकीन मानिए कि एक जमाने में यह काली मिर्च दुनिया भर में ताकत और पैसे का चिन्ह बनकर उभरी थी।
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काला सोना
यूरोपीय काली मिर्च को काला सोना भी कहते थे। आज भी दुनिया में सबसे ज्यादा काली मिर्च का उत्पादन भारत में होता है। परन्तु ]अफसोस कि यह उत्पादन अब घट रहा है और मांग तो इसकी कंही काम हो नहीं सकती। केरल आज भी दुनिया का एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां दुनियाभर के सबसे ज्यादा मसालों की खेती होती है और सबसे ज्यादा मसालों का व्यापार। हम उस मसाले पर ही ध्यान देते करते हैं, जो आज भी मसालों का राजा है, अगर इसे मसाले से निकाल दें, तो मसालों का स्वाद, रौनक सब फीकी पड़ जाती है। रंग बिलकुल बेरंग हो जाता है। यह है काली मिर्च का कमाल। यह महत्व इसे यूं ही हासिल नहीं हो गया, बल्कि यूं कहें कि सैकड़ों सालों से इस मसाले के रिसर्च करने वालों ने इसे बहुत अहम मना है। यह केवल रसोई का ही राजा नहीं है, बल्कि बिमारियों के इलाज से लेकर एयर प्यूरीफिकेशन के काम में भी इसका महत्व साबित हो चुका है।
आये जानते हैं किसकी देन
काली मिर्च का जन्म कहां से हुआ? कहां से यह भारत आई या क्या यह दुनिया को भारत की देन है? ये सब सवाल सैकड़ों सालों से पूछे जाते रहे हैं। हमारे पूर्वज इसे भारत तक लेकर आए। कुछ केरल का गरम और नम वातावरण मसालों की खेती के लिए सैकड़ों सालों से इसकी पैदावार का ज़िम्मेदार बना रहा। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि मालाबार तट पर काली मिर्च की पैदावार अधिक होती है, यकीनन इसके बीज समुद्र के साथ बहते हुए यहां पहुंचेंगे होंगे और पहर ज़मीन क संपर्क में आए होंगे और यहां की आबोहवा का साथ पाकर खूब फले-फूले। जो भी हो, लेकिन दुनिया यही मानती है कि काली मिर्च मूल रूप से भारत की ही देन है। हमारी सबसे बड़ी पहचान यही मसाला रहा है, लेकिन यह भी पक्का है कि जिन मसालों को आज हम किचन का ही एक अहम अंग मानते हैं, उनका सबसे पहले उपयोग हमारे देश में चरक और सुश्रुत जैसे आयुर्वेद के जन्मदाताओं ने अचूक दवाइयों के रूप में किया था। आज भी आयुर्वेद पूरी तरह से इन्हीं मसालों से चिकित्सा के आधार पर टिका हुआ है।
केसा रहा काली मिर्च का सफर
काली मिर्च के फायदे इस कदर हैं कि हम अगर लिस्ट बनाएं तो हैरान रह जाएंगे। लेकिन हम यहां काली मिर्च की शानदार यात्रा के बारे में ही जान लेते हैं। केरल के पहाड़ी इलाकों में काली मिर्च के मध्यम दर्जे की पत्तियों वाले पेड़ मूल रूप से पाए जाते हैं। वहां लोग अपनी बड़ी-बड़ी जमीनों पर इसकी फार्मिंग का काम करते हैं। यह काम इतने बड़े पैमाने पर होता है कि गांव, शहरों और लाखों लोगों का जीवन इससे चलता है। ऊंचे-ऊंचे पेड़ों पर ये पत्तियों के साहरे हरे दानों के गुच्छों के रूप में लटकती रहती हैं। पेड़ पर चढ़कर लोग इन गुच्छों को तोड़ते हैं और फिर पैरों या मशीनों के जरिए इन छोटे हरे दानों को अलग किया जाता है। कड़ी धूप में इन्हें कई दिन सुखाने के बाद ये दाने स्वाद भरी काली मिर्च के रूप में आती है। जिन इलाकों में यह काम होता है, वहां आस-पास काली मिर्च की एक खुशबू फैली होती है। यह एयरफ्रेशनर का काम भी करती है। वातावरण को शुद्ध रखती है। काली मिर्च और सफेद मिर्च एक ही पेड़ से आते है और इन्हे भी इन हरे दानों से ही प्रोसेस किया जाता। काली मिर्च धूप में सूखने के कारण सूर्य की किरणों के साथ वातावरण की कई खूबियों को अपने अंदर सोख लेती है। हालांकि अब भी केरल में सबसे ज्यादा बहार के देशों में काली मिर्च का व्यापर होता है। व्यापार काली मिर्च का ही होता है और इससे बड़े पैमाने पर विदेशी कमाई होती है।परन्तु इसकी खेती का एरिया कम होता जा रहा है, साथ ही उत्पादन भी। थाईलैंड और वियतनाम जैसे देश भी इसे बड़े पैमाने पर उगाने लगे हैं, लेकिन आज भी जो बात भारतीय काली मिर्च में है, वह किसी और में नहीं। यह काफी ऊंचे दामों में बिकती है।