पाकिस्तान का जिला उमरकोट भारत के पड़ोसी मुल्क का वह इलाका है, जहां पर हिंदू की आबादी काफी संख्या में है साथ ही व्यापार में भी नियंत्रण के लिहाज से समुदाय का दबदबा है, लेकिन इसके बावजूद भी इस क्षेत्र में हिंदुओं की स्थिति ठीक नहीं है बता दे की यहां हिंदुओं को अपने समुदाय का ही निर्वाचित प्रतिनिधि नहीं मिला यहाँ के लोग बताते हैं कि निर्वाचित प्रतिनिधित्व नहीं होने के कारण हिंदू सुविधाओं से वंचित हैं. हालांकि, यदि धार्मिक सद्भाव की बात करें, तो क्षेत्र में हालात बेहतर नजर आते हैं एक रिपोर्ट के मुताबिक , 10 लाख 73 हजार की जनसंख्या वाले उमरकोट में करीब 52 फीसदी हिंदू निवास करते हैं पाकिस्तान के सबसे बड़े शहर कहे जाने वाले कराची से उमरकोट की दूरी लगभग 325 किमी की है और लोक कथाओं में भी इस जगह का काफी अहम जिक्र मिलता है यहां के नाम के तार किले से जुड़े हुए हैं, जहां राजपूत ठाकुर घरानों और समुरो ने शासन किया है, हिंदू आबादी के लिहाज से उमरकोट के बाद थार दूसरा सबसे बड़ा जिला है, जहां हिन्दुओ की आबादी करीब 40 फीसदी है.रिपोर्ट से मिली जानकारी के मुताबिक उमरकोट की आर्थिक कमर कृषि को कहा जा सकता है, जहां अधिकांश जमींदार मुसलमान हैं, तो वही किसान 80 फीसदी हिंदू दलित समुदाय से जुड़े हैं यहाँ के दुकानदारों की बात की जाए तो अधिकतर ऊंची जाति के हैं और खाद, बीज और सर्राफा बाजार पर उनका वर्चस्व है
करीब 28 सालों से यहाँ पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी जीत दर्ज कर रही है. उमरकोट जिले में नेशनल असेंबली का एक औऱ प्रांतीय विधानसभा की चार सीटें हैं. रिपोर्ट के मुताबिक , यहां अधिकतर सियासी दल सामान्य सीटों पर अल्पसंख्यक उम्मीदवारों को मौका नहीं देते हैं इसके अलावा यहां मतदाताओं की संख्या 5 लाख 34 हजार हैं, जिसमें करीब 54 फीसदी पुरुष हैं.
2018 के आम चुनाव में पाकिस्तान मुस्लिम लीग के टिकट पर लड़ने वाली नीलम वालजी के अनुसार ‘राजनीतिक दलों ने एक परंपरा स्थापित कर ली है. वे भील, कोली, मेंघवार, माल्ही बरदारी आदि विभिन्न समुदायों के उम्मीदवारों के बीच आरक्षित सीटों को बांट देते हैं और ऐसा करके वे पूरे समुदाय का वोट ले जाते हैं.’इसके साथ ही वे आर्थिक हालात को भी अल्पसंख्यक उम्मीदवारों को टिकट नहीं मिलने की बड़ी वजह बताती हैं उमरकोट निवासी लाल चंद माल्ही आरक्षित सीट पर पीटीआई से नेशनल असेंबली के सदस्य हैं उन्होंने बताया कि हिंदू बहुमत होने के बाद भी अधिकांश सियासी दल अल्पसंख्यकों को सामान्य सीट पर टिकट नहीं देते
इसके अलावा शिक्षा, स्वास्थ्य, पुलिस और नगरपालिका ही ऐसे विभाग हैं, जहां सरकारी नौकरियां बड़ी संख्या में हैं और 209 कर्मचारियों वाली नगरपालिका में 60 फीसदी मुस्लिम हैं आगे माल्ही ने बताया ‘सरकारी नौकरियों का हमारे समाज में राजनीति से गहरा ताल्लुक है. यदि आपका प्रतिनिधित्व नहीं है, तो कोटा और पक्ष तो छोड़िए, मेरिट पर भी नौकरी नहीं मिलती जिसके चलते अल्पसंख्यक समुदाय के लोग कई बार अच्छी नौकरी हासिल नहीं कर पाते.’
वही सामाजिक कार्यकर्ता मेवा राम परमार बताते हैं कि हिंदू समुदाय का निर्वाचित प्रतिनिधि नहीं है, लेकिन अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधि हैं. उनका कहना है की नौकरियों में राजनीतिक हस्तक्षेप होता है तो इस स्थिति में अल्पसंख्यक वंचित रह जाते हैं.’