भारत का संविधान अपने आप में अनूठा है| भारतीय संविधान की विशेषता है कि वह यदि किसी व्यक्ति संवैधानिक पद को अधिकार देता है तो उसी संवैधानिक पद की मर्यादा भी घोषित करता है! एक लोकतांत्रिक देश के लिए यह अति आवश्यक है कि कोई भी संवैधानिक पद इतना शक्तिशाली ना हो कि वह अपनी पद की कर का दुरुपयोग कर सके| हमारे सामने कई ऐसे उदाहरण है जहां संवैधानिक पद पर बैठा एक व्यक्ति देश का तानाशाह या यूं कहें कर्ताधर्ता बन जाता है|
जिस प्रकार भारतीय संविधान राष्ट्रपति पद को कोई अधिकार देता है लेकिन साथ ही उन अधिकारों पर अंकुश भी लगाता है| ऐसी ही एक शक्ति है क्षमा दान! राष्ट्रपति के पास यह शक्ति है कि वह किसी भी आरोपी के मृत्युदंड को क्षमा कर सकता है लेकिन, क्या यह शक्तियां संविधान में वर्णित सभी नियमों से ऊपर हैं, आइए जानते हैं
राज्यपाल की क्षमादान शक्ति और CrPC की धारा 433A हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने माना कि राज्यपाल की क्षमादान की शक्ति, ‘दंड प्रक्रिया संहिता’ (CrPC) की धारा 433A से अधिक है।
इससे पहले जनवरी 2021 में दया याचिका के एक मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि राज्यपाल राज्य मंत्रिपरिषद की सिफारिश को अस्वीकार नहीं कर सकता है, हालाँकि निर्णय लेने के लिये कोई समयसीमा निर्धारित नहीं की गई है।
धारा 433A को अतिव्यापन करती है क्षमादान शक्ति:
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि राज्यपाल 14 वर्ष की जेल होने से पूर्व भी कैदियों को क्षमादान दे सकता है।
इस प्रकार क्षमादान करने की राज्यपाल की शक्ति CrPC की धारा 433A के तहत किये गए प्रावधान को अतिव्यापन करती है, जिसमें कहा गया है कि कैदी को 14 वर्ष की जेल के बाद ही माफ किया जा सकता है।
धारा 433A में कहा गया है कि जहाँ किसी व्यक्ति को अपराध के लिये दोषी ठहराए जाने पर आजीवन कारावास की सज़ा दी जाती है और जिसके लिये मृत्युदंड, कानून द्वारा प्रदान की गई सज़ा में से एक है या जहाँ किसी व्यक्ति को दी गई मौत की सज़ा को धारा 433 के तहत बदल दिया गया है। ऐसे में आजीवन कारावास के तहत व्यक्ति को तब तक जेल से रिहा नहीं किया जाएगा जब तक कि उसने कम-से-कम चौदह वर्ष के कारावास की सज़ा न काट ली हो।
धारा 433A किसी भी स्थिति में संविधान के अनुच्छेद 72 या 161 के तहत राष्ट्रपति/राज्यपाल को क्षमादान देने की संवैधानिक शक्ति को प्रभावित नहीं कर सकती है।
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क्षमादान की शक्ति:
भारत में राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति:
संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति को अपराध के लिये दोषी ठहराए गए किसी भी व्यक्ति की सज़ा को माफ करने, राहत देने, छूट देने या निलंबित करने, हटाने या कम करने की शक्ति होगी, जहाँ दंड मौत की सज़ा के रूप में है।
सीमाएँ:
राष्ट्रपति सरकार से स्वतंत्र होकर अपनी क्षमादान की शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकता।
कई मामलों में SC ने निर्णय सुनाया है कि राष्ट्रपति को दया याचिका पर फैसला करते समय मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करना होता है। इन मामलों में वर्ष 1980 का मारू राम बनाम भारत संघ और वर्ष 1994 में धनंजय चटर्जी बनाम पश्चिम बंगाल राज्य शामिल है