जून 1975 में लगे आपातकाल को भारतीय गणतंत्र का सबसे बुरा दौर माना जाता है। इस दौरान नागरिक अधिकारों को ही नहीं बल्कि भारतीय न्यायपालिका और संविधान तक को राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की भेंट चढ़ा दिया गया था। ऐसे कई संशोधन इस दौर में किये गए जिन्हें आज तक संविधान के साथ हुए सबसे बड़े खिलवाड़ के रूप में देखा जाता है। लेकिन क्या इस आपातकाल से लगभग बीस साल पहले भी संविधान के साथ ऐसा ही एक खिलवाड़ हुआ था? ‘जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र’ की मानें तो 1954 में एक ऐसा ‘संवैधानिक धोखा’ किया गया था जिसकी कीमत आज तक लाखों लोगों को चुकानी पड़ रही है।
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1947 में हुए बंटवारे के बाद लोखो लोग शरणार्थी बनकर भारत आए। ये लोग देश के कई हिस्से में बसे और फिर वहीं का एक हिस्सा बन कर रह गए। इसके बाद ये सभी लोग जहां भी बसे वहीं के स्थायी निसी कहलाने लगे। लेकिन जम्मु-कश्मीर में स्थिति ऐसी नहीं है। यहां आज भी कई दशक पहले बसे लोग शरणार्थी ही कहलाती है और तमाम मौलिक अधिकारो से वंचित है। इन लोगो को ना तो यंहा के होने वाले चुनावों में वोट डालने का अधिकार है और ना ही सरकारी नौकरी पाने का। इसके साथ ही इनके बच्चों को सरकारी कॉलेजों में दाखिले भी नही मिलते।
ये लोग भारत के प्रधानमंत्री तो बन सकते हैं लेकिन जिस राज्य में ये कई सालों से रह रहे हैं वहां के ग्राम प्रधान भी नहीं बन सकते।’ सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता जगदीप धनकड़ बताते हैं, ‘इनकी यह स्थिति एक संवैधानिक धोखे के कारण हुई है। 14 मई 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा एक आदेश पारित किया गया था।इस आदेश के जरिये भारत के संविधान में एक नया अनुच्छेद 35A जोड़ दिया गया। यही आज लाखों लोगों के लिए अभिशाप बन चुका है।
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अनुच्छेद 35A जम्मू-कश्मीर की विधान सभा को यह अधिकार देता है कि वह ‘स्थायी नागरिक’ की परिभाषा तय कर सके और उन्हें चिन्हित कर विभिन्न विशेषाधिकार भी दे सके। यही अनुच्छेद परोक्ष रूप से जम्मू और कश्मीर की विधान सभा को, लाखों लोगों को शरणार्थी मानकर हाशिये पर धकेल देने का अधिकार भी दे देता है।
आपको बता दें कि भारतीय संविधान में आज तक जितने भी संशोधन हुए हैं, सबका जिक्र संविधान की किताबों में होता है। लेकिन 35A कहीं भी नज़र नहीं आता। दरअसल इसे संविधान के मुख्य भाग में नहीं बल्कि परिशिष्ट (अपेंडिक्स) में शामिल किया गया है। यह चालाकी इसलिए की गई ताकि लोगों को इसकी कम से कम जानकारी हो। भारतीय संविधान की बहुचर्चित धारा 370 जम्मू-कश्मीर को कुछ विशेष अधिकार देती है। 1954 के जिस आदेश से अनुच्छेद 35A को संविधान में जोड़ा गया था, वह आदेश भी अनुच्छेद 370 की उपधारा (1) के अंतर्गत ही राष्ट्रपति द्वारा पारित किया गया था।
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https://www.youtube.com/watch?v=ELdmB581NMs