भूतपूर्व केबिनेट मंत्री बाबुल सुप्रियो के राजनीति से सन्यास लेने की खबरें आ रही हैं।
वर्तमान में आसनसोल से भाजपा सांसद बाबुल राजनीति में आने से पहले संगीत और फ़िल्म के क्षेत्र में काफ़ी नाम कमा चुके हैं।
लेकिन इसी साल हुए बंगाल चुनाव में हुई हार और केबिनेट मंत्री के तौर पर नाकाम रहने के बाद से ही भाजपा केंद्रिय नेतृत्व के लिए चुनौती बन चुके सुप्रीयो के लिए राह कठिन होती ही चली गई।
नतीजतन पहले केबिनेट मंत्री का पद छिन गया और अब रही सही कसर बंगाल की जनता ने निकाल दी। 50000 से ज़्यादा अंतर से विधायकी की सीट हारने के बाद अब शायद सुप्रियो के पास बोलने के लिए कुछ झाड़ा राह नहीं गया।
अपनी राजनीतिक पारी की सम्भावित अंत की घोषणा करते हुए Facebook पर बांग्ला भाषा में पोस्ट लिखी की है।
मैं तो जा रहा हूँ..
Alvida…
सबने सुना – बाप, (माँ) पत्नी, बेटी, दो प्यारे दोस्त.. सब सुन कर कहता हूँ,
मैं तो जा रहा हूँ…
‘कुछ देर रुके रहे’.. कुछ मन रखा और कुछ टूट गए.. कहीं काम से खुश हो गए, कहीं निराश | तुम मूल्यांकन नहीं करोगे 😊
‘ मेरे ‘ मन ‘ में उठते सभी सवालों के जवाब देने के बाद कह रहा हूँ.. मैं इसे अपने तरीके से कह रहा हूँ..
मैं जा रहा हूँ… 👋
सामाजिक कार्य करना है तो बिना राजनीति के भी कर सकते हैं – चलो थोड़ा पहले खुद को संगठित करते हैं फिर…
हाँ, जाहिर है संसद पद से इस्तीफा! [मेरे MP-जहाज से भी इस्तीफा दे रहा हूँ (जाहिर है)]
मैंने पिछले कुछ दिनों में माननीय अमित शाह और माननीय नद्दाजी को राजनीति छोड़ने का संकल्प लिया है मैं उनका आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे कई मायनों में प्रेरित किया है |
मैं उनके प्यार को कभी नहीं भूलूंगा और इसलिए मैं उन्हें फिर से वही चीज नहीं दिखा सकता 🙏 विशेष रूप से जब मैंने फैसला किया है कि ‘मेरा मैं’ क्या करना चाहता है || इसलिए फिर से वही कहीं जब मैं दोहराने जाता हूं शब्द, वे सोच सकते हैं कि मैं एक ‘ स्थिति ‘ के लिए ‘ सौदेबाजी ‘ कर रहा हूँ | और जब यह सच नहीं है, तो वे नहीं चाहते कि ‘ संदेह ‘ उनके दिमाग से दूर हो जाए – एक पल के लिए भी |
मैं प्रार्थना करता हूँ कि वे मुझे गलत नहीं समझते हैं, मुझे माफ कर दें |
अब और कुछ खास नहीं कहूंगा अब ‘ तुम कहोगे मैं सुनूंगा दिन में, ‘ शाम में ‘ 😊
लेकिन मुझे एक सवाल का जवाब देना होगा क्योंकि यह सही है! सवाल उठेगा कि मैंने राजनीति क्यों छोड़ी? मंत्रालय के जाने से इनका कोई लेना देना है क्या? हाँ वहाँ है – कुछ लोगों के पास होना चाहिए! चिंता नहीं करना चाहते हैं तो अगर वह सवाल का जवाब देगी तो सही होगा-इससे मुझे भी शांति मिलेगी |
2014 और 2019 के बीच बड़ा अंतर |
तब भाजपा के टिकट में मैं अकेला था (अहलुवालियाजी के सम्मान में – दार्जिलिंग सीट में जीजेएम भाजपा का सहयोगी था) लेकिन आज बंगाल में भाजपा मुख्य विपक्षी दल है । आज पार्टी में कई नए चमकीले युवा तुर्की नेता उतने ही पुराने हैं. जितने पुराने नेता भी हैं. कहने की जरूरत नहीं है कि उनके नेतृत्व में पार्टी यहां से एक लंबा सफर तय करेगी । कहने में कोई संकोच नहीं कि आज पार्टी में एक भी व्यक्ति नहीं होना बड़ी बात है फिर भी यह स्पष्ट है कि सही निर्णय मेरा होगा । मजबूत, मजबूत विश्वास!
एक और बात.. चुनाव से पहले राज्य नेतृत्व के साथ कुछ मुद्दे थे – यह हो सकता है लेकिन उनमें से कुछ सार्वजनिक रूप से आ रहे थे | कहीं न कहीं मैं इसके लिए जिम्मेदार हूं (फेसबुक पोस्ट किया जो पार्टी अराजकता के स्तर में गिरता है) फिर से कहीं और नेता भी बहुत जिम्मेदार हैं, हालांकि मैं नहीं जाना चाहता कि कौन जिम्मेदार है – लेकिन पार्टी की असहमति और वरिष्ठ नेताओं की असहमति से नुकसान हो रहा था, ‘ग्राउंड जीरो’ में भी पार्टी कार्यकर्ताओं के हौसले को किसी भी मदद नहीं कर रहा था रास्ता । ‘रॉकेट साइंस’ ज्ञान की आवश्यकता नहीं है | इस समय यह पूरी तरह से अप्रत्याशित है इसलिए आसनसोल की जनता को अनंत आभार और प्यार देकर दूर जा रहा हूँ |
माना नहीं कि मैं कहीं गया था – मैं ‘खुद’ के साथ था – इसलिए आज कहीं वापस जा रहा हूँ मैं कुछ नहीं कहूँगा |
कई नए मंत्रियों को अभी तक सरकारी मकान नहीं मिला है इसलिए मैं एक महीने में अपना घर छोड़ दूंगा (जितनी जल्दी हो सके – शायद उससे पहले) |
हाँ, जाहिर है संसद पद से इस्तीफा!
आसमान में स्वामी रामदेवजी से फ्लाइट पर छोटी सी बातचीत हुई । बिल्कुल अच्छा नहीं लगा जब पता चला कि बंगाल को बीजेपी बहुत गंभीरता से ले रही है, सत्ता से लड़ेगी लेकिन शायद सीट की उम्मीद नहीं । ऐसा लगा जैसे बंगाली श्यामाप्रसाद मुखर्जी, अटल बिहारी वाजपेयी इतना. कैसे वो बंगाली जो सम्मान, प्यार करता है वो भाजपा को एक सीट पर नहीं जीतेगा!!! खासकर जब पूरा भारत वोट देने से पहले ये तय कर ले कि उनके लायक उत्तराधिकारी नरेंद्र मोदी होंगे Next PM of India, बंगाल अलग क्यों सोचेंगे | चुनौती को बंगाली के रूप में लेना था उस समय, इसलिए मैंने सबको सुना लेकिन जो महसूस किया वो किया – अनिश्चितता से डरे बिना, जो सही सोचा वो किया, साथ में ‘दिल-जान’ |
स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक की नौकरी छोड़कर मुंबई जाते समय 1992 में भी यही किया था, आज वही किया!!!
मैं तो जा रहा हूँ..
हाँ, कुछ शब्द रह गए हैं..
शायद कभी कहेंगे..
आज मैं वहां नहीं हूँ या कह रहा हूँ..
मैं तो जा रहा हूँ..