संसद सर्वोच्च है। यह लोकतन्त्र की आधारशिला है। विधि निर्माता और संविधान रक्षक है। एक सक्षम लोकतन्त्र में संसद की गलती को संसद ही सुधारती है अन्यथा लोकतन्त्र निश्चित ही भीड़तन्त्र में परिवर्तित हो जाएगा।
पहले नागरिकता कानून का विरोध और फिर कृषि कानून के विरोध ने राष्ट्र के लोकतन्त्र को भीड़तंत्र में परिवर्तित कर दिया है।
प्रधानमंत्री मोदी कृषि क़ानूनों के ख़ारिज किए जाने की घोषणा के बाद से जिस बात का अंदेश था वही हुआ। जम्मू कश्मीर के स्थानीय दल नेशनल कॉन्फ्रेंस के सुप्रीमो फारुख अबुदल्ला ने कहा है कि किसानों की तरह हमें भी अपना हक पाने के लिए कुर्बानी देने को तैयार रहना चाहिए।
दरअसल, अब्दुल्ला अपने पिता शेख मोहम्मद अब्दुल्ला की जयंती के अवसर पर एक युवा सम्मेलन में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रहे थे। इस कार्यक्रम में अब्दुल्ला परिवार की तीसरी पीढ़ी के नेता और उनके सुपुत्र उमर अब्दुल्ला भी बैठे हुए थे।
उकसाने की रही है परम्परा
फारुख अब्दुल्ला ने अपने पिता की बरसी पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के युवा कार्यकर्ताओं को एक सम्बोधन में उकसाने का ही काम किया। अब्दुल्ला ने कहा कि जिस तरह किसानों ने कुर्बानी दी और 700 किसानों के क़ुरबानी के पश्चात आखिरकार भारत सरकार को झुकते हुए कृषि कानून वापस लेना पड़ा, उसी तरह हमे भी भारत सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल कुर्बानी देनी पड़ेगी तभी यह सरकार अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35A को पुनः लागू करेगी।
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अब्दुल्ला के इस तरह के बयान बयान से ऐसा लग रहा था मानों वो भाषण नहीं दे रहें बल्कि उन युवाओं को भारत सरकार के खिलाफ बगावत के लिए उकसा रहे हैं। उन्होने अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35A को पुनः लागू कराने के लिए अपने पार्टी की प्रतिबद्धता दोहराई।
बात सिर्फ़ यहीं तक रुक जाती तो ग़नीमत होती। लेकिन अब्दुल्ला अपने सम्बोधन में निरीह युवाओं के सेना और सुरक्षा बलों के ख़िलाफ़ भी लगभग भड़काते हुए ही पाए गए।
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कश्मीर में बढ़ी है राजनैतिक सरगर्मी
जम्मू कश्मीर में हालिया दिनों में राजनीतिक गतिविधि काफ़ी बढ़ी है। महबूबा मुफ़्ती की पीडीपी ने भी अपने राजनीतिक कार्यक्रमों में वृद्धि कर दी है। सभी नेताओं को नज़रबंदी से मुक्त कर दिया गया है। जम्मू कश्मीर में स्थिति सामान्य हो रही है। स्कूल-कॉलेज खुल रहें है। संचार सेवा शुरू हो चुकी है। जम्मू और कश्मीर में पर्यटन फिर अपने स्वर्णिम इतिहास के रास्ते चल पड़ा हाई है। ऐसे में तभी फारुख और मुफ़्ती जैसे नेता अब युवाओं को बर्गलाना शुरू कर रहे हैं। उनका यह कृत्य ना केवल राजनीतिक तल्खियों में व्यवस्था के लिए चुनौती प्रस्तुत करता है बल्कि हिंदुओं और भारत सरकार के खिलाफ विषवमन सामाजिक समरसता के लिए भी विनाशकारी हाई साबित होता रहा है।
अस्थिर ना हो माहौल
ऐसे में कुछ मुट्ठी भर पाकिस्तान परस्त इस राजनैतिक अस्थिरता का लाभ लेने के चक्कर में आग में घी डालने का काम करते हैं। ऐसे गुट जिनकी राजनीति की दुकान नफरत और अराजकता पर ही चलती रही है उन्हें आम जनता के अंतहीन दुष्चक्र में पिसने का ना कोई मलाल तब था, ना अब है।
ज्ञात हो कि फारुख अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला नें ही नेहरू को विवश करके संविधान में अनुच्छेद 370 और 35A अंकित करवाया था। जिसे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री स्वर्गीय जवाहरलाल नेहरू ने बिना संसद की अनुमति लिए कर भी दिया।
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परंतु, जम्मू कश्मीर की जनता को इन नेताओं और गुटबाज़ों के झांसे में ना आते हुए भारत के लोकतान्त्रिक और संसदीय व्यवस्था में विश्वास रखना चाहिए। साथ ही भारत सरकार के लिए भी ऐसे बयानों को बग़ावती और अराजकता के दायरे में ना रखना एक भूल ही होगी।
कुर्बानी देने से कुछ नहीं होगा क्योंकि भारतीय सेना कह चुकी है- “कितने गाजी आए कितने गाजी गए, जो भारतीय संप्रभुता को चुनौती देगा उसे तत्काल जन्नत भेज दिया जाएगा।“