ये बात तब की है जब भारत में अंग्रजो का शासन हुआ करता था। उस समय अंग्रेजो के जुल्म से भारतीय बहुत परेशान हो चुके थे। इनके राज में सबसे ज्यादा दयनीय स्थिती मजदूरों की थी। मजदूरों को कोई भी छुट्टी नहीं मिलने के कारण हफ्ते के सातों दिन काम करना पड़ता था। कई जगह तो ऐसे भी थे जहाँ मजदूरों को खाने के लिए भी दोपहर में छुट्टी नहीं दी जाती थी।
मजदूरों की इतनी बुरी दशा देखकर श्री नारायण मेघाजी लोखंडे ने साल 1883 में इनके लिए आवाज उठाई। मेघाजी ने सप्ताह में एक दिन अवकाश मिले इसके लिए अपना संघर्ष शुरू किया। छुट्टी के लिए उन्होंने कई सारे तर्क रखे जिनमे से मुख्य था की हर भारतीय हफ्ते में 7 दिन अपने मालिक और कंपनी के लिए काम करता है। अगर इन्हे सप्ताह में एक दिन छुट्टी दी जाए तो ये लोग अपने प्रति और देश के प्रति कर्तव्यों को निभा सकेंगे।
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इसके बाद मेघाजी ने इस पर विचार किया की अगर सप्ताह में एक दिन का अवकाश मिले तो वो किस दिन मिलना चाहिए। मेघाजी लोखंडे ने हिन्दू धर्म के अनुसार रविवार के दिन को सुनिश्तिच किया। उन्होंने ऐसा कहा कि रविवार खंडवा देवता का दिन होता है तो इस दिन छुट्टी मिलना सही रहेगा।
लोखंडे के लगभग सात साल लम्बे संघर्ष के बाद आखिरकार 10 जून 1890 को भारत में अंग्रेजो की सरकार ने रविवार के दिन को सभी भारतीयों के लिए छुट्टी का दिन घोषित किया। इतना ही नहीं इनके इसी प्रयास से, दोपहर में आधे घंटे के लिए भी छुट्टी मिलने लगी। लोखंडे जी के इतने महान प्रयास का सम्मान करने के लिए भारत सरकार ने साल 2005 में इनके नाम का डाक टिकट भी जारी किया था।