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सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पक्षकार की दलील

आयोध्य भूमि मामले कि सुनवाई के दौरान बीते दिन सोमवार को मुस्लिम पक्ष ने कहा कि हम राम का करते हैं सम्मानऔर इसी के साथ कहा की अगर यहां अल्लाह का सम्मान नहीं होगा तो हो जाएगा देश खत्म। वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिर्फ शुक्रवार छोड़कर इस केस की सुनवाई 4 बजे की बजाए 5 बजे तक होगी।

चीफ जस्टिस रंजन गोगई , जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड, जस्टिस अशोक भूषड ओर जस्टिस एस अब्दुल नजीर की संविधान के समक्ष सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा, विवाद तो भगवान राम के जन्मस्थान को लेकर हैं । सवाल यह है कि जन्मस्थान कहा हैं ? पूरी विवादित भूमि तो जन्मस्थान नहीं हो सकती, जैसा कि हिन्दू पक्ष दावा करता है कोई तो एक निश्चित स्थान होगा, पूरा क्षेत्र जन्मस्थान नहीं हो सकता ।


उन्होंने कहा कि अगर जन्मस्थान को लेकर इतना विवाद हैं की सिर्फ एक विश्वास पर आधारित है, तो क्या भारत की बाकी जगहों पर भी ऐसा ही किया जा सकता है । हिन्दू पक्ष कि सुने तो उनका कहना है कि भगवान राम का जन्म यहां हुआ था पर स्थान के बारे में कोई उल्लेख नहीं है । पर क्या जन्मस्थान न्यायिक व्यक्ति हो सकता है । 1989 से पहले किसी भी न्यायिक व्यक्ति को लेकर कोई दलील नहीं थी।
जस्टिस चंद्रचूड ने कहा कि, आयोध्या के मामले पर हिन्दुओं की आस्था पर कैसे सवाल उठाया जा सकता है। यह मुश्किल हैं। एक मुस्लिम का बयान हैं की जैसे मुस्लिमों के लिए मक्का हैं वैसे ही हिंदुओं के लिए आयोध्या हैं।
धवन ने हिन्दू पक्ष के गवाहों के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि दो तरह को परिक्रमा होती है पंच कोसी व चोहदा कोसी परिक्रमा  पूरी आयोध्य की परिक्रमा होती थी और राम चबूतरे कि भी परिक्रमा होती थी। परिक्रमा को लेकर  सभी गवाहों की अलग अलग राय है।


देश बदलने का मतलब संविधान में बहलाव

जस्टिस चंद्रचूड:  जस्टिस चंद्रचूड ने कहा कि, आयोध्या के मामले पर हिन्दुओं की आस्था पर कैसे सवाल उठाया जा सकता है । यह मुश्किल हैं । एक मुस्लिम का बयान हैं की जैसे मुस्लिमों के लिए मक्का हैं वैसे ही हिंदुओं के लिए आयोध्या हैं ।

राजीव धवन:   धर्मशाला के मामले में खुद कुछ नहीं कहा जा सकता  । जन्मस्थान , विश्वास ओर आस्था पर आधारित हैं। इस दलील को स्वीकार करते हैं तो व्यापक असर पड़ेगा , वेदय काल में सूर्य, नदी, पेड, आदि की पूजा होती थी। हिन्दू पक्ष कि दलील सुने तो सब न्यायिक हैं पर लेकिन ये न्यायिक नहीं हिर्दय का भाव हैं।

जस्टिस भूषण: जन्मस्थान महाकवियों सहित अन्य चीजों पर आधारित है । मूर्ति की अवधारणा अलग हैं । स्वयंभू की अवधारणा अलग हैं।

जस्टिस बोबडे: क्या किसी अस्तित्व को न्यायिक व्यक्ति बनने के लिए  उसका दिखना जरूरी है।

राजीव धवन:   धरमशस्त्रो में अपने आप से कच नहीं जोड़ा जा सकता  जैसा की  बात चीत चल रही हैं की पीएम मोदी कहते हैं देश बदल रहा है पर इसका मतलब ये नहीं कि संविधान बदल रहा है।

Written By: Prachi jain

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