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दुष्कर्म के मामला पर हाईकोर्ट ने फैसले में कहा- मुकदमा रद्द करना पीड़िता का सम्मान नष्ट करना होगा

दुष्कर्म के मामले पर फैसला करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि दुष्कर्म एक महिला के शरीर के खिलाफ अपराध है,जो उसका अपना मंदिर और सबसे धनी गहना है।यह ऐसा अपराध हैं जो पीड़िता के जीवन की सांसों का दम घोंटता हैं और प्रतिष्ठा को धूमिल करता हैं।समझौते के आधार पर मुकदमे को रद्द करना पीड़िता के सम्मान को नष्ट करना है।दुष्कर्म का अपराध एक महिला के प्रति ही नहीं,बल्कि पूरे समाज के खिलाफ अपराध है।

बता दें कि हाईकोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कस्टम विभाग में वरिष्ठ पद पर कार्यरत आरोपी की उस याचिका को खारिज कर दिया कि जिसमें उसने पीड़िता से समझौता कर विवाह करने की बात कहते हुए प्राथमिकी रद्द करने की गुजारिश की है।

इस दौरान न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर ने अपने फैसले में कहा कि दुष्कर्म का अपराध समझौते के लायक नहीं है।यह नहीं माना जा सकता कि ऐसे मामले में समझौता करने में पीड़िता की वास्तविक सहमति है।इसकी पूरी संभावना है कि दोषियों द्वारा उस पर दबाव डाला गया हो या उसे मजबूर किया गया हो।यदि ऐसे समझौते को स्वीकार किया गया तो पीड़ित पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।

इसके अलावा अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता एक सरकारी कर्मचारी है, जो सीमा शुल्क और सीजीएसटी विभाग, भारत सरकार में अधीक्षक के रूप में कार्यरत है।यह राजपत्रित पद है। एक सरकारी सेवक होने के नाते उससे अपेक्षा की जाती है कि वह अपने निजी जीवन में उच्च नैतिक सत्यनिष्ठा और आचरण के सभ्य स्तर को बनाए रखे और अपने कुकर्मों से पद को बदनाम न करे।

इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न फैसलों का हवाला देते अदालत ने हुए कहा कि जघन्य और गंभीर अपराध या हत्या, दुष्कर्म, डकैती आदि जैसे अपराधों में समझौते को स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।ऐसे अपराध प्रकृति में निजी नहीं हैं, और समाज पर गंभीर प्रभाव डालते हैं।आगे अदालत ने कहा कि ऐसे में वे दोनों पक्षों के बीच समझौते के आधार पर प्राथमिकी रद्द करने से इनकार करते हुए याचिका खारिज करते है।

जानकारी के अनुसार आरोपी से पीड़िता की जान पहचान एक विवाह करवाने वाली साइड के जरिए हुई थी।आरोपी ने स्वयं को सरकारी अधिकारी बताया था और कहा कि उसकी पहली पत्नी ने आत्महत्या कर ली थी।इसके बाद आरोपी ने पीड़िता से जबरन शारीरिक संबंध बनाए और विवाह करने का वादा भी किया।वहीं आरोपी ने अपने कार्यालय में गलत काम किया।

वहीं एक अन्य मामले में हाईकोर्ट ने 30 सप्ताह से अधिक की गर्भावस्था वाली एक महिला के भ्रूण में दुर्लभ गुणसूत्रीय गड़बड़ी के चलते गर्भपात कराने की अनुमति दे दी है।इस दौरान अदालत ने कहा कि यदि महिला शिशु को जन्म देती है तो उसमें इस तरह की गंभीर विकृतियां होंगी जो कभी सामान्य जीवन जीने नहीं देंगी।

इस दौरान न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने कहा कि यदि महिला को गर्भावस्था जारी रखने के लिए मजबूर किया गया तो उसे प्रसव से पहले या उसके दौरान शिशु की मृत्यु होने का निरंतर डर बना रहेगा।अगर शिशु का जन्म हो भी जाएगा तो भी माता को कुछ महीनों के अंदर शिशु की मृत्यु होने का अंदेशा बना रहेगा।इस समय गर्भावस्था जारी रखने से याचिकाकर्ता को कुछ खतरे हैं।यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि यह याचिकाकर्ता को अपनी पसंद के चिकित्सा केंद्र में गर्भपात कराने की अनुमति देने का एक उपयुक्त मामला है।

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