शिवहर, तरियानी प्रखंड के छपरा गांव में जब हमारी टीम (न्यूज़10इंडिया) पहुंची तो वहां का मंजर कुछ और ही था। छपरा गांव में तकरीबन 50 से 60 घरों की आबादी है। हमारी न्यूज़ टीम वहां पहुंचकर जनता से जुड़ी समस्याओं को जानने का प्रयास किया तो पता चला की छपरा गांव में अधिकतर घर झोपड़ी का हैं। वहां के रहने वालों की हालत बहुत ही नाजुक है, यहां तक की किसी के बदन पर सही से कपड़े तक भी नहीं थे । वहां के बच्चे पढ़ने के लिए बेचैन है पर 4 किलोमीटर दूरी होने का कारण बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं । हमारी टीम ने ग्रामीणों से पता किया कि यहां कोई आंगनबाड़ी केंद्र है, तो ग्रामीणों ने कहा कि हां है तो लेकिन आंगनबाड़ी केंद्र झोपड़ी में हैं।
हमारी टीम जब आंगनबाड़ी केंद्र पहुंची तो देख कर इस बात को महसूस किया की वाकई में छपरा गाँव शिक्षा से कोसों दूर हैं। वहां के सभी बच्चे न्यूज़ 10 इंडिया के रिपोर्टर मोहम्मद हसनैन के पास आ गए और अपनी-अपनी समस्या सुनाने लगे। कुछ बच्चों ने कहा कि मैं भी शिक्षा हासिल कर सकता हूं, पर कैसे करूं यहां से स्कूल कोसों दूर हैं।आप जैसा की फ़ोटो को देख सकते हैं। फोटो में यह सारे बच्चे आंगनबाड़ी में पढ़ते हैं। आंगनबाड़ी की हालत को देखकर अंदाजा लगा सकते हैं कि शिक्षा विभाग किस तरह अपनी जिम्मेदारी को निभा रही हैं।
आपको बता दें कि इस गांव में आने के लिए सड़क नहीं, रहने के लिए सही से मकान नहीं, पीने के लिए सही से पानी नहीं, शिक्षा के लिए यहां पर स्कूल नहीं हैं। बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है छपरा गांव के बासी को। वहां के जनता का यह कहना है कि ‘नेता यहां चुनाव के समय आते हैं और फिर गांव को भूल जाते हैं।’ हकीकत यह है कि आज तक यहां कोई जनप्रतिनिधि नहीं आया और न ही हाल जानने की कोशिश किया। आप हालत को देखकर अंदाजा लगा सकते हैं कि स्थानीय सुविधाओं से छपरा गाँव किस तरह बंचित है। स्कूल के बच्चे पढ़ने के लिए बेचैन है पर स्कूल इतनी दूर है की बच्चे स्कूल नहीं जा सकते। एक आंगनबाड़ी केंद्र है, वह भी झोपड़ी का हैं।
छपरा गांव निवासी चंदेश्वर राम, नथुनी राम, वार्ड मेंबर सदस्य, वार्ड नंबर 15 मीना देवी, इंदु देवी, पवन पासवान और मोहित पासवान आदि ने गांव की समस्या के बारे में न्यूज़ 10 इंडिया के रिपोर्टर मोहम्मद हसनैन से कहा कि ‘यहां रोड नहीं है, हम सब के कच्चे मकान हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना बहुत पहले मिला था जो कब का टूट फूट गया। पीने के लिए नल है पर जल नहीं। शौचालय भी यहां टूटा फूटा हैं। किसी के पास शौचालय का टंकी नहीं, किसी के पास शौचालय नहीं तो किसी के पास शौचालय में गेट नहीं।’
स्थानीय लोगों आगे कहा कि ‘शिक्षा के लिए गांव के अंदर स्कूल नही। अगर स्कूल जाना हो तो चार किलो मीटर के दूरी तय करनी पड़ती है।यहां पर एक आंगनबाड़ी केंद्र है वह भी झोपड़ी, इस टोला में प्रवेश करने के लिए कुछ दूर पैदल भी सफर करना पड़ता है। ‘
स्थानीय लोगों का सिर्फ इतना ही कहना है कि बिहार सरकार कम से कम हमारे बच्चों को शिक्षा के लिए एक छोटा सा स्कूल खोल दे ताकि हमारे बच्चे का भी भविष्य उज्जवल हो सके।