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मेजर विभूति, कश्मीर में हुआ था परिवार प्रताड़ित, वहीं शहीद हुए मेजर

सेंट्रल डेस्क दीपक खाम्बरा-   देहरादून: जम्मू कश्मीर के पुलवामा में आतंकवादियों के साथ संघर्ष में शहीद हुए मेजर विभूति शंकर ढौंडियाल का मंगलवार को हरिद्वार में गंगा तट पर अंतिम संस्कार हुआ जिसमें हजारों की संख्या में लोग उमड़ पड़े। राजकीय सम्मान के साथ मेजर विभूति नम आंखो के साथ विदाई दी गई। मेजर ढौंढियाल की पत्नी निकिता ने रोते हुए अपने पति को I Love You बोलकर विदाई दी।

बता दे जिस जम्मू-कश्मीर से मेजर विभूति और उसके परिवार को प्रताड़ित कर जम्मू-कश्मीर से निकाल दिया जाता है, मेजर व उसके परिवार का कसूर सिर्फ इतना ही होता है क्योंकि उनका परिवार कश्मीरी पंडित था। जहां से मेजर और उसके परिवार को अपनी जान से बचा कर भागना पड़ता है, उसी कश्मीर में ही मेजर ने अपनी अंतिम सासें ली। कश्मीर से केवल मेजर विभूति ही नही लगभग 4 लाख कश्मीरी पंडितो को कश्मीर से निकाल दिया जाता है

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24 अक्टूबर 1947 की बात है, पाकिस्तान ने पठान जातियों को कश्मीर पर आक्रमण के लिए भड़काया और समर्थन दिया। तब तत्कालीन महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद का आग्रह किया। नेशनल कांफ्रेंस जो कश्मीर में सबसे बड़ा लोकप्रिय संगठन था व उसके अध्यक्ष शेख अब्दुल्ला थे, उन्होने भी भारत से रक्षा की अपील की थी। पहले अलगाववादीयों ने कश्मीरी पंडितों से केंद्र सरकार के खिलाफ विद्रोह करने के लिए कहा था, लेकिन जब कश्मीरी पंडितों ने ऐसा करने से इनकार दिया तो उनका संहार किया जाने लगा। 4 जनवरी 1990 को कश्मीर का यह मंजर देखकर कश्मीर से 1.5 लाख हिंदू पलायन कर गए। 1947 से ही कश्मीर और भारत के खिलाफ आतंकवाद का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इस आतंकवाद के चलते जो कश्मीरी पंडित पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से जान बचाकर भारतीय कश्मीर में आए थे उन्हें इधर के कश्मीर में भी इतना प्रताड़ित किया गया व कई कश्मीरी पंडितो नरसंहार भी किया गया जिससे पंडितो को अपनी जान बचाकर भागना पड़ा और आज वे जम्मू या दिल्ली में शरणार्थियों का जीवन जी रहे हैं। घाटी से पलायन करने वाले कश्मीरी पंडित जम्मू और देश के विभिन्न इलाकों में में रहते हैं।

ऐसे ही एक प्रताड़ित परिवार से थे मेजर विभूति जिस देश में उन्हे इतने कष्ट दिए गए उसी देश के लिए शहिद हुए मेजर और जिनको जम्मू-कश्मीर में विशेष अधिकार मिले आज वही लोग जम्मू-कश्मीर के लिए खतरा बने बेठे है, कहा जाए की जिस थाली में खा रहे है और उसी में छेद कर रहे है तो ये भी गलत नही होगा।

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शहीद मेजर ढौंडियाल का वंदे मातरम के उद्घोष के बीच हुआ अंतिम संस्कार चाचा जगदीश ढौंडियाल ने शहीद की चिता को अग्नि दी। दुखद घटना यह भी हुई की शहीद विभूति की चिता देख उनकी सास विना कौल से यह सदमा बर्दास्त नही हुआ और उनके भी प्राणों ने उनका साथ छोड़ दिया व उनका भी स्वर्गवास हो गया।

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