रणजीत सिंह वो भारतीय क्रिकेटर थे, जिन्हें अपनी टीम में लेने के लिए आपस में भिड़ गए थे अंग्रेज. भारतीय क्रिकेट के पितामह कहे जाने वाले जामनगर के महाराजा कुमार रणजीत सिंह का जन्म 10 सितंबर 1872 को गुजराज के काठियावाड़ के सरोदर गांव में जन्म हुआ था। उन्होंने क्रिकेट खेलने की शुरुआत भारत की. उन्हें अपने करियर के दौरान कुमार रणजीत सिंह, रणजी और स्मिथ के नाम सेलोग जानते थे. भारत में उन्हीं के नाम से राष्ट्रीय क्रिकेट चैंपियनशिप आयोजित की गई जो आज भी रणजी ट्रॉफी के नाम से चल रही है.
रणजीत सिंह ने अपने छात्र जीवन में क्रिकेट के अलावा फुटबॉल और टेनिस भी खेली. लेकिन, क्रिकेट ने उन्हें विशेष पहचान दिलाई. क्रिकेट की बाइबल कही जाने वाली पत्रिका विजडन ने भी रणजीत की प्रतिभा को लोहा मानते हुए उन्हें 1897 में क्रिकेट ऑफ द ईयर से सम्मानित किया था. रणजीत अपनी निराली बल्लेबाजी के लिए ज्यादा पसंद किए जाते थे. रणजीत सिंह ने अपनी कलाईयों की जादूगरी से इस खेल में लेग ग्लांस जैसे ऑन साइड के कई नए स्ट्रोक जोड़े थे. रणजीत अपने जमाने के ऐसे बल्लेबाज थे जिनके पास कई तरह के स्ट्रोक थी.
पहले मैच में ही बनाए थे कई रिकॉर्ड
रणजीत को अपनी बेहतरीन बल्लेबाजी के लिए इंग्लैंड के चयनकर्ताओं ने अपनी टीम में शामिल किया था. रणजीत इंग्लैंड की टीम में शामिल होने वाले पहले एशियाई क्रिकेटर थे. इंग्लैंड टीम में रंजीत के चयन होने पर काफी विवाद भी हुए थे. 1896 मे टीम के लार्ड हारिस इस चयन के खिलाफ थे. उनका कहना था कि रणजीत का जन्म इंग्लैंड में नहीं बल्कि भारत में हुआ है, तो इंग्लैंड टीम में उनका चयन नहीं होनी चाहिए.
बता दे कि 1896 मे ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ इंग्लैंड के मैनचेस्टर ग्राउंड में रणजीत ने अपना पहला टेस्ट मैच खेला जिसकी दोनों पारियों में उन्होंने 50 से ज्यादा रन बनाए, पहली पारी में 62 और दूसरी पारी में नाबाद 154 रन की बेहतरीन पारी खेली थी. रणजीत ने इस मैच में 23 चौकों की मदद से 154 रन बनाए थे.
1897 मे जब इंग्लैंड की टीम ऑस्ट्रेलिया दौरे पर गई थी तो पहले ही टेस्ट मैच में सातवें नंबर पर बल्लेबाजी करने उतरे रणजीत ने 175 रनों की बेहतरीन पारी खेली थी. जिसकी बदौलत इंग्लैंड ने 9 विकेट से मैच जीत लिया था. आपको बता दें रंजीत इस मैच से पहले काफी बीमार थे फिर भी इंग्लैंड की टीम उन्हें बाहर नहीं बैठाया.
रणजीत सिंह का करियर
रणजीत ऑस्ट्रेलिया दौरे के बाद अपने टेस्ट करियर में कभी भी दोबारा शतक नहीं लगा पाए, लेकिन ऑस्ट्रेलिया के इस दौरे में वे इंग्लैंड के सबसे सफल बल्लेबाजों में शामिल थे. उन्होंने तब 60.89 की औसत से 1157 रन बनाए थे. यही नहीं 1895 से लेकर लगातार दस सत्र तक रणजी ने 1000 से अधिक रन बनाए. इनमें 1899 और 1900 के सत्र में तो उन्होंने 3000 से अधिक रन ठोक दिए थे.
रणजी ने अपने कैरियर में 15 टेस्ट मैच की 26 पारियों में 44.95 की औसत से 989 रन बनाए. प्रथम श्रेणी क्रिकेट में उन्होंने 307 मैच खेले जिनमें 56.37 की औसत से 24,092 रन बनाए. इसमें 72 शतक और 109 अर्धशतक भी शामिल हैं. इस महान क्रिकेटर का 60 वर्ष की उम्र में 2 अप्रैल 1933 को जामनगर में निधन हुआ. उनके भतीजे दिलीप सिंह भी इंग्लैंड की तरफ से टेस्ट मैच खेले थे.
भारत में रणजी ट्रॉफी रणजीत सिंह के नाम पर हुई थी शुरू
रणजीत सिंह ने अपना पहला और आखिरी टेस्ट मैच ऑस्ट्रेलिया के ही खिलाफ मैनचेस्टर के ओल्ड ट्रैफर्ड ग्राउंड में खेला. हालांकि अपने आखिरी मैच में रणजीत ज्यादा कुछ खास नहीं कर पाए थे, दोनों पारियों मिलाकर सिर्फ 6 रन ही बना पाए थे. 1904 में भारत वापस आने के बाद भी रणजीत को क्रिकेट से इतना प्यार था कि 48 साल के उम्र में वह प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेलना चाहते थे.
1907 में रणजीत नवानगर के महाराजा बने. एक अच्छे क्रिकेटर के तरह वह एक अच्छे एडमिनिस्ट्रेटर भी थे. 1934 में रणजीत के नाम पर भारत ने रणजी ट्रॉफी शुरू हुई. रणजीत भारत के पहले क्रिकेट खिलाड़ी थे, जिन्हें अंतराष्ट्रीय मैचों में मौका मिला था. रणजीत को भारतीय क्रिकेट का जन्म दाता माना जाता है.
Written by – Ashish kumar
https://youtu.be/mD50zDjMwR4