संविधान के अनुच्छेद 370 को आज के ही दिन ठीक 4 साल पहले केंद्र ने जम्मू-कश्मीर से हटा दिया था। जिसके अनुसार जम्मू-कश्मीर से स्पेशल स्टेटस का दर्जा छीन लिया गया था। इसके बाद केंद्र सरकार के इस फैसले को चुनौती देने के लिए कई याचिकाएं दायर कई गई थीं। इन याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में पांच न्यायधीशों की संवैधानिक पीठ बीते बुधवार (2 अगस्त) से सुनवाई कर रही है। इनमें चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ के साथ जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस सूर्यकांत शामिल हैं।
याचिकाओं से बचाव पर केंद्र सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कहा हमारे इस कदम से जम्मू- कश्मीर में “अभूतपूर्व स्थिरता और प्रगति” आई है। सोमवार को दायर एक नए हलफनामे में केंद्र सरकार ने अपने फैसले का बचाव करते हुए याचिका के खिलाफ तर्क दिया कि अब घाटी में पत्थरबाजी की घटनाएं बंद हो गई हैं। जो 2018 में 1767 तक पहुंच गईं थीं।
केंद्र ने 20 पेज के हलफनामे में तर्क दिया कि धारा 370 हटाए जाने के बाद जम्मू- कश्मीर में शांति और विकास को बढ़ावा मिल पाया है। आगे कहा कि इस “ऐतिहासिक कदम से क्षेत्र में स्थिरता, शांति, विकास और सुरक्षा आई है।” बताते चलें कि केन्द्र के अनुसार धारा हटाए जाने से जम्मू- कश्मीर में आतंकवाद संबंधी घटनाओं में भी काफी हद तक गिरावट आई है। आतंकवादी भर्ती में 2018 में 199 से महत्वपूर्ण गिरावट आई है और 2023 में यह अब 12 हो गई है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि पहले धारा 370 अस्थायी थी, लेकिन जब 1950 में संविधान सभा भंग हुई, तो यह अपने आप स्थायी आर्टिकल बन गया। अगर इसे हटाना है तो संविधान सभा की इजाजत लेनी जरूरी है। लेकिन वह अब है ही नहीं, ऐसी स्थिती में इसे हटाया ही नहीं जा सकता है।
उन्होंने कोर्ट में दलील दी कि आर्टिकल 370 के अंतर्गत संसद केवल राज्य सरकार के परामर्श से जम्मू-कश्मीर के लिए कानून बना सकती है। 370 को निरस्त करने की शक्ति जम्मू-कश्मीर विधायिका के पास है। आगे यह देखना काफी अहम होगा कि इस पूरे मामले पर सुप्रीम कोर्ट क्या फैसला सुनाती है।
By: Meenakshi Pant