सेंट्रल डेस्क, साहुल पाण्डेय। लोकसभा चुनावों को लेकर तारीखों का ऐलान तो हो चुका है। ऐसे में सभी पार्टियां अपनी तैयारियां पूरी भी कर चुकी है और रैलियों में अपने विपक्षी दलों पर हमलावर होने को लेकर भी तैयार है। एक ओर जहां वायु सेना की ओर से पाकिस्तान में एयरस्ट्राइक करने के बाद इसका राजनीतिक फायदा प्रधानमंत्री मोदी और उनकी पार्टी को मिलता दिख रहा है तो वहीं विपक्ष के पास राफेल के अलावा कोई ऐसा मुद्दा रहा नहीं है जिससे वो बीजेपी पर हमलावर हो सके। वहीं राफेल को लेकर भी जनता में उतना उत्साह नहीं है। लेकिन इसी बीच विपक्ष के लिए एक बड़ी खबर आई है जिसपर अगर विपक्ष गौर करे तो उसका बड़ा लोकसभा चुनावों में उठा सकता है।
मोदी सरकार द्वारा नवंबर 2016 में रात न बजे नोटबंदी के फैसले को लेकर देश में जहां एक ओर बाते दब गई हैं तो वहीं अब इस मामले को लेकर अब एक नई बात सामने आई है। बता दें कि विपक्ष पहले भी इस बात को कहता रहा है कि नोटबंदी जल्दीबाजी में लिया गया फैसला है। अब यह बात सच भी होती दिख रही है। एक अखबार में छपी खबर के अनुसार यह दावा किया गया है कि एक आरटीआई से मिली जानकारी में यह पता चला है कि बिना निष्कर्ष के ही प्रधानमंत्री मोदी ने नोटबंदी की घोषणा कर दी थी।
इस आरटीआई में यह दावा किया गया है कि आरबीआई बोर्ड की बैठक नोटबंदी के ऐलान के बस ढाई घंटे पहले शाम 5 बज कर तीस मिनट पर हुई थी। इस आरटीआई में इस बारे में कहा गया है कि बोर्ड की मंज़ूरी मिले बिना प्रधानमंत्री ने नोटबंदी का ऐलान कर दिया था। आरबीआई ने 16 दिसंबर, 2016 को सरकार को प्रस्ताव की मंज़ूरी भेजी यानी ऐलान के 38 दिन बाद आरबीआई ने ये मंज़ूरी भेजी है।
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अखबार में यह बताया गया है कि आरटीआई ऐक्टिविस्ट वेंकटेश नायक द्वारा जुटाई गई इस जानकारी में और भी अहम जानकारीयां सामने आईं हैं। इसके मुताबिक वित्त मंत्रालय के प्रस्ताव की बहुत सारी बातों से आरबीआई बोर्ड सहमत भी नहीं था। मंत्रालय के मुताबिक 500 और 1000 के नोट 76% और 109% की दर से बढ़ रहे थे जबकि अर्थव्यवस्था 30% की दर से बढ़ रही थी। आरबीआई बोर्ड का मानना था कि मुद्रास्फीति को ध्यान में रखते हुए बहुत मामूली अंतर है।
इस खुलासे के बाद एक बार फिर नोटबंदी को लेकर सवाल खड़ा हो गया है एक ओर जहां मोदी सरकार नोटबंदी के फैसले को उपलब्धि बता रही है और दावा कर रही है कि इससे काला धन और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में कामयाबी मिली हैं वहीं सरकार और आरबीआई के बीच मतभेद की बातें अब खुल कर सामने आ गई है। ऐसे में विपक्ष भी इस मामले को चुनाव के वक्त अपनी रैलियों में भुनाने की कोशिश करेगा।