सेंट्रल डेस्क , साहुल पाण्डेय: भारतीय रेलवे इन दिनों नए आयामों से गुजर रहा है. ऐसा दावा केन्द्रीय रेलवे मंत्री पीयूष गोयल हमेशा करते हुए दिखते हैं. उनके ट्वीटर से लेकर उनके भाषणों तक ऐसा ही सुनने को मिलता रहता है. शायद यह सच भी हो क्योंकि इस बदलाव की दुहाई देते हुए केन्द्र की मोदी सरकार लगातार रेलवे का निजीकरण कर रही है.लेकिन रेलवे के निजीकरण और बदलाव के दावोंं के बीच कई सारे लूप होल्स सामने आ रहे हैं. इन्हीे लूप होल्स के कारण रेलवे में कई बड़े घोटाले होने की भी बातें आ रही है. लेकिन न तो ये मामले सामने आते हैं न कोई इनपर बात करता है. ऐसे ही एक बड़े घोटाले के सामने आने की संभावना बिहार के समस्तीपुर रेल मंडल से है. मामला इतना बड़ा है कि इसकी जद में बिहार के एक या दो नहीं बल्की 27 से ज्यादा रेलवे स्टेशन आएंगे.
दैनिक जागरण में हाल हीं में छपी एक खबर के अनुसार बिहार के करीब 27 स्टेशानों पर पूछ ताछ केन्द्रों का निजीकरण किया जाना है. इस रिपोर्ट के अनुसार बताया गया है कि बिहार के समस्तीपुर रेल मंडल के दरभंगा स्टेशन सहित जयनगर, मधुबनी, सकरी, लहेरियासराय, हायाघाट, समस्तीपुर, जनकपुर रोड, नरकटियागंज, मोतिहारी, बेतिया, रक्सौल, बैरगनिया, सीतामढ़ी, सहरसा, बनमनखी, बख्तियापुर, रोसड़ा घाट, सुगौली सहित कुल 27 स्टेशनों के पूछताछ काउंटरों का निजीकरण किया गया है. रेलवे ने इस काम को बेवटेक इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी को सौंपा है. यानी अब रेलवे के कर्मी पूछताछ केन्द्र में आम लोगों को सूचना नहीं देंगे. अब इनकी जगह ठेका लेने वाली कंपनी के कर्मचारी ये काम करेंगे.
रिपोर्ट की माने तो रेलवे के इस कदम से रेलवे के टीसी को काउंटर से मुक्ति मिलेगी. संवेदक के प्रतिनिधियों को रेलवे की ओर से पहले प्रशिक्षण दिया जाएगा. फिलहाल रेलवे ने काउंटर पर तैनात होने वाले कर्मियों का नाम, पता और मोबाइल नंबर मांगा है. निजीकरण के बाद रेलवे के पूछताछ काउंटरों पर प्रोफेशनल्स कर्मी तैनात रहेंगे. यानी पूरा काम एक बीपीओ यानी एक कॉल सेंटर की तरह होगा. ऐसा बताया गया है कि कर्मचारियों की कमी को देखते हुए रेलवे पूछताछ काउंटर के बाद जनरल टिकट व आरक्षण टिकट काउंटर को भी निजी तौर पर संचालित करने की तैयारी में है.
जिस कम्पनी को मिला ठेका वह है ही नहीं
रेलवे का निजीकरण हो या न हो यह एक अलग बहस है. लेकिन बिहार के जिन 27 स्टेशनों का ठेका जिस कंपनी को मिला है उसे लेकर बड़े सवाल खड़े हो रहे हैं. जानकारी के अनुसार जिस वेबटेक इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी को ये ठेका मिला है, वो वास्तव में है ही नहीं. जब न्यूज ऑफ बिहार की टीम ने इस बारे में मिनिस्ट्री ऑफ कंपनी एफेयर्स की साइट पर इस कंपनी के बारे में जानकारी जुटानी चाही तो पता चला कि इस नाम की कोई कंपनी सरकार की इस साइट पर रजिस्टर्ड ही नहीं है. वहीं जिस एक कंपनी के बारे में जानकारी मिली वो प्राइवेट लिमिटेड के बजाए सीर्फ लिमिटेड थी और सरकार की साइट के अनुसार इस कंपनी का आखिरी बैलेंस सीट 2007 का है. यानी एक तरह से कहे तो यह कंपनी निष्क्रिय है.
भारत सरकार की एमसीए साइट से इस बात का साफ—साफ पता चलता है कि जिस कंपनी को 27 स्टेशनों का ठेका दिया गया है वो फर्जी है. उसका वास्तिविकता से कोई लेना देना नहीं है. न्यूज ऑफ बिहार की टीम की जांच में यह बात सामने आई की अगर इस मामले में जल्द से जल्द जांच की जाती है तो रेलवे में एक बड़ा घोटाला सामने आ सकता है. निजीकरण और यात्रियों को बेहतर सुविधा देने के नाम पर यात्रियों के पैसे का ही बंदरबाट बड़े स्तर पर चल रहा है. लेकिन न तो मंत्रालय इसे लेकर सजग है और न ही रेल मंडल