मिथिला को नदियों का मातृक प्रदेश कहा जाता है, पर आज यह संपूर्ण क्षेत्र घोर जल-संकट से जूझ रहा है। मानव द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का बेतहाशा शोषण एवं दुरुपयोग ही जल-संकट का मूल कारण है। हमने अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति का सिर्फ शोषण ही किया,पर बदले में उसे कुछ नहीं दिया। जीवन-रक्षा हेतु हमें प्रकृति को बचाते हुए अपनी जरूरतों को पूरा करने की कला जल्दी सीखनी ही होगी।
आज सरकारी या सार्वजनिक तालाब भी मानव जनित गंदगी के कारण उपयोग लायक नहीं बचा है। उक्त बातें मिथिला विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास,पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग के अध्यक्ष डॉ अयोध्यानाथ झा ने भारत विकास परिषद् , विद्यापति शाखा,दरभंगा द्वारा कादिराबाद में घटते जल- स्रोत एवं बढ़ते जल- संकट विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि के रूप में कहा।उन्होंने कहा कि जानकी नवमी के शुभ अवसर पर परिषद् द्वारा प्याऊ की शुरुआत अपने- आप में महत्त्वपूर्ण है,क्योंकि मां जानकी का प्राकट्य जल- संकट को दूर करने के लिए ही हुआ था। प्याऊ की व्यवस्था समाजोपयोगी एवं अनुकरणीय प्रयास है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ नीलमणि सिंह ने कहा कि जल जीवन का महत्त्वपूर्ण घटक है,जो प्रकृति द्वारा प्राप्त एक अनमोल उपहार है। जल के बिना कहीं भी जीवन संभव नहीं है।अमृत सदृश जल हमारे शरीर के तापमान को नियंत्रित करता है,जिसकी कमी से अपच्च, डिहाइड्रेशन,गैस की समस्या, जौंडिस,ह्रदय रोग आदि उत्पन्न होते हैं।अधिक जल- सेवन से हम इस भीषण गर्मी तथा लू से बच सकते हैं, जबकि कम जल-सेवन हमारे शरीर को बुरी तरह प्रभावित करता है।
मुख्य वक्ता के रूप में रंजीत कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि जल-संरक्षण द्वारा ही जल- संकट से बचा जा सकता है। जल का प्रबंधन,वितरण- प्रणाली तथा भूमिगत जल स्रोतों को बरकरार रखना और वर्षा-जल के संरक्षण द्वारा उसे रिचार्ज करना आवश्यक है।आज पर्यावरण साफ संकेत दे रहा है कि सुरक्षित जीवन के लिए पर्यावरण को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
प्याऊ का उद्घाटन करते हुए परिषद् के प्रांतीय महासचिव राजेश कुमार ने कहा कि जल ही जीवन है।मानव सेवा की भावना से परिषद् द्वारा विभिन्न स्थलों पर शुद्ध एवं शीतल पय जल की व्यवस्था की जा रही है।हमें हर तरह की जिम्मेदारियां सिर्फ सरकार पर ही नहीं छोड़नी चाहिए,बल्कि छोटी-छोटी व्यवस्थाएं हमें खुद ही या संगठनों के माध्यम से करके मानव-कल्याण करना चाहिए। मानव-सेवा ही सच्ची ईश्वर सेवा है। इंजीनियर श्रीरमण अग्रवाल ने जल- संरक्षण के विभिन्न उपायों को विस्तार से बताया,जबकि आकाश अग्रज ने शरीर के लिए जल की उपयोगिता की विस्तृत से चर्चा की।
अध्यक्षीय संबोधन में परिषद् के पूर्व अध्यक्ष अनिल कुमार ने कहा कि जल ईश्वर से मिला अनमोल उपहार है, जिसमें हमारे शरीर के लिए उपयोगी लगभग सभी खनिज तत्त्व मौजूद हैं। इसलिए हमारे संतुलित शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए अधिक जल- सेवन आवश्यक है। हमारी जीवन-शैली ने जल-स्रोतों को इतना अधिक क्षति पहुंचाई है कि उसके दुष्प्रभावों से बचना मुश्किल सा हो गया है।यदि हम अभी नहीं चेते तो आगे सिर्फ रोना ही पड़ेगा। विचार गोष्ठी में डॉ अंजू कुमारी, जीवनदास लखवानी,ओम प्रकाश,सुभाष कांस्यकार, वैद्यनाथ साहनी,रुद्र नारायण मंडल तथा अरविंद भगत आदि ने भी अपने-अपने विचार व्यक्त किए।आगत अतिथियों का स्वागत एवं कार्यक्रम का संचालन सचिव डॉ आर एन चौरसिया ने किया,जबकि धन्यवाद ज्ञापन कोषाध्यक्ष आनंद भूषण ने किया।